लखनऊ। आजमगढ़ व रामपुर लोकसभा उपचुनाव के परिणाम समाजवादी पार्टी के मुखिया के अंहकार, अकर्मण्यता, अदूरदर्शिता, अयोग्यता एवं अपने चापलूस राग दरबारी नवरत्नों के बीच रहकर रंगीला बादशाह बनने की ओर अग्रसर होने का शुभ संकेत हैं।आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव का परिणाम भाजपा, संघ और उनके अनेक सामाजिक/आनुषंगिक संगठनों के अथक परिश्रम, त्याग और समर्पण को दर्शाता है कि जहां पर संभावनाएं शून्य थीं वहां पर उन्होंने वह कर दिखाया जो शायद एक कुशल संगठन और मजबूत नेतृत्व के दम पर ही किया जा सकता है।
वहीं ओमप्रकाश राजभर लगातार अखिलेश यादव पर एसी से बाहर न निकलने की वजह को हार बता रहे है।यह भी सच है कि पहली बार अखिलेश यादव को सीएम की कुर्सी उनकी मेहनत की वजह से नहीं बल्कि सपा के मजबूत संगठन और मायावती की तानाशाही की वजह से मिली है। अखिलेश यादव में जमीन की राजनीतिक का अनुभव नहीं है, इसलिए उनकी पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है।
भाजपा पर आरोप बेईमानी
बहुत से लोग इस बात से खफा होंगे कि भाजपा तो बेईमानी छल प्रपंच और प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग करती है तो बेशक इसमें कोई शक नहीं है जो भी सत्ता में रहा है उसने किया है यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है, हां किसी ने कम किया है तो कोई ज्यादा कर रहा है लेकिन इस सच्चाई से मुंह मोड़ लेना कि हम कोई संगठन नहीं बनाएंगे अपने स्कूली दोस्तों के साथ टेबल पर बैठकर चाय पिएंगे सुबह शाम गोल्फ और बैडमिंटन खेलेंगे उसके बाद जब चुनाव के 4 दिन रह जाएंगे तो ओबीसी एससी-एसटी माइनॉरिटी की जातियों को गुमराह करेंगे शायद अब ऐसा नहीं होने वाला है।
भाजपा लगातार मैदान में
यह एक कड़वा सच है जिसे सुनना और समझना होगा जिस दिन से अखिलेश यादव ने आजमगढ़ और आजम खान ने रामपुर से इस्तीफा देने का ऐलान कर विधानसभा में जाने का फैसला लिया था उसी दिन दोनों लोकसभा क्षेत्रों में बीजेपी, संघ और उनके अनुशांगिक संगठनों के हजारों कार्यकर्ता एक्टिव हो गए थे। सुबह 6:00 बजे शाखा लगाने से लेकर रात 11:00 भोजन मंत्र पढ़ने तक कहीं न कहीं लोगों के बीच बैठकर उनके खेत खलिहान में बैठकर उनके सुख-दुख में शामिल होकर भले ही दिखावा सही लेकिन उन्हें हर स्तर पर अपना होने का अहसास कराने से लेकर उन्हें मोटिवेट करने तक का काम कर रहे थे और सरकार की योजनाओं को समझाते हुए अपने एजेंडे पर काम कर रहे थे।
एजेंडा कुछ भी हो हम उस पर चर्चा नहीं करेंगे चाहे वह हिंदू मुस्लिम को बांटने का हो या जातियों में जहर घोलने का लेकिन वह हर एक इलेक्शन को पूरी ईमानदारी, मजबूती और शिद्दत के साथ लड़ते हैं फिर वह क्यों न पंचायत का चुनाव हो या देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए लोकसभा का चुनाव शायद इसी का नतीजा है कि उन्होंने आजमगढ़ और रामपुर पर जीत दर्ज की। जब आजमगढ़ और रामपुर में समाजवादी पार्टी को प्रत्याशी तय करने थे तो नामांकन के अंतिम दिन तक सपा मुखिया और उनके नवरत्न इस स्थिति में नहीं थे कि हम किसे लड़ाए।
कमजोर होता सपा का संगठन
आप सोचिए कि अगर यह दोनों प्रत्याशी उसी समय से जब से अखिलेश और आज़म ने इस्तीफा दिया था सक्रिय हो गए होते तो आज रिजल्ट कुछ और होता। जब आप संगठन नहीं बना सकते हैं तो प्रत्याशियों का चयन साल या छः महीना पहले करिए क्योंकि संगठन निर्माण करना अब वर्तमान समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के मुखियाओं के बस में नहीं है। दोनों बहुजन समाज की पार्टियां पूर्णतया समाप्त होने के कगार पर हैं और साथियों याद रखना अगर यही हाल इन दोनों पार्टियों के सुप्रीमो का रहा और कोई नया नेतृत्व नहीं उत्पन्न हुआ तो उत्तर प्रदेश बीजेपी का अगला गुजरात है।
क्योंकि अखिलेश यादव ने यह तय कर लिया है कि पार्टी भले खत्म हो जाए चाचा, भाई भले ही दूर हो जाएं हम अपने ईमानदार, कर्मठी, जुझारू, दलाल और हर समय दिल बहलाने वाली सलाह देने वाले नवरत्नों को किसी कीमत पर नहीं हटाएंगे। शायद उन्होंने यह भी तय कर लिया है कि जनता हमें एक न एक दिन स्वीकार ही कर लेगी कब तक हमारे नवरत्नों का विरोध करेगी। लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि अब ऐसा कभी नहीं होगा यह उपचुनाव समाजवादी पार्टी के लिए अगर आखिरी चुनाव हो तो कोई बड़ी बात नहीं है, यही हाल बसपा का भी है।
क्या यह सोची समझी चाल
इस उपचुनाव की हार के बाद सपा मुखिया के नवरत्न अगर यह खबर फैला रहे हैं कि देखो आजमगढ़ में धर्मेंद्र जी को निपटा दिया और रामपुर में आजम का दिमाग दुरुस्त कर दिया तो कोई बड़ी बात नहीं होगी क्योंकि ऐसी चर्चा अखिलेश जी के आजमगढ़ और रामपुर न जाने के बाद से बाजार में बहुत जोरों पर है कि अखिलेश जी न ही दिल से चाहते थे कि धर्मेंद्र जी जीतें और न ही चाहते थे रामपुर से आजम के चहेते जीतें लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है अखिलेश जी के चाहने और न चाहने से इन परिणामों पर कोई फर्क नहीं पड़ता यह परिणाम समाजवादी पार्टी के मुखिया के अहंकार, अकर्मण्यता, अदूरदर्शिता, अयोग्यता और चापलूस धूर्त दरबारी नवरत्नों से घिरे रंगीला बादशाह बनने की ओर अग्रसर होने के परिचायक हैं।
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