कांग्रेस का खेला बिगाड़ने अमरिंदर ने भाजपा से मिलाया हाथ, जानिए कैसे करेंगे खेला

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Amarinder joins hands with BJP to spoil Congress's play, know how he will play
सीटों पर समझौता होना बाकी है। पंजाब में अगले साल फरवरी के बाद चुनाव होने की संभावना है। 

चंडीगढ़। पंजाब में होने विधानसभा चुनाव से पहले दलों की स्थिति धीरे—धीरे साफ होने लगी है। कांग्रेस का हाथ छोड़ चुके पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने के बाद इसके संकेत दिए ।कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सोमवार को इस संकेट पर उस समय मुहर लगा दी। कैप्टन ने सोमवार को चंडीगढ़ में अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस के दफ्तर के उद्घाटन के मौके पर अगला विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ लड़ने का एलान कर दिया है। अमरिंदर ने कहा कि उन्होंने इस बारे में अमित शाह से बात की है। हालांकि, सीटों पर समझौता होना बाकी है। पंजाब में अगले साल फरवरी के बाद चुनाव होने की संभावना है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस गठबंधन में पूर्व शिअद नेता और अकाली दल (संयुक्त) के अध्यक्ष सुखदेव सिंह ढींढसा भी शामिल होंगे। हालांकि ढींढसा ने गुरुवार को गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी लेकिन उन्होंने इस पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया था। जबकि गठबंधन को लेकर शाह ने शनिवार को बयान दिया था कि पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह और ढींढसा से चर्चा जारी है।उम्मीद है कि दोनों के साथ बात बन जाएगी।

ऐसे बिगड़ेगा का कांग्रेस का खेल

सत्तारूढ़ कांग्रेस, आप और शिरोमणि अकाली दल के बाद पंजाब में बीजेपी-अमरिंदर गठबंधन चौथी ताकत बनकर उभरेगा? इस बारे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर 2022 के विधानसभा चुनाव में यदि विभिन्न कारणों से यह गठबंधन किंगमेकर नहीं बना तो खेल बिगाड़ने वाला तो बन ही सकता है।

पंजाब की राजनीति को समझाने वालों का कहना है कि इस गठबंधन से सबसे ज्यादा नुकसान आम आदमी पार्टी का होगा। हालांकि अमरिंदर सिंह की कोशिश होगी कांग्रेस का खेल बिगाड़ने की लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान आप को पहुंचता दिख रहा है। इसकी वजह यह है कि अमरिंदर और ढींढसा का कोई पारंपरिक वोट बैंक नहीं है। उन्हें गैर पारंपरिक वोट मिल सकता है। यही आम आदमी पार्टी का वोट बैंक है। जबकि कांग्रेस के पास एक पारंपरिक वोट बैंक है। कैप्टन से पहले भी कांग्रेस की सरकार यहां रही है। उनके मुताबिक संभावना है कि इस गठबंधन की वजह से त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन जाए। जिससे दूसरा बड़ा नुकसान कांग्रेस का हो सकता है। त्रिशंकु विधानसभा अमरिंदर और भाजपा के हक में हो सकता है।

अंसतुष्टों को अपने पाले में करने की चाल

पंजाब चुनाव में किंग बनने के लिए बन भाजपा और अमरिंदर की यहीं कोशिश हो कि वह प्रभावशाली नेताओं को अपने पाले में कर सकें जिन्हें उनकी पार्टी से टिकट नहीं मिल पारहा है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह जहां भाजपा के साथ गठजोड़ करके और एक राजनीतिक पार्टी शुरू करके अपने राजनीतिक करियर को फिर से जिंदा करना चाहते हैं। वहीं भाजपा अपने दशकों पुराने साथी शिरोमणि अकाली दल के अलग होने के बाद अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने में जुटी है। हालांकि राज्य में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी गुटबाजी और अन्य मुद्दों से जूझ रही हैं।

भाजपा को यह होगा फायदा

पंजाब में भाजपा का कोई मजबूत आधार नहीं रहा है। अभी 117 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के केवल दो विधायक हैं। पिछले दो दशक से वह शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर वह सियासत कर रही थी। किसान आंदोलन के कारण अकाली दल ने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया था। जिसके बाद से भाजपा यहां अलग-थलग पड़ गई थी। दूसरी तरफ किसान आंदोलन के कारण पंजाब में भाजपा के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी थी। ऐसे में अमरिंदर सिंह और ढींढसा का साथ मिलने से भाजपा का हाथ यहां मजबूत होगा। खासकर अमरिंदर के जरिए भाजपा को ग्रामीण इलाकों के कुछ वोट हासिल हो सकते हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि अकाली दल के विभाजन में भाजपा का ही हाथ रहा है और भाजपा लंबे समय से इस मिशन पर लगी थी। लेकिन बादल विरोधी ताकतों का साथ मिलने से भाजपा को कोई खास फायदा नहीं मिलने की उम्मीद है।

बीजेपी के सामने यह होगी चुनौती

भाजपा और कैप्टन के हाथ मिलाना राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह गठबंधन चुनौतियों से भरा होगा। चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं, इसलिए पार्टी बनाना और संगठन को मजबूत करना कोई आसान काम नहीं होगा। विपक्षी दल पहले ही भाजपा विरोधी भावनाओं का फायदा उठा चुके हैं। इसलिए, कृषि कानूनों को निरस्त कर दिए जाने पर भी किसानों का विश्वास जीतना आसान नहीं होगा।

एक और बड़ी चुनौती सत्ता विरोधी लहर होगी। जानकारों का मानना है कि कैप्टन केवल कांग्रेस से इस्तीफा देकर और नई पार्टी बनाकर सत्ता विरोधी लहर के बोझ से छुटकारा नहीं पा सकते क्योंकि वे करीब साढ़े चार साल तक पार्टी के मुख्यमंत्री रहे हैं। उन पर मुख्यमंत्री के तौर पर अच्छा प्रदर्शन नहीं करने का आरोप और सत्ता विरोधी लहर का बोझ है, जिसका असर भाजपा पर भी पड़ सकता है। कांग्रेस इन्हीं मुद्दों को लेकर अमरिंदर के खिलाफ चुनाव में उतरेगी। अब तो यह समय के गर्त में छिपा है कि कौन सा गठबंधन कितना गुल खिलाएगा।

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