स्मृति कवि-कथाकार मीना सिंह का जाना,मुझे अंधेरे में भय नहीं/ मैं भोर की उजास हूं’

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Memorial poet-storyteller Meena Singh's death, I am not afraid of darkness / I am the light of dawn
कवि-कथाकार मीना सिंह(फाइल फोटो)

लखनऊ । कवि व कथाकार मीना सिंह (जन्म – 19 दिसंबर 1950) नहीं रहीं। 14 जून को उनका निधन हुआ। उनके निधन की खबर दिल पर हथौड़े की चोट करने वाली थी। उनसे बातें होती और वह भी लंबी लंबी लेकिन अपना दुख उन्होंने कभी शेयर नहीं किया। हमेशा अपने जीवन साथी की बीमारी की चर्चा करती, हमलोगों का हाल चाल लेती। कभी मुलाकात नहीं हुई लेकिन लगता कि हमारी बहुत पुरानी जान-पहचान है। हम एक परिवार के हों। उनका इस तरह जाना आहत कर गया है। अपनी एक कविता ‘भोर का उजास’ में वे कहती हैं – ‘मुझे अंधेरे में भय नहीं/ मैं भोर की उजास हूं /तुलसी के चौरे पर/ जल रहे धूप दीप की सुगंध /जिसमें नहाता है लौटता हुआ चांद/ उगता हुआ रक्तिम मुख वाला सूरज’।

साहित्य समाज से कटने का उन्हें दुख था

मीना सिंह साहित्य लेखन के क्षेत्र में काफी सक्रिय थीं।उनकी शिकायत भी रहती कि उनके लिखे पर मैं कुछ लिख नहीं रहा हूं। उनकी स्मृतियां बहुत अच्छी थीं। वह बताती कि भले हम आपस में ना मिले हों लेकिन 70 के दशक में दिल्ली के मदन मोहन के संपादन में निकलने वाला साझा संकलन ‘संदर्भ’ में हम दोनों की कविताएं साथ-साथ छपी हैं। साहित्य से गहरा अनुराग था। यहीं उनको जीवन मिलता, जीने की ताकत मिलती। बोत्सवाना में 14 वर्ष रहने के बाद स्वदेश लौटी। यहां के साहित्य समाज से कट जाने का उन्हें दुख भी था। इसलिए जिंदगी के बचे हुए समय का पूरा सदुपयोग करना चाहती थी। खूब लिख रही थीं। इस दौरान कई किताबें आईं। उन्होंने 500 से अधिक कविताओं की रचना की और करीब 50 कहानियां लिखीं। पटना और भोपाल के आकाशवाणी केंद्रों से उनकी रचनाएं प्रसारित भी हुईं।

काली कविताएं

मीना सिंह का पहला कविता संग्रह ‘भूकंप में आत्मसमर्पण’ 1990 में आया। उसके बाद एक लंबा अंतराल रहा। कोई कृति नहीं आई। इसकी वजह उनका भारत से बाहर रहना था। लेकिन उनका लिखना बंद नहीं हुआ। वह जारी रहा। भारत लौटने के बाद 2019 में दो संग्रह आये – ‘दूसरी हथेली पर’ और ‘मुआवजे का आभार’। इसी तरह 2021 में भी कविता की दो किताबें आईं – ‘काली कविताएं : दक्षिणी भूखंड और मैं’ तथा कोरोना काल के दौरान लिखी कविताओं का संकलन ‘अशुभ वेला की शुभ कविताएं’। 2021 में ही उनकी कहानियों का संग्रह ‘अंधेरी सुरंग’ छप कर आया। उसके बाद आया ‘प्याज और अन्य कहानियां’। 1992 में उनकी आलोचना पुस्तक ‘ललित शुक्ल : रचना के अग्निपथ’ भी आया था।

‘मीना सिंह का नवीनतम कविता संग्रह है ‘इस बार उनके लिए’। यह उनका छठा कविता संग्रह है जो हाल में हंस प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ। इसमें उनकी करीब 76 कविताएं संकलित हैं। ये विभिन्न रंग की हैं। इस संग्रह को उन्होंने ‘समय के थपेड़ों से जूझते इंसानों को समर्पित’ किया है। स्पष्ट है कि मीना सिंह की संवेदना उन लोगों से जुड़ती है जो समय के थपेड़े सहते हैं, उससे जूझते हैं और हारते नहीं हैं। उनका संघर्ष अनवरत चलता रहता है। मीना सिंह जी का स्वयं का व्यक्तित्व ऐसा ही रहा है। वह स्वयं भी ऐसे थपेड़ों से जूझती रही हैं। इसी जद्दोजहद से उनकी कविता की रचनात्मक स्थितियां सृजित होती हैं।

आज की सच्चाई  कंक्रीट के जंगल

इस संग्रह की पहली कविता है ‘मोरनी की चाल’। इसमें कवि की चाह व्यक्त हुई है। मोरनी को नृत्य के लिए रिमझिम बारिश चाहिए पर यहां तो कंक्रीट का जंगल है: ‘जाने कब से तृषित है मन/ गमलों के पौधों के सुकुमार चेहरे भी लटक गए हैं’ । यही है आज की सच्चाई कि कंक्रीट के जंगल में पड़ गया है सूखा। जब हमने जंगल काट दिए और उसकी जगह कंक्रीट का जंगल उगा दिया तो बारिश की उम्मीद करना बेमानी है।

मीना सिंह की कविताओं के शीर्षक गौरतलब हैं। वे हैं – लहरों की तरंगों में एक दिन, मूसलाधार बरसात में, आकाश की ओरी के नीचे, मछली के पंख, फिर मेह बरसा, मौसम की कथा, आंख की कोर का भींगना, उम्मीदों की राख तले, बरसात में, सर्द मौसम में, मजदूर हूं मजबूर नहीं, दलदल से दलदल तक, उम्मीदों की राख तले, जिंदगी के कछार में आदि। संग्रह की आखिरी कविता है ‘कब तक’ जिसमें वे कहती हैं ‘और हम/ कुछ बदलने के इंतजार में /बस इंतजार कर रहे हैं इस प्रश्न के साथ/ कि कब तक?’

यथार्थ की निर्मम पृष्ठभूमि

‘मोरनी की चाह’ से लेकर ‘कब तक’ में अनेक भाव, विचार और संवेदना की कविताएं हैं। इनसे गुजरते हुए महसूस होता है कि मीना सिंह जी ने जो जीया है, भोगा है, सहा है, सोचा है उसे ही गुना है और कविता में पिरोया है। यह उनके जीवनानुभवों की कविता है। यही बात भूमिका में ओम निश्चल भी कहते हैं ”इस बार उनके लिए – कविता संग्रह में जीवन जगत और समाज से पाए और कमाए हुए अनुभव है। यथार्थ की निर्मम पृष्ठभूमि में जब कल्पना जगत में सांस लेने वाला कवि कदम रखता है तो वह उसके बीहड़ परिदृश्य से दुखी होता है। यह संग्रह भी मोरनी की उस तृषा से आरंभ होता है जिसे केवल बादल ही बुझा सकता है। पर मौसम विपरीत हो तो कंक्रीट के जंगल में सूखा ज्यादा नजर आता है।”

मीना जी ने बहुत लिखा और लिखना जारी था । उनके अचानक चले जाने से विराम लग गया। वह नहीं हैं फिर भी अपनी कृतियों के माध्यम से हमारे दिलों में जिंदा रहेंगी। उनकी स्मृति को सादर नमन।

– कौशल किशोर मोबाइल – 8400208031

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