ज़ीरी डिग्री में हाफ टी-शर्ट वाला…

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Hooliganism: Congress leader threatens the judge who sentenced Rahul Gandhi, will cut his tongue as soon as he comes to power
जब हमारी सत्ता आएगी हम राहुल गांधी को जेल भेजने के लिए फैसला सुनाने वाले जज की जीभ काट देंगे।

नवेद शिकोह, लखनऊ। हार मान लेना मौत है और उम्मीद ज़िन्दगी है। नाउम्मीदी ख़त्म हो जाने का कारण बनती है, उम्मीद ज़िन्दा होने की अलामत है। मेडिकल सांइस कहती हैं कि जब तक सांसें बची हों कोशिश का सिलसिला जारी रखिए। सियासत भी यही कहती हैं। कभी भाजपा की सियासत ने इसी फलसफे को समझते हुए संघर्ष, धैर्य और संयम का साथ नहीं छोड़ा था। दशकों तक पराजय का सामना करते हुए उम्मीद का दामन थामे रखा। ख़ासकर उत्तर प्रदेश में भाजपा की ज़मीन इतनी पथरीली थी कि यहां एक बीज को भी ढकने के लिए जनाधार की एक मुट्ठी ख़ाक तक भी मयस्सर होना मुश्किल थी।

तपस्या का मिला मधुर फल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तपस्या, संघर्ष, परिश्रम, अनुशासन और धैर्य के संस्कार वाली भाजपा ने सबसे जटिल यूपी के पथरीली ज़मीन पर ही जन आंदोलनों (राममंदिर जैसे आंदोलन) का हल चलाया, पसीना बहाया। हिन्दुत्व की अलख जली और सनातनियों में जातियों के बिखराव को खत्म कर बहुसंख्यकों को एकता के सूत्र में बांधने का सपना पूरा कर लिया। आख़िरकार सफलता इतनी बुलंद हो गई कि देश कि भाजपा सत्ता का पर्याय सा बन गई। क़रीब चार दशक का रिकार्ड तोड़कर भाजपा ने इसी यूपी में सरकार रिपीट कर सनातन धर्म के प्रहरी योगी आदित्यनाथ को दोबारा मुख्यमंत्री का ताज पहना दिया।

भाजपा की सियासत ने साबित किया कि धावक जितना अधिक पसीना बहाएगा, पैरों में जितने पत्थर चुभेंगे जीत का महल उतना ही मजबूत होगा।इस फार्मूले को ही एक शख्स आत्मसात कर रहा है। वो ज़ीरो डिग्री की शदीद ठंड में हाफ टी-शर्ट में दिनों-रात पैदल चल रहा रहा है।

जनता का दुख-सुख जान रहा है। यूपी के मौसम विभाग ने कहा है कि जनवरी के फर्स्ट वीक में शीतलहर चरम पर होगी। राहुल गांधी जब कांग्रेस के लिए बंजर बन चुकी यूपी की भूमि पर तीन जनवरी को पैदल क़दम ताल मिलाएंगी तो शायद हरियाली प्रधान पश्चिमी यूपी का तापमान ज़ीरो डिग्री तक पंहुचा जाए। जीरी डिग्री में हाफ टी-शर्ट पहने राहुल यूपी के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को यही संदेश देना चाह रहे हैं कि ठंड की बर्फ में फंसी ठंडी कांग्रेस की नाव को हौसलों की गर्मी से पार करने की कोशिश की जा सकती है।

भाजपा से​ लिया संघर्ष का मंत्र

भले ही लोग मज़ाक उड़ाएं, पप्पू कहें, पगला कहें, सद्दाम हुसैन जैसी दाढ़ी वाला कहें, नजरंदाज करें, नफरत करें.. हम निराश या हताश नहीं होंगे। सत्ता मिले ना मिले, चुनाव जीतें या ना जीतें, विपक्षियों का गठबंधन बने या ना बने, समान विचारधारा वाले अखिलेश यादव, मायावती, जयंत चौधरी भी आपके आमंत्रण को अस्वीकार कर कटुता दिखाएं, फिर भी मंजिल की परवाह किए आपको चलते रहना है। गीता में श्री कृष्ण के उपदेश की तरह- कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो।

