काव्य परिदृश्य – 2022, ‘कविता कभी खत्म नहीे होती’: कौशल किशोर

146

लखनऊ। 2022 में जिस बड़े पैमाने पर कृतियां प्रकाशित हुई हैं, उसे देखकर कहा जा सकता है कि कोरोना संक्रमण का जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था, उससे साहित्य समाज बाहर निकल आया है। वैसे इस महामारी के दौर को साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में बखूबी दर्ज किया। इस काल में लिखी रचनाएं प्रकाशित होकर आई हैं। यह उस काल का सृजनात्मक दस्तावेज है। बाढ़ का पानी बांध तोड़कर जैसे बह निकलता है, उसी तरह कोरोना संक्रमण के थमते ही कृतियों का प्रकाशन हुआ है। नये-नये प्रकाशक सामने आये हैं। बड़े प्रकाशन संस्थान का वर्चस्व टूटा है। सोशल मीडिया एक नया मंच बनकर उभरा है। ऐसे में 2022 में काव्य परिदृश्य कैसा रहा है?
न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन के ‘समकाल की आवाज’ सीरीज गौरतलब है। इसका आरम्भ 2021 में हुआ था। इसके तहत 18 कवियों के ‘चयनित कविताएं’ शीर्षक से संकलन आए। परन्तु वर्ष 2022 में तो इस प्रकाशन संस्थान ने इतिहास ही बना दिया। प्रेमचंद जयंती 31 जुलाई के दिन इसके द्वारा 21 कवियों के कविता संकलन का सीरीज जारी किया गया। इसमें स्वप्निल श्रीवास्तव, शैलेन्द्र शांत, महेन्द्र नेह, गीता गैरोला, असंग घोष, कुमार मुकुल, रमेश प्रजापति, कमलजीत चौधरी, मणि मोहन, केशव तिवारी, डॉ कर्मानन्द आर्य, शरद कोकास आदि शामिल हैं। ‘चयनित कविताएं’ का दूसरा खण्ड भी 2022 के अंत होते-होते जारी हुआ। इसमें जीवन सिंह, उद्भ्रांत, मिथिलेश श्रीवास्तव, सुभाष राय, डी एम मिश्र, बलभद्र, कैलाश मनहर, मनोज शर्मा, प्रतिभा कटियार, राजकिशोर राजन, विजय सिंह, मालिनी गौतम, अग्निशेखर सहित पच्चीस कवि शामिल हैं।

इस तरह एक वर्ष के भीतर 46 कवियों के संकलन को प्रकाशित करना साहसिक काम तो है ही, उसके साथ कविता पर भरोसा जताना भी है। जैसा कि प्रकाशकीय वक्तव्य में कहा गया है ‘जब भी मनुष्यता पर संकट आया, समकालीन कविताएं मनुष्यता को बचाने के लिए सबसे पहले सामने आती हैं।…..समकाल की आवाज उसी आवाज को कहा जा सकता है जो अपने समय और समाज को सही रूप में प्रतिबिम्बित के साथ-साथ उसे आगे की ओर ले जाती हो।’ इस संबंध में अफ्रीकी कवि को उद्धृत किया गया है ‘हमें ऐसी कविताओं की जरूरत है/जिनमें खून के रंग की आभा हो/…कविताएं/जो आतताइियों के चेहरे पर/सीधा वार करती हों/और उनके गुरुर को तोड़ती हों/….कवि, इससे पहले कि यह दशक भी/अतीत में गर्क हो जाए/तुम जनता के बीच जाओ/और जन संघर्षों को आगे बढ़ाने में मदद करो!’ ‘समकाल की आवाज’ सीरीज के तहत प्रकाशित कवियों की कविताओं की आगे पड़ताल होगी कि वे इस रोशनी में अपने सामाजिक दायित्व का कितना और कहां तक निर्वहन करती हैं।

