नोटबंदी के पांच साल बाद भी मकसद अधूरा, लोगों के पास बढ़ा 57.48 फीसदी कैश

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Profit in business: BharatPe's revenue increases by 182 percent in FY23
2023 में 904 करोड़ रुपये हो गया यानि कि ओपरेशन से रेवेन्यु में 182% की वृद्धि हुई।

नई दिल्ली। पांच साल पहले देश में हुई नोटबंदी को लेकर बताए गए तमाम मकसद आज पांच साल बाद भी पूरे नहीं हो सके है। इसमे एक मकसद कैशलैश को भी बताया गया था। बावजूद इसके आज भी देश में कैश पेमेंट का सबसे पसंदीदा तरीका बना हुआ है और इसका इस्तेमाल रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच चुका है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 8 अक्टूबर को खत्म पखवाड़े (14 दिन की अवधि) में लोगों के पास कैश बढ़कर 28.30 लाख करोड़ रुपए हो गया। यह नोटबंदी से पहले 4 नवंबर 2016 को 17.97 लाख करोड़ रुपए था। यानी करीब पांच साल में लोगों के पास कैश 57.48% बढ़ा है।

8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने 500 और 1,000 रुपए के नोटों को बंद कर दिया था। बाद में 500 और 2000 रुपए के नए नोट जारी किए गए। नोटबंदी के बाद से सरकार लगातार सिस्टम से कैश घटाने के लिए डिजिटल पेमेंट को प्रमोट कर रही है। यूपीआई जैसे पेमेंट के साधनों को बढ़ावा दिया जा रहा है। बावजूद कैश का इस्तेमाल फिर भी कम होता नहीं दिख रहा।

लॉकडाउन में यूं बढ़ा लोगों के पास कैश

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सिस्टम में कैश के बढ़ने का एक कारण कोरोना महामारी है। 2020 में जब कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने लॉकडाउन लगाया गया था तो अपनी रोजाना की जरूरतों का सामान खरीदने के लिए लोगों ने कैश जमा करना शुरू कर दिया था।

वहीं त्योहारी सीजन के दौरान कैश की डिमांड अधिक रहती है क्योंकि बड़ी संख्या में व्यापारी अभी भी एंड-टू-एंड ट्रांजैक्शन के लिए कैश पेमेंट पर निर्भर हैं। बताया गया कि करीब 15 करोड़ लोगों के पास बैंक अकाउंट नहीं होना भी इसकी एक वजह है।

इसके अतिरिक्त टीयर 1 सिटी के 50 फीसदी की तुलना में टियर 4 सिटी में 90 फीसदी ई-कॉमर्स ट्रांजैक्शन का पेमेंट मोड कैश होता है। CMS इंफो सिस्टम्स के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर राजीव कौल के मुताबिक भारत में नगदी सभी रीजन और इनकम ग्रुप में ट्रांजैक्शन का प्रमुख माध्यम बनी हुई है।

यूं समझें कैश का कैल्कुलेशन

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के मुताबिक ‘जनता के पास कैश का कैल्कुलेशन बैंकों के पास मौजूद कैश को सुर्कुलेशन इन करेंसी (CIC) से घटाकर किया जाता है। CIC का मतलब देश के भीतर मौजूद वो कैश या करेंसी है। इसका उपयोग कंज्यूमर और बिजनेस के बीच ट्रांजैक्शन के लिए फिजिकल रूप से किया जाता है।

एक बैंकर के अनुसार करेंसी इन सर्कुलेशन के बढ़ने से कैश की सही तस्वीर पेश नहीं होती है। हमें करेंसी और जीडीपी के अनुपात को देखना चाहिए जो नोटबंदी के बाद नीचे आया है। FY20 तक यह अनुपात 10-12 फीसदी था।

हालांकि इकोसिस्टम में कैश बढ़ने से 2025 तक इस अनुपात के 14 फीसदी तक बढ़ने की अशंका जताई गई है। वहीं RBI के मुताबिक CIC और डिजिटल पेमेंट के बीच बहुत कम या कोई संबंध नहीं है और नॉमिनल जीडीपी में वृद्धि के साथ सिस्टम में नगदी भी बढ़ेगी।

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