भारत की उच्च शिक्षा बदलाव के मुहाने पर खड़ी है। आने वाले दिनों में सरकार कई ऐसे फैसले ले सकती है, जिनका देश के शिक्षण संस्थानों के संचालन के तौर – तरीकों पर गहरा असर पड़ सकता है। इन फैसलों से शिक्षा की गुणवत्ता में काफी सुधार होने की संभावना है। रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा लेकिन इसके साथ – साथ हायर एजुकेशन काफी महंगी हो जायेगी और यह आम लोगों की पहुंच से बाहर हो जायेगी।
विश्वविद्यालय संचालन के तौर – तरीकों में बदलाव
फिलहाल भारत के शिक्षण संस्थानों पर सरकार का नियंत्रण है। विश्वविद्यालय अपने फैसले लेने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं है क्योंकि इनकी ज्यादातर फंडिग सरकार से आती है। विश्लेषकों की माने तो 100 प्रतिशत फंडिग के साथ न तो जवाबदेही लायी जा सकती है और न ही विश्वविद्यालय या कॉलेज स्वतंत्र रूप से अपने हित में फैसले ले सकते हैं।
खुद से पैसे जुटाने के मुहिम में जुट चुके हैं कई संस्थान
देश के कई प्रतिष्ठित संस्थान खुद से पैसे जुटाने के मुहिम में जुट चुके हैं। इस लक्ष्य के लिए इन्होंने दो तरीका तलाशा है। एक पूर्व छात्रों से मिले अनुदान की राशि और दूसरा इंडस्ट्री स्पांसर्ड रिसर्च को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है।
आईआईटी दिल्ली ने 2025 तक इस मकसद से विशेष अभियान चला रखा है। ‘दिल्ली आइआइटी ग्लोबल एलमुनी इंडोमेंट फंड’ के नाम से चलने वाले इस अभियान के तहत पूर्व छात्रों से 7,000 करोड़ रूपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। आईआईटी दिल्ली के इस फैसले से पूरी तरह स्पष्ट है कि देश के शिक्षण संस्थान अब धीरे – धीरे सेल्फ फाइनांस मोड से संचालित होंगे।
आईआईटी के पूर्व छात्र लगातार दिखा रहे हैं रूचि
फ्लिपकार्ट के संस्थापक सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने आईआईटी दिल्ली को 125 करोड़ रुपया डोनेट करने की घोषणा की है। एयरलाइंस कंपनी इंडिगो के सह – संस्थापक राकेश अग्रवाल ने आइआइटी कानपुर को 100 करोड़ के रकम की राशि दान देने की घोषणा की। दिल्ली आईआईटी में अनंत यारदी ने 75 करोड़॰का अनुदान दिया है। आईआईटी मुंबई को वर्ष 2020 -21 में 77 करोड़ का अनुदान मिला है। पूर्व छात्रों से मिलने वाली राशि की सूची काफी लंबी है और इस तरह के प्रयोग देश के दूसरे शिक्षण संस्थान भी कर रहे हैं।
शिक्षण शुल्क में भी हो रही है लगातार वृद्धि
पिछले दस सालों में आईआईटी और आईआईएम जैसे शिक्षण संस्थानों के फीस में बेहताशा वृद्धि हुई है। अब शिक्षण संस्थान अपना फीस निर्धारण करने की तुलना में पहले से कहीं ज्यादा स्वतंत्र हैं। यह इस बात का संकेत है कि ज्यादातर अच्छे संस्थान सरकार के नियंत्रण से बाहर हो जायेंगे और उसके संचालन का जिम्मा ट्रस्ट के हाथों में चला जायेगा। दुनिया के दस सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में ज्यादातर यूनिवर्सिटी का संचालन सरकार नहीं करती है बल्कि एक ट्रस्ट करता है। भारत भी इस राह पर चलने की तैयारी कर चुका है।
लिबरल आर्ट्स में भी हो रहे हैं प्रयोग
एक तरफ जहां देश के तकनीक संस्थानों को लगातार सरकार से प्रोत्साहन मिल रही है। वहीं मौजूदा सरकार पर लिबरल आर्ट्स की पढ़ाई को अनदेखी करने का आरोप भी लगा है। देश के प्राय हर महत्वपूर्ण विभागों में आईआईटी का वर्चस्व है, लेकिन हाल के दिनों में देश के कई उद्योगपत्तियों ने मिलकर अशोका यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी, जो आर्ट्स विषयों को केंद्र में रखकर स्थापित किया गया था। मशहूर लेखक विनय सीतापति और अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यम जैसे नामचीन हस्तियों के साथ – साथ यहां कई लेखक भी इस संस्थान से जुड़ चुके हैं। एक ओर जहां तकनीक संस्थान को हर किस्म की मदद मिलती है। आर्ट्स विषय की पढ़ाई के लिए इस तरह के मॉडल लागू नहीं हो सकते हैं।
इंडस्ट्री स्पांसर्ड पीएचडी डिग्री को बढ़ावा
भारत में मिलने वाले पीएचडी डिग्री के गुणवत्ता पर हमेशा सवालिया निशान खड़ा होता आया है। इसके पीछे की वजह यह है कि पीएचडी के टॉपिक तय करने के दौरान अमूमन इस बात का ख्याल नहीं रखा जाता है कि इससे होने वाले रिसर्च का समाज या इंडस्ट्री में क्या उपयोगिता है ? एक किस्म से यह स्वांत सुखाय पीएचडी है, डिग्री पूरी होने के बाद उस टॉपिक पर आगे के शोध को बढ़ावा नहीं दिया जाता है, लेकिन अब जब शिक्षा को ज्यादा समाज उपयोगी और इंडस्ट्री के मांगों के अनुरूप डिजाइन करने की बात कही जा रही है, ऐसे में आने वाले दिनों में रिसर्च में भी कई तरह के बदलाव देखे जायेंगे।
लेखक जनसंचार विभाग, बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, धनबाद में सहायक प्रोफेसर है।
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