लखनऊ।UP politics कभी गुंडे माफिया की छवि वाली पार्टी, जिसके नेताओं के इशारे पर सरकार गिरने पर बसपा प्रमुख मायावती से सपा नेताओं ने राजधानी के गेस्ट हाउस में अभद्रता की थी। वहीं सपा अब कमजोर और अनुसूचित जाति की आवाज बनने का दिखावा कर रही है। वह शायद भूल गई एक दिन एक अनुसूचित जाति की बेटी से उसके नेताओं ने कितनी ज्यादती की थी। अब सत्ता पाने के लिए उसी वर्ग का अपना बनाने के लिए बेताब नजर आ रही है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव यह नहीं जानते जनता सब जानती है। कौन सी पार्टी कितना किस वर्ग का भला कर रही है।
पिछले दिनों राजधानी में हुई बसपा की रैली के बाद अखिलेश यादव की छटपटाहट कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। इसलिए उनका ध्यान भाजपा से हटकर बसपा के उभरते नेता आकाश आनंद पर टिक गई। वह अब उन पर गंभीर आरोप लगा रहे है। अखिलेश ने भाजपा-बसपा में साठगांठ का आरोप लगाते हुए कहा है कि बसपा के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद की जरूरत भाजपा को ज्यादा है।
बसपा प्रमुख ने साधा था पीडीए पर निशाना
बता दें बसपा प्रमुख मायावती ने 9 अक्तूबर को अपनी रैली में सपा के पीडीए अभियान पर खुलकर निशाना साधा था।सपा को अनुसूचित जाति पर अत्याचार करने वाली पार्टी बताया था तो कांग्रेस को संविधान की कॉपी लेकर नौटंकी करने का आरोप लगाया था। दरअसल सपा और बसपा ने वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था और उसके बाद से अखिलेश यादव, मायावती या उनके परिवार के राजनीतिक सदस्यों पर सीधा हमला करने से बचते रहे हैं। अब जब बसपा प्रमुख ने सीधे सपा पर हमला बोला तो अखिलेश यादव की बौखलहाट बढ़ गई, उन्होंने आकाश आनंद को निशाने पर लेने लगे है।
मुस्लिम और अनुसूचित जाति वोट पर नजर
सपा, कांग्रेस, बसपा और भाजपा समेत सभी छोटे बड़े प्रमुख दल अपने कोर वोटर के साथ ही मुस्लिम और अनुसूचितजाति के वोटरों को लुभाने में जुटे हुए है। राजनीति के जानकारों का कहना कि सपा अच्छी तरह समझती है वर्ष 2027 के चुनाव में सत्ता तक पहुंचने के लिए अनुसूचित जाति के मतदाताओं का साथ जरूरी है। कभी इस वोट बैंक पर बसपा का दबदबा रहा है, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में भाजपा ने इसमें अच्छी खासी सेंध लगाई। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा भी दलितों का वोट पाने में सफल रही। लेकिन बसपा को सपा के कोर वोटरों ने वोट नहीं दिया इसलिए मायावती सपा से ज्यादा नाराज है।
अब अनुसूचित जाति को लुभाने के लिए अखिलेश ने पार्टी नेताओं को दलितों के बीच सक्रियता बढ़ाने का न सिर्फ संदेश दिया है, बल्कि जहां कहीं भी दलितों के साथ अत्याचार हो रहा है, उसे प्रमुखता से उठाने का फैसला भी किया है। रायबरेली में वाल्मीकि युवक की हत्या इसका ताजा उदाहरण है।इसके अलावा सपा मुखिया अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे है। क्योंकि सभी को पता है 2027 में सत्ता की कुर्सी इसी दो वर्ग के वोट से हाथ लगने वाली है।
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