दानिश की सियासी दानिशमंदी कोई गुल खिलाएगी !

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Will Denmark's political recession blossom?
जनवरी के बाद संभावित आचार्य संहिता लग जाने से एजेंसियों की कार्यवाहियों का भी खतरा टल जाएगा।
  • दानिश बसपा को तोड़ेंगे या इंडिया से जोड़ेंगे !
  • इंडिया को बसपा नहीं मिली तो दानिश तो हैं !

नवेद शिकोह, लखनऊ। राजनीतिक समन्वय के अनुभवी बसपा सांसद दानिश अली के बहाने कांग्रेस बसपा के करीब जाने की कोशिश कर रही है। दूसरे नजरिए से देखे तो इसे प्रेशर पॉलिटिक्स भी माना जा सकता है। बसपा नहीं मानी तो राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर उभरे उसके सांसद दानिश अली को कांग्रेस अपना बना लेगी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी से अली की नजदीकियों से तो ऐसा ही लगता है। पार्टी सुप्रीमो मायावती कशमकश मे हैं, दबाव बढ़ रहा है। बसपा इंडिया गंठबंधन में शामिल नही हुई तो उनके सांसद टूट कर कांग्रेस के पाले में जा सकते हैं।‌ शामिल हो गईं तो सरकारी एजेंसियों को फ़ाइलें खोलने में देर नही लगेगी !इसलिए तीन-साढ़े तीन महीने के बाद ये सस्पेंस समाप्त होने की बात कही जा रही है। इस बीच राज्यों के विधानसभा चुनावी नतीजों से हवा के रुख को बहन जी जान चुकी होंगी। जनवरी के बाद संभावित आचार्य संहिता लग जाने से एजेंसियों की कार्यवाहियों का भी खतरा टल जाएगा। जानकारों का कहना है कि जनवरी में मायावती अपने जन्मदिन पर अंतिम एलान करेंगी कि वो लोकसभा चुनाव कैसे लड़ेंगी।

बसपा सांसद बदल सकते है पाला

ये खबरें आती रही हैं कि अच्छे-खासे बसपाई नहीं चाहते कि पार्टी सुप्रीमों मायावती के बयानों के मुताबिक बसपा अकेले बूते पर चुनाव लड़े। यदि अंततः बसपा बिना गठबंधन के चुनाव लड़ने पर अटल रही तो रिस्क से बचने के लिए कई बसपा सांसद पाला बदल सकते हैं।‌ यही कारण हैं कि अधिकांश बसपा सांसद माइंड मेकअप कर रहे हैं। पार्टी हिदायतों के खिलाफ कभी कोई बसपाई सांसद प्रधानमंत्री मोदी से मिल आया, कोई सपा प्रमुख अखिलेश से, कभी कोई बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश से तो कभी कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ नजर आया।‌

चर्चा में आने के बाद राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर छाए दानिश अली बसपा और कांग्रेस के बीच समन्वय स्थापित करेंगे या बची-खुची बसपा के के कुछ साथियों के साथ खुद ही कांग्रेस का हाथ थाम कर इंडिया गठबंधन की ताकत बन जाएंगे, दानिश की सियासी दानिशमंदी क्या रंग लाएगी ये समय बताएगा ?प्रत्यक्ष तौर पर बसपा इंडिया गठबंधन के पाले में आने को तैयार नहीं लेकिन यूपी के अमरोहा से बसपा के सांसद दानिश अली भाजपा सांसद की विवादित टिप्पणी के बाद कांग्रेस सहित पूरे इंडिया गंठबंधन की आंखों के तारे बन गए हैं।‌ लगने लगा है कि अली इंडिया गठबंधन के हिस्सा हैं। संसद में जब से उन पर भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने असभ्य और बेहद अशोभनीय टिप्पणी की तब से वो राहुल गांधी के क़रीब होते और मायावती से दूर होते नज़र आ रहे हैं।

