लखनऊ। सपा मुखिया अखिलेश यादव विरासत में मिली राजनीति को संभालने में नाकाम साबित होते जा रहे है। हार दर हार को टालने के लिए हर कोशिश में लगे हुए है, लेकिन सफल नहीं हुए। कभी कांग्रेस के सहारे बीजेपी को हराने की रणनीति बनाते है तो कभी मायावती को साथ लाकर बीजेपी को पटखनी देने की कोशिश करते है, लेकिन उनका हर दांव फेल साबित हो रहा है। अब वह अपने पिता के नुख्शे यादव दलित के गठजोड़ वाले फार्मूला को अपनाने के लिए बाबा आंबेडकर का सहारा लेने की रणनीति बनाई। देखते है इस बार कितनी सफलता मिलती है।
दलितों के वोट बैंक पर नजर
अखिलेश यादव दलित वोट बैंक को अपनी सियासी पतवार बनाना चाहती है। इसके लिए वह लगातार प्रयास कर रही है। सपा के प्रांतीय एवं राष्ट्रीय सम्मेलन में भी बार-बार दलितों के उत्पीड़न और डॉ. आंबेडकर के सपनों को साकार करने की दुहाई दी गई। सपा के रणनीतिकारों का मानना है कि पार्टी पांच फीसदी दलितों को अपने पाले में लाने में कामयाब रही तो प्रदेश की सियासी तस्वीर बदल जाएगी।दलित वर्ग यह भूलने को तैयार नहीं है कि उसके सबसे बड़े नेता मायावती के साथ सपा के गुंडों ने क्या व्यवहार किया था।अब वह सपा के झांसे में इतनी आसानी से नहीं आने वाला है।
आपकों बता दें कि सपा ने दलित वोटबैंक को साधने के लिए विधानसभा चुनाव से पहले 15 अप्रैल, 2021 को बाबा साहब वाहिनी बनाने का एलान किया। इसका असर यह रहा कि पूर्व कैबिनेट मंत्री केके गौतम, इंद्रजीत सरोज समेत बसपा के कई दलित नेताओं ने सपा की ओर रुख किया। अब वाहिनी के नाम पर पार्टी में राष्ट्रीय से लेकर विधानसभा क्षेत्रवार कमेटी बन गई है, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में दलितों ने खुलकर भाजपा का साथ दिया, इससे उन सीटों पर भी बीजेपी प्रत्याशियों को कामयाबी मिली जहां उनका दबदबा कम था।
इसी तरह पिछले साल 26 नवंबर को कांशीराम स्मृति उपवन में पूर्व सांसद सावित्री बाई फुले की अगुवाई में संविधान बचाओ महाआंदोलन का आयोजन किया गया। इसमें बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ऐलान किया कि समाजवादी और आंबेडकरवादी मिलकर भाजपा का सफाया करेंगे। उन्होंने कहा कि लोहिया भी चाहते थे कि आंबेडकर के विचारों को मानने वाले साथ आएं।
अब आंबेडकर के नाम पर राजनीति
दलितों को रिझाने के लिए अखिलेश यादव ने पहले प्रांतीय फिर राष्ट्रीय सम्मेलन में बार-बार आंबेडकर के सपनों की दुहाई देकर उनका ध्यान खींचने की कोशिश की । दलितों के उत्पीड़न की घटना होने पर तत्काल सपा का प्रतिनिधिमंडल मौके पर भेजा जा रहा है। प्रदेश में करीब 11 फीसदी जाटव, तीन फीसदी पासी एवं दो फीसदी अन्य दलित जातियां हैं। पार्टी पांच फीसदी दलितों को अपने पाले में लाने के लिए विभिन्न कमेटियों में इनकी भागीदारी बढ़ाने की तैयारी में है। वहीं मायावती भी अपने वोटबैंक को बांधे रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रही हैं, यह बात और है कि मायावती की राजनीति केवल सोशल मीडिया तक ही सिमट कर रह गई है। वहीं सपा से मुस्लमानों का मोहभंग होता जा रहा है, पढ़ा—लिखा मुस्लिम वर्ग तेजी से बीजेपी से जुड़ रहा है।
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