कोरोना के संक्रमण के दौरान हमने अनेक कवियों-रचनाकरों को खोया है। कवयित्री शुक्ला चौधुरी उन्हीं में रही हैं। वे संक्रमित हुई और 23 मई 2021 को उनका निधन हुआ। शुक्ला चौधुरी की कविताओं का पहला संग्रह है ‘अनछुआ रह गया आकाश’। इसे वर्ष 2022 में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया। सोचता हूँ आज होतीं और अपने कविता संग्रह को देखती तो उनकी कैसी प्रतिक्रिया होती। किसी के जीवन में उसकी कविताओं की पहली किताब का आना किसी नवागंतुक से कम नहीं होता है। संग्रह की शुरुआत ‘घर’ शीर्षक से तीन कविताओं से होता है। इसमें ‘घर’ की कई छवियाँ हैं। पहली कविता में कहती हैं: ‘नाम के भरम में/मत पड़ जाना/यहाँ संगमरमर वाली बात/नहीं है कहीं/दरवाजे पर टांगकर/रखा हुआ है प्रेम/जिसका एक सिरा पकड़ कर/अंदर आ जाना’ । उनकी कविताओं का आरंभ यहीं से होता है। प्रेम, प्रेम और प्रेम । यह मनुष्यता के रंग में रंगा है। उनकी कविता की दुनिया में यह छलछलाता हुआ मिलता है। वह बताती हैं कि घर ईंट, गारा, मिट्टी, संगमरमर से नहीं बनता बल्कि प्रेम से बनता है। यह प्रेम ही है जो लोगों को आपस में जोड़ता है, एक-दूसरे पर भरोसा पैदा करता है।

वरिष्ठ कवि जवाहरलाल जलज का दूसरा संकलन ‘रहूंगा तब तक इसी लोक में’ भी न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से आया। इनकी कविताएं केदारनाथ अग्रवाल की परंपरा से जुड़ती हैं। इनमें लोक की पीड़ा है। इसमें प्रतिरोध का स्वर है। इनकी विशेषता है कि ये अपने प्रतिरोध को नारा नहीं बनने देते। इनका प्रतिरोध का तरीका बहुत कुछ त्रिलोचन से मिलता है। इसकी विस्तृत भूमिका कवि और आलोचक भरत प्रसाद ने लिखी है। वे कहते है कि जलज जी की कविताएं अपनी जड़ों से नभिनालबद्ध हैं। ये पाठकों के कवि हैं, ऐसे पाठकों के जो साहित्य से बाहर हैं। सहजता और बोधगम्यता काव्य विशेषता है।

दिविक रमेश उन गिने-चुने रचनाकारों में हैं जिन्होंने साहित्य की कई विधाओं में सृजन किया है। कविता, अनुवाद, आलोचना के अतिरिक्त उन्होंने बच्चों के लिए कविता, कहानी व नाटक लिखे हैं, विदेशी साहित्य से अनुवाद किये हैं। 2021 में ‘पचास कविताएं: कुछ चहेती मेरी भी’ शीर्षक से काव्य संग्रह आया, वहीं इस साल ‘कवि के मन से’ आया जिसका प्रकाशन इंडिया नेटबुक्स ने किया। इसमें कवि दिविक रमेश द्वारा चयनित कविताएं हैं। वे 75 के पार है पर आज भी उनकी सृतनात्मक सक्रियता बेमिसाल है। वे मानव प्रेम की बेहद आत्मीय व स्नेहिल दुनिया रचते हैं। ‘बहुत कुछ है अभी’ में वे कहते हैंः ‘कितनी भी भयानक हो सूचनाएं/क्रूर हों कितनी भी भविष्यवाणियां/घेर लिया हो चाहे कितनी ही आशंकाओं ने/पर है अभी शेष बहुत कुछ/….शब्दों के पास हैं अभी कविताएं/कविताओं के पास है अभी मनुष्य/मनुष्यों के पास है अभी पृथ्वी/है अभी बहुत कुछ/बहुत कुछ है पृथ्वी पर/बहुत कुछ।’

सेतु प्रकाशन ने भी अनेक कविता संकलन प्रकाशित किए हैं। स्वप्निल श्रीवास्तव का ‘घाड़ी में समय’ और सुभाष राय का ‘मूर्तियों के जंगल में’ खासा चर्चित रहा है। ये कवि अपने समय की चुनौतियों से लगातार टकराते हैं। रुख प्रकाशन ने पंकज चतुर्वेदी का चौथा काव्य संकलन प्रकाशित किया है। इनकी कविताओं पर टिप्पणी करते हुए प्रियदर्शन कहते हैं कि पंकज चतुर्वेदी ऐसी काव्य-भाषा गढ़ने में कामयाब होते हैं जिसमें व्यंग्य का तीखापन भी है, विचार की गहराई भी। सेतु प्रकाशन से मोहन कुमार डहेरिया का पांचवां कविता संग्रह ‘चरण कमलों के दौर में’ आया। युवा कवि पंकज चौधरी का कविता संग्रह है ‘किस-किस से लड़ोगे’ भी यहीं से आया। इसने पाठकों का ध्यान आकर्षित किया। इनकी कविताएं सामाजिक वर्जनाओं, विडंबनाओं, विसंगतियों और इस व्यवस्था की क्रूर और नग्न हकीकत से रूबरू कराती हैं। ये राजनीतिक से अधिक सामाजिक और सांस्कृतिक हैं। पंकज चौधरी की कविताएं वर्णाश्रयी व्यवस्था की परतों को खोलती हैं। इनमें व्यक्त यथार्थ बहुतों के लिए सुपाच्य नहीं है। साहित्य का भद्रलोक या अभिजन समाज इसे कलाविहीन मानते हुए दरकिनार भी कर सकता है। लेकिन इसे नकारा नहीं जा सकता है। पंकज चौधरी अपनी एक कविता में कहते हैं – ‘जिस देश को/इतनी जातियों और उप जातियों में/बांट दिया गया हो/और जहां पर/एक ही जात के कुछ लोग/अपने को सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़ा बताते हों/अपने ही भाई बंधुओं को अधम और नीच/उनके लिए/भारत क्या खाक सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़ा होगा!’

