नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह के लिए उस समय अपने परिवार के सदस्यों को जवाब देना मुश्किल हो गया था जब उनका नाम आतंकियों के साथ जोड़ा जा रहा था। बकौल संजय सिंह उनकी बेटी ने भी उनसे सवाल किया था। उन्होंने बताया कि उन पर लगे झूठे आरोपों की जांच-परख किए बगैर खबरिया चैनलों पर चली खबरों को लेकर उन्हें अनेक बार मानसिक संताप से गुजड़ना पड़ा। संजय सिंह यहां प्रेस क्लब में शनिवार को आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। मीडिया ट्रायल और चरित्र हनन के विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिल्ली प्रदेश प्रवक्ता आदित्य झा, कई चर्चित आपराधिक मामलों में अदालती कार्यवाही में पक्षकारों की तरफ से शामिल हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद दुबे समेत कई बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे।
आपबीती सुनाते हुए संजय सिंह ने कहा, ’’बेबुनियाद आरोपों के कारण मुझे कई बार मानिसक पीड़ा के दौर से गुजरना पड़ा। आतंकियों से नाम जोड़े जाने के झूठे आरोप लगने पर मेरी बेटी ने भी मुझसे सवाल किया।’भाजपा प्रवक्ता आदित्य झा ने भी कुछ घटनाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि आपराधिक मामलों के आरोपी के खिलाफ चलने वाले मीडिया ट्रायल के चलते व्यक्ति की सामाजिक हत्या हो जाती है। बुद्धिजीवियों ने कहा कि सनसनीखेज हत्या, बलात्कार और हाल ही में चर्चा में आए ’मी टू’ के हाई प्रोफाइल मामलों में चलने वाले मीडिया ट्रायल के कारण अक्सर कानून को अमल में लाने वाली एजेंसियों यहां तक कि न्यायपालिका भी इस ढंग से दबाव में आ जाती है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद दुबे ने कहा कि जब तक प्रथम दृष्टया यथोचित साक्ष्य न मिले तब तक खबर प्रकाशित करने से बचना चाहिए क्योंकि बगैर साक्ष्य के आधार पर खबर प्रकाशित करने वालों पर भारतीय संविधान में अभियोग चलाने की व्यवस्था है। वरिष्ठ पत्रकार और प्रेस क्लब आफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने मीडिया की भूमिका और जिम्मेदारी पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा ने कहा कि मीडिया ट्रायल और पुलिस पर बढ़ते दबाव के कारण कभी-कभी बेबुनियाद सबूतों के आधार पर चार्जशीट बन जाती है। ऐसे मामलों की सुनवाई में तेजी लाने पर यह देखा गया है कि अक्सर न्याय नहीं मिलता है।