_जसम की ओर से कथा गोष्ठी_ *फरजाना महदी द्वारा कहानी ‘आउटसाइडर’ का पाठ*

लखनऊ, 13 जनवरी। जन संस्कृत मंच (जसम) की ओर से तहसीनगंज (ठाकुरगंज) में आयोजित मासिक गोष्ठी में कथाकार फरजाना महदी ने अपनी नई कहानी ‘आउटसाइडर’ का पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता इतिहासकार व अनुवादक असगर मेहंदी ने की।

कहानी मुस्लिम संप्रदाय के प्रति समाज में बढ़ रहे अलगाव, निर्ममता व नफ़रत के भाव को सामने लाती है। इसका केंद्रीय पात्र सैफुद्दीन है। उसे शहर में सिर छुपाने के लिए न मकान मिल पाता है और न कोई काम-धंधा। एक दलाल के माध्यम से उसे मकान और रोजगार तब हासिल हुआ, जब वह सैफुद्दीन से सोनू सिंह बन गया। उसकी पत्नी रुखसाना को भी लोगों के बीच हिंदू नाम रखना पड़ा तथा मांग में सिंदूर लगाना पड़ा। वे हिन्दू मोहल्ला में इसी पहचान से रह रहे थे।

सैफुद्दीन के जीवन में उथल-पुथल तब मचता है जब उसके अब्बू उससे मिलने गांव से शहर आते हैं। उन्हें पता चलता है कि वह इसी मोहल्ले में रह रहा है। वे उसका नाम पुकारते हैं ताकि उनकी आवाज़ बेटे तक पहुंच जाए और वह अब्बू की आवाज सुनकर मिलने आए। बेटे के लिए यह संकट है कि अब्बू के सामने आते ही उसकी अपनी असलियत भी सामने आ जाएगी। एक मुसलमान का मुहल्ले में होने और अपने बेटे को आवाज देने से हिंदुओं की इस बस्ती के लोगों के अन्दर नफ़रत व क्रूरता का भाव उभर आता है। वे उस बुजुर्ग से बदसलूकी करते हैं। कोई पाकिस्तानी कहता है तो कोई आतंकवादी। उसके थैले में बम और गोमांस होने का अफवाह लगा लोग उस पर टूट पड़ते हैं। उस बुजुर्ग को फुटबाल बना देते हैं। सैफुद्दीन से अब्बू की हालत नहीं देखी जाती। वह उनके सामने जब आता है तो अब्बू को सच्चाई समझने में देर नहीं लगती कि बेटा को किन हालातों में शहर की हिंदू बस्ती में रहना पड़ रहा है। वे किसी तरह जान बचा करके भागते हैं।

कहानी पर चर्चा भी हुई। शैलेश पंडित, कौशल किशोर, भगवान स्वरूप कटियार, विमल किशोर, सत्य प्रकाश चौधरी, राकेश कुमार सैनी, अशोक श्रीवास्तव आदि ने अपने विचार प्रकट किए। उनका कहना था कि हालात ऐसे हैं जब मुस्लिम समाज को शक और सुबहा के दायरे में लाकर उसे आउटसाइडर बना दिया गया है। कहानी इस यथार्थ को बड़े ही मार्मिक और संवेदनशील तरीके से व्यक्त करती है। समाज का संप्रदायिकीकरण हुआ है तथा संप्रदायों का राजनीतिकरण। नफरत और विभाजन मूल्य बनता जा रहा है। आपसी सद्भाव और भाईचारा संकट में है। यह चिंता की बात है। कहानी इस यथार्थ को सशक्त तरीके से व्यक्त करने में सफल हुई है। वक्ताओं ने इस यथार्थपरक कहानी के लिए कथाकार फरजाना महदी को बधाई दी।

इस मौके पर ‘तज़किरा’ पत्रिका के दूसरे अंक को भी जारी किया गया। यह पत्रिका नए विमर्श के दरवाजे खोलती है तथा बहस-मोबाहिसे की जरूरत को सामने ले आती है। इसके प्रधान संपादक असगर मेहंदी हैं। वहीं, संपादक फरजाना मेहंदी और कला संपादक हैं शहजाद रिज़वी।

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