नवेद शिकोह, लखनऊ । चंद घंटों के बाद शुरू होने वाला 2023 सियासी सरगर्मियों और चुनावों के नाम होगा। इस वर्ष देश के क़रीब दस राज्यों में चुनाव हो सकते हैं। 2024 के शुरू में ही लोकसभा चुनाव होने हैं इसलिए 2023 को लोकसभा का चुनावी वर्ष भी मान सकते हैं। इसी साल लोकसभा चुनाव के रण की तैयारी भी होगी और विभिन्न सूबों में विधानसभा चुनावों का भी तांता लगा रहेगा। आबादी के लिहाज़ से देश के सबसे बड़ा सूबे उत्तर प्रदेश का निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण प्रकरण के बाद काफी अहम और चर्चित हो गया है। ये चुनाव भी 2023 में ही होना है।
दिल्ली की कुर्सी समेत सबसे अधिक सूबों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सत्ता है इसलिए अपनी हुकुमतों को बचा पाने के लिए भाजपा के लिए आगामी वर्ष बेहद चुनौतीपूर्ण और सियासी व्यस्तता भरा होगा। कांग्रेस और भाजपा विरोधी तमाम क्षेत्रीय दलों के लिए 2023 करो या मरो के संघर्ष से भरा होगा। भाजपा जैसे शक्तिशाली दल से लड़ने के लिए आगामी वर्ष में विपक्षी दलों की एकजुटता के प्रयास किसी बड़ी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे।
2024 की खाींच जागी लाइन
विभिन्न राज्यों के चुनावी नतीजे लोकसभा चुनाव के नतीजों की आशंकाएं बताएंगे। मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मेघालय त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम और जम्मू कश्मीर में भी 2023 में चुनाव हो सकते हैं।राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार वापसी का संघर्ष करेगी और मध्यप्रदेश में भाजपा को ये संघर्ष करना होगा। 2018 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस जीती थी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ तमाम कांग्रेसी विधायकों की बगावत ने भाजपा सरकार बनवा दी।
छत्तीसगढ़ एक ऐसा सूबा है जहां कांग्रेस ने मजबूती से जीत हासिल की थी और भाजपा की करारी हार हुई थी। 2018 के खंडित जनादेश के बाद कर्नाटक का सियासी नाटक सबको याद होगा। यहां किसी को बहुमत नहीं मिला था। पहले कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन दिया और कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। फिर बाद में तमाम उठापटक के बाद भाजपा ने कर्नाटक में सरकार बनाने में सफलता हासिल कर ली थी।
क्षेत्रीय दल बनाम राष्ट्रीय दल
ऐसे ही देश के कई राज्यों में कांग्रेस, भाजपा और क्षेत्रीय दलों का कॉकटेल जनाधार विधानसभा चुनावों में ये भी तय करेगा कि किस क्षेत्रीय दल का किस राष्ट्रीय पार्टी से कैसा रिश्ता है !2023 में लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों की तैयारियों की बेला में सरकारें जनकल्याणकारी योजनाओं की झड़ी से जनता को लुभाने का भरपूर प्रयास करेंगे।
इसके अतिरिक्त चुनावी सियासत ध्रुवीकरण के प्रयास और भावनात्मक कार्ड खेलने का माहौल भी पैदा कर सकती है। 23 में ही अयोध्या में निर्माणाधीन राममंदिर का निर्माण भी पूरा हो जाने की पूरी संभावना है। और 23-24 में बहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित राम मंदिर में दर्शन के लिए रामभक्तों का प्रवेश भी प्रारंभ हो जाएगा। इसके अतिरिक्त संभावना है कि समान नागरिक कानून पास करवाकर भाजपा चुनावों में लाभ लेने का प्रयास करे। हिंदुत्व,विकास,राष्ट्रवाद के मुद्दों और ध्रुवीकरण की बिसात की काट के बीच पिछड़ा वर्ग, आरक्षण, मंहगाई और बेरोजगारी के मुद्दों का शोर भी 2023 में सुनाई देगा।
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