बसपा का एक अघोषित प्रोटोकाल

बसपा इंडिया मे आने की गुज़ारिश ना मानी तो कांग्रेस बसपा के इस चर्चित सांसद को इंडिया गठबंधन की ताकत बना सकती हैं। वैसे भी इधर कई वर्षो के दौरान अधिकांश पुराने बसपाई अपनी पार्टी का साथ छोड़कर इधर-उधर जा चुके हैं।‌ मौजूद वक्त में पार्टी के ज्यादातर सांसद पार्टी के सख्त नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। बसपा का एक अघोषित प्रोटोकाल/सख्त नियम हैं। जिसके तहत दूसरे दल के किसी नेता से शिष्टाचार भेंट को भी अनुशासनहीनता की कैटागिरी में रखा जाता है।

बसपाई सूत्र बताते हैं कि कड़े निर्देश हैं कि बसपा का कोई भी नेता पार्टी सुप्रीमो की अनुमति के बिना बार-बार मीडिया में कोई बयान नहीं दे सकता। इसलिए किसी ख़ास मौके पर मीडिया घेर ही ले तो बहन जी की नीतियों और खूबियों को दोहराकर सीमित और संक्षिप्त जवाब के साथ सवालों को टालना बसपा नेताओं का हुनर है। इसे मजबूरी या पार्टी नियम या प्रोटोकाल की बंदिश भी कह सकते हैं।

दानिश को न्याय दिलाने की मुहिम

विशेष सत्र में बिधूड़ी अपशब्द घटना के बाद दानिश अली लगातार मीडिया से मुखातिब हैं। हर बड़े न्यूज चैनल, न्यूज एजेंसियों और अखबारों में विस्तृत बयान और इंटरव्यू दे रहे हैं।‌ अपनी पार्टी की सुप्रीमो का नाम लेने के बजाय बसपा सांसद राहुल गांधी के सपोर्ट का शुक्रिया अदा कर रहे हैं। बता दें कि संसद को शर्मशार करने वाली बिधूड़ी की अशोभनीय टिप्पणी के बाद राहुल गांधी दानिश अली के घर पंहुच गए और उनके साथ खड़े होने का हौसला दिया। राहुल ने उन्हें गले लगाया और इस तस्वीर को ट्वीट कर लिखा था- “नफरत की दुकान में मोहब्बत की दुकान”। इसके बाद कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के तमाम नेताओं ने दानिश को न्याय दिलाने की मुहिम तेज कर दी।

गठबंधन के विभिन्न दलों के सांसदों ने लोकसभा स्पीकर को पत्र लिखकर विधूड़ी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। जबकि भुक्तभोगी सांसद की पार्टी की सुप्रीमों का बयान अन्य दलों की अपेक्षा लचीला था। मायावती ने इस घटना की निंदा और विधूड़ी के खिलाफ कार्रवाई की मांग से पहले भाजपा के एक बड़े नेता द्वारा इस घटना की निंदा और आपत्तिजनक टिप्पणी को सदन की कारवाई से हटा देना का जिक्र किया। इसके बाद गैर इंडिया गठबंधन के नेताओं के साथ दानिश अली की नजदीकियों को देखकर बसपा सुप्रीमो के भतीजे आनंद शेखर ने दो दिन बाद संसद की इस घटना को लेकर अपने सांसद के समर्थन में और भाजपा के विरुद्ध बोलना मुनासिब समझा।

बसपा को इंडिया में लाने की मुहिम

गौरतलब है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में भाजपा को टक्कर देने के लिए और दलित समाज का विश्वास जीतने के लिए बसपा को इंडिया गठबंधन में लाने की कोशिश में हार नहीं मान रही है। बावजूद इसके कि बसपा सुप्रीमों एक बार नहीं कई बार दोहरा चुकी हैं कि उसकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। सत्तारूढ़ भाजपा से ज्यादा वो कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को लेकर तल्ख़ नज़र आ रही हैं। और तो और बहन जी इंडिया गंठबंधन के नाम को लेकर ही काफी आक्रोशित हैं। उन्होंने विपक्षी दलों के इस गठबंधन के नाम पर ही आपत्ति दर्ज करते हुए कहा था कि न्यायालय को इसका संज्ञान लेना चाहिए है। इसके बावजूद कांग्रेस की कोशिश है कि वो बसपा को गठबंधन का हिस्सा बना लें। बताया जाता है कि इस उम्मीद से ही पूर्व बसपाई और वर्तमान में यूपी कांग्रेस नेता बृजलाल खाबरी और नसीमुद्दीन सिद्दीकी को क्रमश यूपी प्रदेश अध्यक्ष और यूपी मीडिया सेल प्रभारी पद से हटा कर हाशिए पर ला दिया। चंद्रशेखर आज़ाद रावण को भी इंडिया गठबंधन की किसी बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया।

