नईदिल्ली। क्या मोदी मैजिक कर्नाटक में फेल हो गया या भ्रष्टाचार के दीमक कांग्रेस के बाद भाजपा को भी खोखला कर दिया है। या आंतरिक कलह ने भाजपा चुनावी लुटीया डूबो दी। कर्नाटक चुनाव के बाद बीजेपी हाईकमान को इन सवालों के सीधे-सीधे जवाब खोजने होंगे। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक गंवाना भाजपा के मिशन 2024 को तगड़ा झटका दे सकती है।
अब इसके बाद बीजेपी को राजस्थान, मध्पप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में उतरने हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ को छोड़ दिया जाए तो इस समय मध्यप्रदेश बीजेपी में भारी अंतरकलह मची हुई है। अगर हाईकमान इस पर गौर नहीं करेगी तो उसके हाथ से एक और बड़ा राज्य फिसल सकता है। कांग्रेस की वापसी और बीजेपी के हाथ से सत्ता जाने के पांच बड़े कारणों को जानते हैं…
इसलिए कर्नाटक हारी भाजपा?
मीडिया रिपोर्ट्स पर गौर करे तो चुनाव प्रचार के शुरूआत से ही स्पष्ट हो रहा था कि इस बार चुनाव में भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही थी और कांग्रेस काफी आक्रामक थी। ऐसे में भाजपा की इस हार का मतलब साफ है।’
आंतरिक कलह बनी मुसीबत
कर्नाटक बीजेपी की हार के सबसे बडे कारणों में आंतरिक कहल सबसे ज्यादा खतरनाक सिद्ध हुई। चुनाव पहले से ही भाजपा में आंतरिक कलह की खबरें सामने आ चुकी थीं। कर्नाटक भाजपा में कई धड़े बन चुके थे। एक मुख्यमंत्री पद से हटाए गए बीएस येदियुरप्पा का गुट था, दूसरा मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का, तीसरा भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष और चौथा भाजपा प्रदेश नलिन कुमार कटील का था। एक पांचवा फ्रंट भी था, जो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि का था। इन सभी फ्रंट में भाजपा के कार्यकर्ता पिस रहे थे। सभी के अंदर पॉवर गेम की लड़ाई चल रही थी।
टिकट को लेकर अहम की लड़ाई
अधिसूचना लगने के बाद सबसे ज्यादा संकट टिकट को लेकर मैदान में उतरा सभी गुट अपने— अपने नेताओं को टिकट दिलवाने के लिए जोड़तोड़ में जुट गए, वहीं जिसका टिकट कटा उसने भाजपा को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पार्टी नेताओं की बगावत ने भी कई सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचाया है। करीब 15 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा के बागी नेताओं ने चुनाव लड़ा और पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचाया। जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी जैसे नेताओं का अलग होना भी पार्टी के लिए नुकसान साबित हुआ।
भ्रष्टाचार के आरोपों ने पहुंचाया नुकसान
ये मुद्दा पूरे चुनाव में हावी रहा। चुनाव से कुछ समय पहले ही भाजपा के एक विधायक के बेटे को रंगे हाथों घूस लेते हुए पकड़ा गया था। इसके चलते भाजपा विधायक को भी जेल जाना पड़ा। एक ठेकेदार ने भाजपा सरकार पर 40 प्रतिशत कमिशनखोरी का आरोप लगाते हुए फांसी लगा ली थी। कांग्रेस ने इस मुद्दे को पूरे चुनाव में जोरशोर से उठाया। राहुल गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खरगे और प्रियंका गांधी तक ने इस मुद्दे को खूब भुनाया। जनता के बीच भाजपा की छवि धुमिल हुई और पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा।
दक्षिण बनाम उत्तर की लड़ाई का भी असर
सबसे बड़ा कारण दक्षिण बनाम उत्तर की बड़ी लड़ाई चल रही है। भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है और मौजूदा समय केंद्र की सत्ता में है। ऐसे में भाजपा नेताओं ने हिंदी बनाम कन्नड़ की लड़ाई में मौन रखना ठीक समझा। वहीं, कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने मुखर होकर इस मुद्दे को कर्नाटक में उठाया। नंदिनी दूध का मसला इसका उदाहरण है। कांग्रेस ने नंदिनी दूध के मुद्दे को खूब प्रचारित किया। एक तरह से ये साबित करने की कोशिश की है कि भाजपा उत्तर भारतीय कंपनियों को बढ़ावा दे रही है, जबकि दक्षिण के लोगों को किनारे लगाया जा रहा है।
आरक्षण का मुद्दा पड़ा भारी
ये भी एक बड़ा कारण हो सकता है। कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्ग में बांट दिया। पार्टी को इससे फायदे की उम्मीद थी, लेकिन ऐन वक्त में कांग्रेस ने बड़ा पासा फेंक दिया। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 फीसदी करने का एलान कर दिया। इसने भाजपा के हिंदुत्व को पीछे छोड़ दिया। आरक्षण के वादे ने कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचाया। लिंगायत वोटर्स से लेकर ओबीसी और दलित वोटर्स तक ने कांग्रेस का साथ दिया।
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