राकेशरेणु का तीसरा कविता संग्रह है ‘नए मगध में’ जो अनुज्ञा बुक्स से आया है। यह अतीत की गाथा नहीं है बल्कि हमारे समय की महागाथा है जिसे राकेशरेणु ने पूरे त्वरण और भावावेग से रचा है। इतिहास वर्तमान में प्रवेश करता है। इसके संदर्भ, यथार्थ और ट्रीटमेंट में नवीनता है। यह ‘अशोक की मूल्य चेतना, चंद्रगुप्त मौर्य की शौर्य गाथाएं व चाणक्य की नीतियों के’ पुराने पड़ जाने और नए घटोत्कच के उदय की कथा है। इस मगध में मुसोलिनी भी है। फिर समझा जा सकता है इस मगध के चरित्र को। 2022 में जो संग्रह आये हैं, उनमें यह महत्वपूर्ण है। कविताएं आकर्षित करती हैं । यहां क्षरित होते मूल्यों के बीच अपने अन्दर के मनुष्य और जीवन को बचाने, उसे बेहतर बनाने की कोशिश है। संग्रह की आखिरी कविता है ‘आत्मकथ्य’। इसकी अंतिम पंक्तियां गौरतलब हैं – ‘और, यह आत्मबल बना रहे/मनुष्यता को क्षरित करने वाली हर कोशिश के खिलाफ अड़ा रहूं’। यह ‘अड़ना’ राकेशरेणु के कवि का मूल है।

अजय सिंह अपनी सत्ता विरोधी राजनीतिक कविताओं के लिए जाने जाते हैं। उनका दूसरा कविता संग्रह गुलमोहर किताब से आया है। शीर्षक है ‘यह स्मृति को बचाने का वक्त है’। इनकी कविता की दुनिया प्रेम, सुन्दरता, राजनीति और क्रान्ति से मिलकर बनती है। इनके यहां स्मृतियों को बचाना वर्तमान के संघर्ष का हिस्सा है। वे कहते हैं ‘यही वो वक्त है/जब बाबरी मस्जिद विध्वंस – 1992/और उसके गुनहगारों को याद रखा जाए/गुजरात विनाशलीला – 2002/और उसके गुनाहगारों को याद रखा जाए/और यह भी दर्ज किया जाए/कि इन भयानक अपराधों के सरगना मानवद्रोही/सत्ता के शीर्ष पर काबिज हैं’। रंजीत वर्मा का नया संकलन ‘यह रक्त भरा समय है’ भी साल बीतते आया। इसे परिकल्पना ने छापा है। इनकी कविताएं क्रूर, हिंसक और अलोकताांत्रिक होती व्यवस्था की सच्चाई को सामने लाती है जिसमें हत्यारे-बलात्कारी सम्मानित-प्रतिष्ठित होते हैं और वरवर राव जैसे कवि को जेल की सींखचों में बंद किया जाता है।

