नईदिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली हार ने कई सबक दे दिए, इसके बाद अब पार्टी हाईकमान हर कदम बड़ी सावधानी से रख रही हैं। क्योंकि उसे आने वाले समय में एक साथ तीन राज्यों में चुनाव का सामना करना पड़ा है। राजस्थान में जहां चेहरे को लेकर तलवारे खींची हुई हैं, वहीं मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर और आपसी खींचतान बीजेपी का काम बिगाड़ सकती है।इसलिए दोनों राज्यों को साधने के लिए नेताओं को साधना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में कानून मंत्री किरेन रिजिजू को हटाकर राजस्थान से संबंध रखने वाले सांसद अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपने को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।
मेघवाल के प्रमोशन के साथ भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। राजस्थान के राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे प्रदेश में आने वाले चुनाव में भाजपा का चेहरा नहीं होंगी। इसलिए पार्टी जाति के गणित को सही करने में जुटी हुई है। हाल ही में पार्टी ने जाति विशेष नेताओं को नई जिम्मेदारियां दी हैं। भाजपा हाईकमान ने इन नियुक्ति के जरिए प्रदेश की जनता समेत पूर्व सीएम को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि पार्टी किसी एक चेहरे साथ आगे बढ़ने का जोखिम मोल नहीं ले सकती है। इसलिए वे जातीय संतुलन को मजबूत कर रही है।
सोशल इंजीनियरिंग में जुटी पार्टी
पिछले महीने ही पार्टी ने राजस्थान का नेतृत्व करने के लिए जाट नेता को हटा कर एक ब्राह्मण चेहरे को चुना था। वहीं हाल ही में एक अन्य राजपूत नेता के कद को बढ़ाकर पार्टी ने राजनीतिक रूप से शक्तिशाली राजपूत समुदाय को साधने का प्रयास किया है। प्रदेश के राजनीतिक जानकारों की मानें, तो प्रदेश के नेताओं का केंद्र सरकार में प्रमोशन हो या फिर संगठन के अहम पदों पर नियुक्तियां संगठनात्मक कम और राजस्थान के जातीय गणित को साधने वाली ज्यादा लगती हैं। पिछले दो माह में भाजपा ने फेरबदल कर राजस्थान में अपनी सोशल इंजीनियरिंग पटरी पर लाने की कोशिश की है। साथ ही ये नियुक्तियां कई सियासी संकेत भी देती हैं।
वसुंधरा को भी राहत
राजस्थान में बड़ी संख्या में दलित और खासकर मेघवाल आज भी कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीटों पर भाजपा इनकी मदद से जीत हासिल कर लेती है। ऐसे में जनता के बीच अर्जुन राम मेघवाल को दलित चेहरा बनाने की बात तय मानी जा रही थी, लेकिन इन्हें केंद्र में ही बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई है। मेघवाल के प्रमोशन के बाद वसुंधरा गुट को झटका भी लगा है। लेकिन राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना कि इस प्रमोशन से उन्हें राहत मिली है। क्योंकि वसुंधरा राजे के लिए उनका गुट लंबे समय से कैंपेन कमेटी के मुखिया के पद की आस लगाए बैठा है। इससे पहले राजस्थान की राजनीति में चर्चा थी कि मेघवाल को केंद्र की राजनीति से हटा कर राजस्थान भेजा जाएगा। वहां इलेक्शन कैंपेन कमेटी का उन्हें चेयरमैन बनाया जाएगा।
16 फीसदी मतों पर नजर
बात अगर आंकड़ों की हो तो राजस्थान में दलित करीब 16 फीसदी हैं, और इसमें 60 फीसदी आबादी मेघवालों की है। विधानसभा में सीटों की गणित की बात करें तो 200 में से 34 सीटें एससी और 25 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। प्रदेश में दलित वोटर्स भाजपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि जिस दल ने एससी और एसटी सीटों पर कब्जा किया सरकार उसी की बनी। ऐसे में मेघवाल को बड़ी जिम्मेदारी मिलना इन वोटर्स को अपनी तरफ रखने की कोशिश हो सकती है। मेघवाल प्रदेश की बीकानेर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इसी के पास श्रीगंगानगर लोकसभा सीट पर भी भाजपा के दलित सांसद निहालचंद मेघवाल छह बार से लोकसभा सीट जीत रहे हैं। निहालचंद को मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। लेकिन बालात्कार के आरोप के चलते उन्हें हटाकर अर्जुन राम मेघवाल को मंत्री बनाकर जातीय संतुलन बनाया गया था। हालांकि अर्जुन राम मेघवाल सरकारी अफसर थे। वे वीआरएस लेकर राजनीति में आए थे। इसलिए जनता में उनकी पकड़ थोड़ी कमजोर है। लेकिन उनकी सांगठनिक दृष्टि बहुत मजबूत है। इसलिए भाजपा ने राजस्थान चुनाव के लिए बनाई अपनी कोर कमेटी में भी इन्हें शामिल किया है।
बड़े नेताओं में अब वसुंधरा ही बाकी
भाजपा ने एक-एक कर तमाम बड़े नेताओं के बीच संतुलन साधते हुए उन्हें अलग-अलग पदों पर नियुक्त कर दिया है। जबकि आने वाले दिनों में कुछ नेताओं को भी नियुक्ति होने की संभावना है। ऐसे में प्रमुख नेताओं में अब सिर्फ वसुंधरा राजे ही हैं, जिन्हें लेकर भाजपा हाईकमान कोई निर्णय नहीं ले सका है। प्रदेश के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि वसुंधरा राजे फैक्टर विधानसभा चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव 2024 में अहम रहेगा। ऐसे में भाजपा को उन्हें लेकर जल्द ही कोई ठोस निर्णय लेना पड़ेगा।
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