पहलवानी कराने वाला नवाबसिंह अखिलेश से नजदीकी से बना राजनीति का बड़ा खिलाड़ी,अब सब मिट्टी में

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Nawab Singh, who started wrestling, became a big player in politics due to his closeness to Akhilesh, now everything is in the dust.
अखिलेश यादव वर्ष 2012 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उसका सियासी रुतबा और बढ़ता चला गया।

कन्नौज। यूपी के कन्नौज जिले के एक छोटे से गांंव अड़ंगापुर से निकला नवाब​ सिंह यादव पहले से छात्र राजनीति इसके बाद अखिलेश यादव से साठगांठ करके यूपी की राजनीति का चर्चित चेहरा बनकर उभरा, लेकिन अपनी आपराधिक प्रवृत्ति के कारण किशोरी से छेड़छाड़ और दुष्कर्म की कोशिश में कानून के ऐसे शिकंजे में आया कि अब उसके सारे पुराने अपराध अपने आप खुलने लगे।

1999 से राजनी​ति में एंट्री

बात उन​ दिनों की है, जब 25 साल पहले सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने यहां से चुनाव लड़ा तो वह एक युवा कार्यकर्ता की तरह प्रचार— प्रसार करने लगा। ठीक एक साल बाद यहां हुए उपचुनाव में जब अखिलेश यादव पहली बार यहां से मैदान में उतरे तो वह साइकिल पर सवार होकर समर्थन जुटाता रहा।उसके बाद साल दर साल अपने सियासी कौशल के बूते वह सपा के वरिष्ठ नेताओं के करीब आता चला गया। इसी बीच एक बार वह वर्ष 2007 में कन्नौज सदर ब्लॉक का प्रमुख बना।2012 में उसने अपने छोटे भाई नीलू यादव को इस कुर्सी पर बैठाया। तभी अखिलेश यादव वर्ष 2012 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उसका सियासी रुतबा और बढ़ता चला गया।

डिंपल का भी रहा खास

अखिलेश यादव के इस्तीफा देने के बाद यहां हुए उपचुनाव में डिंपल यादव निर्विरोध सांसद चुनी गईं। तब नवाब सिंह और उसकी टीम पर ही आरोप लगा कि उसने दूसरे उम्मीदवारों को पर्चा भरने नहीं दिया। हालांकि यह आरोप कभी साबित नहीं हो सका।डिंपल के चुनाव जीतने के बाद यहां उनके हिस्से की जिम्मेदारी उसी ने संभाली। हालांकि कभी पार्टी ने उसे लिखित रूप से डिंपल का प्रतिनिधि तो नहीं बनाया, लेकिन जनता के बीच वह इसी पदनाम से पहचाना गया।

फिर सपा से खटास

अखिलेश के शासन में प्रशासनिक अधिकारियों तक को अपने अंटे में लेने वाला नवाबसिंह की बढ़ती महत्वाकांक्षा की वजह से सपा से दूरी बढ़ने लगी। इसकी शुरुआत हुई वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान। कहा जाता है कि तब नवाब सिंह यादव ने तिर्वा विधानसभा सीट से टिकट की मांग की। पार्टी ने मांग नहीं मानी। इससे खेमेबंदी शुरू हो गई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव यहां से चुनाव हारीं तो नवाब सिंह यादव पर दगाबाजी का आरोप लगा। तब सपा ने पूरी तरह से दूरी बना ली थी। कभी पार्टी की बागडोर संभालने वाले नवाब सिंह को पार्टी के ही कार्यक्रम की जिम्मेदारी से दूर किया जाने लगा।

2024 में फिर दोस्ती

पार्टी की बेरूखी के बाद भी पहलवान नवा​ब सिंह बतौर सपा नेता वह जनहित के मुद्दे पर धरना-प्रदर्शन करता रहा। इस बीच 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब खुद अखिलेश यादव ने यहां से दावेदारी की तो नवाब सिंह यादव ने उनके लिए प्रचार किया था। फिर चर्चा शुरू हुई कि दोनों के बीच नजदीकी बढ़ रही है।पिछले महीने 25 जुलाई को नवाब सिंह की मां का निधन हो गया तो अखिलेश यादव ने उस पर दुख जताया था। फिर यह माना जाने लगा कि दोनों के बीच जमा बर्फ पिघलने को है। अब इस प्रकरण के बाद पार्टी ने पूरी तरह से पल्ला झाड़ते हुए पार्टी का सदस्य मानने से भी इंकार कर दिया है।

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