2022 के आरम्भ में बोधि प्रकाशन से युवा कवयित्री अनुराधा ओस का संकलन आया ‘वर्जित इच्छाओं की सड़क’। वहीं, उर्मिल मोंगा की कविताओं का संग्रह ‘लड़ना है न्याय युद्ध’ संभव प्रकाशन से आया। जहां अनुराध ओस की कविता में स्त्री जीवन की अनुभूतियां हैं, वहीं उर्मिल मोंगा का इस बात पर जोर है कि औरतों की लड़ाई उनकी स्वयं की लड़ाई है। उन्हें अपना न्याय युद्ध स्वयं लड़ना होगा। वह कहती हैंः ‘ठगी गई सीता/देख स्वर्ण मृग/छल तो मेरे साथ भी हुआ/पर नहीं चाहती/कोई राम आए/छुड़ाए रावण की कैद से/ले अग्नि परीक्षा/फिर छोड़ दे/वाल्मीकि के द्वार/मुझे स्वयं/लड़ना होगा/न्याय युद्ध’। संभव प्रकाशन से ही पंजाबी कवि हरिभजन सिंह रेणु का संकलन ‘एंटीने पर बैठी सोन चिड़ी’ आया। पंजाबी से हिन्दी अनुवाद उर्मिल मोंगा और पुरूषोत्तम शास्त्री ने किया है। अमरजीत कौंके पंजाबी और हिन्दी साहित्य के बीच सेतु हैं। उनका नया संग्रह ‘आकाश के पन्ने पर’ प्रतीक पब्लिकेशन से आया।

2022 में अनेक साझा संकलन भी आए। किसान आंदोलन को लेकर पिछले दिनों ढ़ेर सारी कविताएं लिखी गईं। नीरज कुमार मिश्र आौर अमरजीत कौंके के संपादन में किसान जीवन और संघर्ष पर लिखी 134 कवियों की कविताओं का संकलन ‘कविता में किसान’ शीर्षक से आया। कवि व गीतकार शिव कुमार पराग के संपादन में होली व वसंत के गीतों और कविवताओं का संकलन ‘उड़त गुलाब’ शीर्षक से आया। युवा कवि प्रद्युम्न कुमार सिंह के संपादन में साझा संकलन ‘खुशबू की तलाश में गुलमोहर’ आया। इसमें 16 समकालीन कवियों की कविताएं शामिल है। न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ने ‘कोठिल’ नाम से हिन्दी और उसका भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित किया है। इसमें 52 कवियों कीी कविताएं हैं। हिन्दी से भोजपुरी अनुवाद जगदीश नलिन ने किया है।

2022 में देवेन्द्र आर्य के दो संकलन आए। कविता की किताब ‘रंगायो जोगी कपड़ा’ तथा गजल संग्रह ‘मन कबीर’ आया। धर्मेंद्र कटियार का गजल संग्रह ‘शहर के वास्ते’ भी इसी साल आया। प्रवीण परिमल के दो संकलन आए। वे हैं ‘प्रेम का रंग नीला’ और ‘जंगल से लौटकर’। कवि-उपन्यासकार वीरेन्द्र सारंग का पांचवा कविता संग्रह ‘कथा का पृष्ठ’ भारतीय ज्ञानपीठ से आया। लोकोदय प्रकाशन से उमेश पंकज का दूसरा कविता संग्रह ‘जो मुट्ठी में है’ आया। कैलाश मनहर का संग्रह ‘उतरते इक्कीस के दो महीने’, मुकेश प्रत्युष का ‘हाशिए के लिए जगह’, जनेश्वर का ‘रोशनी की तरेड़’, रवि खण्डेलवाल का ‘उजास की एक किरण’, मुकेश कुमार सिन्हा का ‘…है न!’, अजय गुप्ता की मानव काव्य-गाथा ‘पल की यात्रा’, पीयूष सिंह का काव्य संग्रह ‘रंग महसूस होते हैं’ इस साल आए।
कहा जा सकता है कि 2022 का वर्ष साहित्य की दृष्टि से काफी उत्पादक और सृजनात्मकक रहा है। सैकड़ों की संख्या में नहीं हजारों की संख्या में काव्य-कृतियां आई हैं। उनके विविध स्वर हैं। यहां उनकी महज एक झलक है। 2020 का वर्ष लॉकडाउन का था। 2021 में कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता थी। वहीं, 2022 में जीवन पटरी पर आया। साहित्य के कार्यक्रम, पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों का प्रकाशन हो रहा है। पुस्तक मेले आयोजित किये जा रहे हैं। यह साहित्य का पटरी पर लौटना है और सन्नाटा का टूटना है। कविता जीवन, समय और समाज के साथ चलती है। चाहे जैसे भी हालात हों कविता ने मनुष्य का साथ निभाया है। वह मनुष्यता के साथ रही है। इसी से उसे जीवनी शक्ति मिलती है। मुक्तिबोध के शब्दों में कहें ‘नहीं होती खत्म…कविता कभी खत्म नहीं होती/वह आवेग त्वरित कालयात्री’।

-कौशल किशोर

एफ – 3144, राजाजीपुरम, लखनऊ – 226017
मोबाइल – 8400208031

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here