मां अंबे की अर्चना का दौड़ शुरू, पढ़िए कलश स्थापना के साथ ही अर्चना की विधि

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The race to worship Maa Ambe begins, read the method of worship along with the installation of the Kalash.
नवरात्रि में मां अंबे की अलग— अलग स्वरूपों में पूजा अर्चना होती है।

धर्म डेस्क।हिंदू धर्म का महापर्व चैत्र नवरात्रि मंगलवार से शुरू हो गया, सुबह से ही घरों के साथ ही मंदिरों में मां की अर्चना के लिए कलश स्थापना का दौड़ शुरू हो गया। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में मां अंबे की स्वरूपों में अलग- अलग पूजा अर्चना होती है। कमश:पहले दिन मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। नवरात्रि के बाद रामनवमी मनाई जाती है।

मां दुर्गा की पूजाविधि

पं. राकेश शास्त्री के अनुसार मां की पूजा अर्चना के लिए सर्वप्रथम पहले दिन घर को साफ-सुथरा करके मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वास्तिक बनाएं और सुख-समृद्धि के लिए दरवाजे पर आम और अशोक के ताजे पत्तों का तोरण लगाएं। माता की मूर्ति या तस्वीर को लकड़ी की चौकी या आसन पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर स्थापित करना चाहिए। मां दुर्गा की मूर्ति के बाईं तरफ श्री गणेश की मूर्ति रखें। फिर माता के समक्ष मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं, जौ समृद्धि व खुशहाली का प्रतीक हैं। मां की आराधना के समय यदि आपको कोई भी मंत्र नहीं आता हो तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ से पूजा कर सकते हैं व यही मंत्र पढ़ते हुए पूजन सामग्री चढ़ाए।

माता शक्ति का यह मंत्र अमोघ है। संभव हो तो देवी को श्रृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरूर चढ़ाएं । अपने पूजा स्थल से दक्षिण-पूर्व की तरफ घी का दीपक जलाते हुए ‘ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः। दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तुते’ यह मंत्र पढ़ें और आरती करें। देवी मां की पूजा में शुद्ध देसी घी का अखंड दीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है,नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट होती हैं, रोग एवं क्लेश दूर होकर सुख-समृद्धि आती है।

देवी मां के मंत्र

मान्यता है कि अगर नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के मंत्रों का जाप पूरे भक्तिभाव से किया जाए तो व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है,जीवन भय एवं बाधारहित हो जाता है और साथ ही समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।

  • सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
    शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
  •  ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
    दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
  • ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’

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