बसपा से अखिलेश होंगे असहज

यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल सपा के अखिलेश यादव भी कांग्रेस द्वारा बसपा को गठबंधन में लाने की सुगबुगाहट से असहज होते दिखाई देने लगे। रविवार को अखिलेश ने कांग्रेस पर दबाव बनाने वाला एक और बयान दिया और कहा कि यूपी में कोई हमारी सीटें नहीं तय करेगा बल्कि हम तय करेंगे कि किसको कितनी सीटें देना हैं। सपा मुखिया के बयान को किसी गठबंधन के घटक दल की अनुशासनहीनता माना जा रहा है। क्योंकि राष्ट्रीय लेबल पर सेंट्रलाइज्ड गठबंधन की समन्वय कमेटी ही सबकी सीटे निर्धारित करने का अधिकार रखती है। कोई घटक दल अपनी ताकत के मुताबिक अधिक से अधिक सीटें मांगने का प्रस्ताव तो रख सकता है लेकिन अपनी सीटें खुद तय करना या दूसरो को कितनी सीटें दी जाएं, ये हक़ किसी भी घटक दल को हासिल नहीं होता। ये सब तय करने का अधिकार समन्वय कमेटी का होता है।

गालियां भी अक्सर आशीर्वाद बन जाती हैं

इंडिया गठबंधन यूपी में अपने गठबंधन का क्या स्वरूप तैयार करेगा ये अभी स्पष्ट नहीं है। इस बीच बसपा सांसद को संसद में भाजपा सांसद द्वारा दी जाने वाली गालियां सियासत का चारा बन गई हैं। गालियां अक्सर आशीर्वाद भी बन जाती हैं। इन दिनों सियासत के केंद्र में आने वाले अली को पहले कम ही लोग जानते थे। हालांकि वो पढ़े लिखे अनुभवी राजनेता हैं। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के करीबी रहे हैं और उन्हें राजनीति समन्वय का अनुभव प्राप्त है। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन में वो बसपा की सीट पर अमरोहा से चुनाव लड़े थे। भाजपा की लहर में भी उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर 63 हजार मतों से हराया था। बावजूद इसके देश की आम जनता उन्हें कम ही जानती थी।

स्टार से कम नहीं दानिश

वो कभी राष्ट्रीय राजनीति की सुर्खियों में आकर आम जनमानस की चर्चा में नहीं आए थे। कुछ ही समय में सांसद बिधूड़ी ने उन्हें विपक्षी ख़ेमे का स्टार बना दिया। देश-दुनिया में उसकी चर्चाएं सिर चढ़ कर बोलने लगी। भाजपा विरोधियों की हमदर्दी के बेशकीमती मोती उनपर कुर्बान होने लगे। शोहरत और सुर्खियों के राजमहल के कुंवर बन गए कुंवर दानिश अली। संसद की कार्यवाही खत्म होते ही विपक्षी खेमें के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी उनके घर पंहुच गए।

बसपा सांसद के पक्ष में और भाजपा सांसद के खिलाफ सांसदों/नेताओं की चिट्ठियां लोकसभा अध्यक्ष को पहुंचने लगी। लोकसभा चुनाव की घोषणा छह माह के अंदर हो सकती है। इस बीच भाजपा से लड़ने के लिए दानिश अली बसपा की ताकत बनेंगे ? बसपा और कांग्रेस के बीच दोस्ती का समन्वय स्थापित कर बसपा को इंडिया गंठबंधन में शामिल होने का सेतु बनेंगे या बसपा छोड़ वो कांग्रेस में शामिल होकर इंडिया गठबंधन के स्टार प्रचारक बनेंगे ?इन दिनों ऐसी चर्चाएं सियासी कयासों के चौपालों का हिस्सा बनी हैं।

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