जिस कांग्रेस का आधार पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमि उत्तर प्रदेश रहा, जहां आज़ादी के बाद से करीब तीन दशक से ज्यादा कांग्रेस निरंतर सत्ता में रही, उस सूबे में ही कांग्रेस मृत्यु शैय्या पर है। क़रीब दो फीसद वोट में सिमटी पार्टी को पुनर्स्थापित करने का प्रयास हो सकता है यूपी कांग्रेस को ज़रा भी राजनीतिक लाभ ना दे। लेकिन राहुल की भारत जोड़ों यात्रा का यूपी में मात्र प्रवेश भर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और अन्य नेताओं/पार्टियों को सड़क पर उतरने का सिलसिला शुरू करवा रहा है। (ओबीसी आरक्षण को लेकर अखिलेश यादव और अन्य विपक्षी नेताओं ने यात्राएं निकालने का एलान किया है।)

कांग्रेस को मिल सकती है सास

यूपी के अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे देश के बड़े विपक्षी नेताओं ने भी यात्राएं निकालने का एलान कर दिया है। हो सकता है कि देश को एकजुट करने, मोहब्बतों का प्रसार करने, आम जनता से रुबरु होकर उनकी समस्याओं को जानने-समझने निकले राहुल गांधी सिर्फ बेरोजगार नौजवानों के दर्द, मंहगाई की तकलीफों और किसानों की समस्याओं को जानने के सिवा कुछ हासिल ना कर सकें।

कन्याकुमारी से कश्मीर तक लम्बी पद यात्रा के बाद भी हो सकता है कि राहुल वर्तमान सियासत में पैदल ही रहें। लेकिन ये कहना शायद ठीक ना हो कि भविष्य उन्हें जीरो डिग्री में निकले पसीने का इनाम भी ना दे।राहुल गांधी इसी तरह ज़मीनी संघर्ष करते रहे तो अवश्य ठंडी पड़ी कांग्रेस देश की सियासत को गर्म करने लायक बन सकती है। वैसे ही जैसे कभी भाजपा ने कांग्रेस की अजेय सी लगने लगी सत्ता के खिलाफ ज़ीरो से हाफ, हाफ से दो और दो से चार… और फिर देश की सबसे ताकतवर पार्टी बनने के लिए संघर्षरत कछुए की तरह निरंतर चलकर खरगोश को रेस में हरा दिया था।

इतिहास में दर्ज होगी यात्रा

चलिए मान लीजिए कि राहुल गांधी के पसीने की दरिया भी उनकी सियासी नाव पार नहीं लगा सके, ऐसा भी हुआ तो भी राहुल का संघर्ष उनके लिए तो लाभकारी होगा ही। वो इतिहास में एक नया इतिहास तो रच ही देंगे। चांदी का चम्मच लेकर महलों में पैदा होने वाले, देश के प्रधानमंत्रियों/मुख्यमंत्रियों की गोद में पलने वाले, विरासत की सियासत पर इतराने वाले, ट्वीटर और ए सी कमरों से राजनीति करने वालों का जब जिक्र होगा तो इतिहास लिखेगा कि देश की आजादी की लड़ाई से लेकर देश की सियासत और हुकुमत में सबसे बड़ी हिस्सेदारी निभाने वाले गांधी परिवार का एक वारिस (राजकुमार) कन्याकुमारी से जम्मू-कश्मीर तक देश की आम जनता से जमीनी स्तर पर मिलने के लिए अपने पैरों के फफोलों, बढ़ी हुई दाढ़ी, ज़ीरो डिग्री के मौसम और ज़िन्दगी के ख़तरों की भी परवाह नहीं करता था।

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