चिंतन के भंवर में यूं फंसी कांग्रेस! यूपी संगठन का नया सूबेदार ढूंढने में नाकाम

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यूपी मुल्क का सबसे बड़ा सूबा है।इस वक्त यहां कांग्रेस अपने सियासी जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। सूबे में हुए विधानसभा के आमचुनाव में करारी मात खाने के बाद पार्टी के भीतरखाने में उथल -पुथल मची है।

रोहिताश मिश्र (लखनऊ)। यूपी मुल्क का सबसे बड़ा सूबा है।इस वक्त यहां कांग्रेस अपने सियासी जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। सूबे में हुए विधानसभा के आमचुनाव में करारी मात खाने के बाद पार्टी के भीतरखाने में उथल -पुथल मची है। कांग्रेस के सूबेदार रहे अजय कुमार लल्लू चुनावी नतीजे आने और पार्टी की दुर्दशा को देखकर नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 16 मार्च को अपने पद से इस्तीफा दे चुके है।

साल 2024 में लोकसभा के आम चुनाव होने है। इस चुनाव को राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाये तो भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होना है।इसके लिए भाजपा की अगुवाई में राजग तो कांग्रेस के नेतृत्व में संप्रग है। राजग और संप्रग दोनो कई दलों के गठजोड़ से अस्तित्व में आये है।

यूपी में अपनी सियासी सेहत सुधारने में नाकाम

लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने करीब नौ बरस के बाद उदयपुर में एक चिंतन शिविर आयोजित किया। जिसमें चुनावी माहौल विकसित करने के साथ ही मोदी की नाकामियों और सभी वर्गो के युवाओं को पार्टी से जोड़ने की रणनीति का खाका तैयार किया गया।इस चिंतन शिविर में कांग्रेस को यह अहसास हुआ कि कांग्रेस पार्टी जनता की मुख्य धारा से टूट चुकी है।

इस बार कांग्रेस की ओर से भारत जोड़ो का नारा गढ़ा गया है। इसके बावजूद भी पार्टी की ओर से यूपी में अपनी सियासी सेहत सुधारने के लिए कोई ठोस इंतजाम दिखायी नहीं देता है।

नहीं तलाश पा रही यूपी का अपना नया सूबेदार

सूबे में जहां वर्गवाद और सम्प्रदायवाद की दुर्गंध के बीच सियासी पांसे फेंकने का सिलसिला चल रहा है। इस नाकारात्मक विचारधारा से निपटने के लिए कांग्रेस द्वारा कोई मजबूत योजना पेश नही की जा सकी है। यहीं नहीं पार्टी अभी तक यूपी संगठन का नया सूबेदार तय करने में नाकाम रही है। जो संगठनात्मक व्यवस्था को मजबूती दे सके।

साल 2024 में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव को लेकर कांग्रेस का फिक्रमंद होना भी लाजिमी है। इसके लिए उदयपुर में हुए चिंतन शिविर में गठबंधन विस्तार पर मुहर लग चुकी है।अब कांग्रेस नेतृत्व अपने इस मकसद में कितना कामयाब होता है यह तो भविष्य को तय करना है।सपा बसपा के बाद अब ईवीएम को लेकर कांग्रेस ने भी मुंह खोल दिया है।

ईवीएम को लेकर तोड़ी चुप्पी

चिंतन बैठक में ईवीएम पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग तक की जा चुकी है। इसके लिए अमेरिका और जापान के चुनावी पद्धति का हवाला दिया गया है।सूबे की सल्तनत पर सबसे अधिक वक्त तक सत्ता सुख भोगने वाली कांग्रेस आज सूबे में अपने अस्तित्व की हिफाजत के लिए संघर्ष कर रही है। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में केन्द्रीय सत्ता से बेदखल होने के बाद यूपी में लगातार उसके सियासी ग्राफ में गिरावट ही दर्ज की गयी है।

चुनाव बाद लल्लू पर गिरी थी गाज

चुनाव के पहले सूबे में कांग्रेस को अपने पैरो पर खड़ा करने की गरज से अजय कुमार लल्लू ने खूब पसीना बहाया था। यहां तक कोरोना काल में जब सामूहिक भीड़ जुटाने पर पाबंदी थी उस दौर में उन्होने डिजिटल मीडिया एवं इंटरनेट तकनीको के सहारे पार्टी के सदस्यों की तादात बढ़ाने के लिए लगातार संघर्ष करते देखे गये थे।

यूपी में चुनाव की तारीखो के ऐलान के बाद उन्होने कहा था कि पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के वर्चुअल कार्यक्रम के पहले ही दिन करीब 10 लाख से अधिक लोग कांग्रेस के सोशल मीडिया प्लेटफार्म से जुड़ चुके है।

लल्लू ने खूब बहाया था पसीना

उस समय श्री लल्लू द्वारा यह भी दावा किया गया था कि कांग्रेस ने डेढ़ लाख व्हाटसएप ग्रुप बनाकर करीब तीन करोड़ लोगों को पार्टी से जोड़ने का काम किया है। उनका दावा था कि व्हाटसएप ग्रुपो के जरिए प्रत्येक विधान सभा में करीब 40-50 हजार नये सदस्यो को पार्टी के साथ जोड़ा गया है।

जो कांग्रेस के लिए एक बड़ी ताकत बनेगी। यूपी कांग्रेस के सूबेदार की कुर्सी खाली है। चिंतन शिविर में मंथन भी हो चुका है।अब कांग्रेस को अपनी रणनीति को धरातल पर स्थापित करने की चुनौती है।

यूपी में प्रियंका ने फिर डाला डेरा

यूपी में पार्टी की सियासी सेहत को अनुकूल बनाने की गरज से कांग्रेस ने उदयपुर शिविर के बाद अब यूपी में अपना डेरा डाला है, पार्टी महासचिव व यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने यूपी में पार्टी संगठन के कील कांटे को दुरुस्त करने के लिए पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को सक्रिय बनाने को राजधानी लखनऊ मे पार्टी की रणनीति से प्रशिक्षित कर अपने खोए हुए अस्तित्व को स्थापित करने को केंद्रित हैं।

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