नवेद शिकोह, लखनऊ। ना जाने कितने ही राजाओं के तस्किरे सुने लेकिन हक़ीक़त में देखा एक ही राजा। इस राजा को हम राजा महमूदाबाद के नाम से जानते हैं। अस्सी बरस की उम्र में ये राजा भी अपने महल, रियासत और मिल्कियत छोड़ कर खाली हाथ चला गया। अन्य राजाओं की तरह अब ये भी किस्सों-कहानियों का हिस्सा बन जाएंगे। लखनवी कुर्ता, अचकन, शेरवानी-चूड़ीदार पैजामे..जैसे पारंपरिक लिबास में ये राजा अब हकीकत में कभी नज़र नहीं आएगा।
मौत सबसे बड़ बलवान
मौत की हक़ीक़त के आगे किसी राजा महाराजा की भी नहीं चलती। ये अकेले ऐसे राजा थे जिनकी हयात (जिन्दगी) थी, वो भी मौत के हमराह हो गए, मरहूमों में शामिल हो गए। राजा महमूदाबाद से मशहूर इनका पूरा नाम था- अमिर मोहम्मद ख़ान सुलेमान मियां। वैसे तो इन्हें महमूदाबाद के राजा के तौर पर जाना जाता था लेकिन इनकी सल्तनत- रियासत और मिल्कियत लखनऊ तक फैली हुई हैं। खासकर लखनऊ के तमाम ख़ास इलाक़े की तारीखी जगहों के ये मालिक थे। हजरतगंज भी इसके अधिकार क्षेत्र मे रहा। कहा जाता है कि करीब आधा हजरतगंज इनका है।
संस्कृति को जिन्दा रखने की भावना
यहां के बाजार की दुकानें राजा साहब की पुश्तैनी जमीन का हिस्सा हैं। इसी तरह शहर के तमाम ख़ास इलाकों पर इनकी कोठियां-हवेलियां पुरानी रवायतों की आखिरी निशानी है। गरीबों की मदद का जज़्बा, सोशल वर्क, गंगा जमुनी तहज़ीब, अदब, ज़बान, संस्कृति को जिन्दा रखने की भावना, वतनपरस्तई, मज़हबी फराइज (कर्तव्य) निभाने में भी वो राजा थे। राजा साहब शिया मुसलमान थे और हज़रत इमाम हुसैन की याद में मोहर्रम की अज़ादारी में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। वो ख़ुद भी बेहतरीन मर्सियाख़ान थे। (कर्बला की जंग को वर्णित करने वाले उर्दू साहित्य मर्सियां को एक ख़ास अंदाज़ में पेश करने वाले को मर्सियाख़ान कहते हैं।)
लखनऊ की बारादरी में उनकी एतिहासिक कोठी राजा महमूदाबाद हाउस के नाम से मशहूर है। दर्जनों मशहूर फिल्मों की शूटिंग भी इसमें हुई है। जिसमें कुछ समय पहले सदी के नायक अमिताभ बच्चन की फिल्म गुलाबो सिताबो की भी शूटिंग हुई थी।सीतापुर जिले के महमूदाबाद नगर में मोहर्रम के मशहूर जुलूस और लखनऊ की तारीखी मजलिसें राजा साहब ने शुरू की थीं। ये आयोजन आज भी मोहर्रम की रौनक का हिस्सा हैं।
खाली हाथ ही दुनिया छोड़कर चले गए
1985 में राजा साहब कांग्रेस से महमूदाबाद विधानसभा में विधायक रहे। 2006 मे सरकारी आंकलन के मुताबिक इनकी सम्पतियों की कीमत पचास हजार करोड़ है। लखनऊ के हजरत गंज से लेकर कैसरबाग बारादरी के महमूदाबाद हाउस और बटलर पैलेस सार्वाधिक मशहूर है। लेकिन सच ये भी है कि अमीर मोहम्मद ख़ान उर्फ राजा महमूदाबाद हर शख्स की तरह इस दुनियां में ख़ाली हाथ ही आए थे और खाली हाथ ही दुनिया छोड़कर चले गए। पचास हजार करोड़ से ज्यादा की सम्पतियों, महलों और सैकड़ों एकड़ जमीन के मालिक हर राजा-महाराजा की तरह छह बाई चार फीट ज़मीन की क़ब्र की ख़ाक में राजा महमूदाबाद भी हमेशा-हमेशा के लिए दफ्न हो जाएंगे। बस इनकी तहज़ीब, ख़िदमात,परंफराएं और अखलाक (कुशल आचरण और व्यवहार) की सम्पत्ति ही ज़िन्दा रहेगी।
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