आगरा। यूपी के राजनीति में इस समय काफी हलचल चल रही है। कोई भी राजनीतिक दल इस चुनाव को हल्के में नहीं लेना चाहते है। भाजपा जहां अपने काम के जरिए मैदान में उतरने की तैयारी में है वहीं दूसरी योजना के तहत प्रदेश में जातिवाद के कार्ड को भी पीछे नहीं छोड़ना चाहती। वहीं प्रभु राम के शरण में भाजपा पहले से ही है। जातिगत मतदाताओं को भाजपा से जोड़ने के लिए ही भाजपा आलाकमान के इशारे पर उत्तराखंड की राज्यपाल बेबीरानी मौर्य का इस्तीफा दिलाया गया है। अब माना जा रहा है। भाजपा उन्हें फिर सक्रिय राजनीति में उतारेगी।
मालूम हो कि बेबीरानी मौर्य ने आगरा से राजनीतिक सफर की शुरूआत की थी। वह 1995 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुई थीं। वे 1997 में भाजपा के राष्ट्रीय अनुसूचित मोर्चा की कोषाध्यक्ष थीं। मौर्य 2002 में राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य भी रहीं। इसके बाद उत्तराखंड की राज्यपाल बनाईं गईं। विधानसभा चुनाव से उन्होंने राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे को मिशन 2022 की रणनीति का अहम हिस्सा माना जा रहा है।
सियासी गलियारों में हलचल तेज
आगरा की पूर्व मेयर बेबीरानी मौर्य के उत्तराखंड की राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के साथ ही आगरा के सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है। उनके सक्रिय राजनीति में लौटने की अटकलें तेज हो गई हैं। कयास यह भी है कि उन्हें अनुसूचित बहुल जिले की किसी सीट से चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। राज्यपाल रहते हुए भी वह आगरा में सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होती रहीं है, उनका आगरा से जुड़ाव बना रहा।
आगरा के छावनी क्षेत्र की रहने वाली बेबीरानी मौर्य के इस्तीफे के साथ ही राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं शुरू हो गईं हैं। राज्यपाल बनने से पहले उन्हें बाल आयोग का सदस्य भी बनाया गया, लेकिन इसी बीच उन्हें उत्तराखंड के राज्यपाल की जिम्मेदारी दे दी गई। राज्यपाल रहने के दौरान भी तीन साल में लगातार आगरा से संपर्क बनाए रखा। वह यहां कई सामाजिक कार्यक्रमों में शिरकत करने आती रहीं।
राजनीतिक सफर
गुप्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा अनुसूचित जाति की उच्च शिक्षित महिला नेता के तौर पर उन्हें छावनी विधानसभा या आगरा ग्रामीण की सुरक्षित सीट से चुनाव मैदान में उतार सकती है। कयास यह भी हैं कि उन्हें राज्य स्तर पर सांगठनिक कार्यों में जिम्मेदारी दी जा सकती है। पार्टी से जुड़े लोगों का कहना है कि पूर्व राज्यपाल के रूप में भी वह चुनाव में स्टार प्रचारक की भूमिका निभा सकती हैं।
आपकों बता दें कि भाजपा से जुड़ने के बाद बेबीरानी मौर्य 1995 में पहली महिला मेयर बनीं। इसके बाद भी वह भाजपा में सक्रिय रूप से काम करती रहीं। वर्ष 2007 में एत्मादपुर से विधानसभा चुनाव लड़ी मगर जीत नहीं सकीं। वह राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य रहीं। इसके बाद भाजपा के अनुसूचित मोर्चा में राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाली। वह लगातार भाजपा में सक्रिय रहीं।
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