बसपा समझ गई सोशल मीडिया की ताकत, अब चली डिजिटल की राह

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Lok Sabha elections: BSP candidates will change the equation, Mayawati again returns to the path of social engineering
गत चुनाव में सपा बसपा का गठबंधन था और कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी थी, इसका फायदा बीजेपी को हुआ था।

लखनऊ साधू मौर्य । अभी तक सोशल मीडिया और मीडिया और मीडिया को तवज्जों नहीं देने वाली यूपी की कभी नंबर एक पार्टी हुआ करती बसपा अब नए युग के ​हथियार यानि सोशल मीडिया का सहारा लेतीं हुई दिखाई दे रही है। मालूम हो कि सोशल मीडिया के सहारे कांग्रेस महासचिव ​प्रियंका गांधी ने यूपी में मृत प्राय हो चुकी कांग्रेस को फिर से जीत का हौसला देने में कामयाब हो रही है। प्रियंका गांधी सोशल मीडिया पर रोज अपने एक एजेंडे को रख रख रही हैं, जिसे उनकी आईटी सेल युवाओं तक पहुंचाने में पूरे दिन पसीना बहा रही है।

हालांकि मायावती खुद समय -समय पर सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करतीं रहती है, लेकिन मायावती केवल सरकार का विरोध करने के लिए अभी तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रही है, जबकि दूसरी पार्टियां यूपी के लिए क्या रणनीति क्या करना चाह रही हैं को रखकर युवाओं का झुकाव अपनी पार्टी की तरफ कर रही है। हमारे कालमनिष्ट और लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार नवेद शिकोह ने अपने पिछले लेख में भाजपा के उभार और बसपा —सपा के पिछड़ने का प्रमुख कारण सोशल मीडिया से दूरी को बताया था, और यह भी बताया था कि प्रियंका गांधी ने कैसे सोशल मीडिया का सहारा लेते हुए पार्टी को चर्चा में ला दिया। बात चाहे लखीमपुरखीरी कांड की करें या आगरा में हुई सफाई कर्मी की मौत के बाद​ प्रियंका के हर मूवमेंट को कैसे ट्वीटर पर रखकर उनके संघर्षों को दिखाने की कोशिश की गई और कितनी कामयाब हुई।

सोशल मीडिया पर दमदार उपस्थि​ति

सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत को समझते हुए बसपा अब सोशल मीडिया के हर प्लेटफॉर्म पर भी अपनी दमदार उपस्थिति की रणनीति बनाई है। जबकि बसपा पहले सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखती थी और पार्टी का यह मानना था कि उनका वोटर सोशल मीडिया से प्रभावित नहीं होता है। देर से सोशल मीडिया की ताकत को समझने की वजह से पार्टी अभी तक इस मोर्चे पर भाजपा और सपा के मुकाबले पीछे दिखाई दे रही है, लेकिन अब पार्टी पूरी तरह से सोशल मीडिया पर सक्रिय है। पार्टी के हर​ जिम्मेदार पदाधिकारी सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर अपनी बात रख रहे है। बात चाहे पार्टी सुप्रीमो मायावती की हो या सतीश चंद्र मिश्रा की सभी अपनी उपस्थित दर्ज करा रहे है।

2018 से मायवती ट्वीटर पर सक्रिय

आपकों बता दें कि मायावती ने 2018 में एक ट्विटर अकाउंट बनाया था। अब वे लगातार ट्वीट करती रहती हैं। जबकि मिश्रा ने इस साल जुलाई में ट्विटर ज्वाइन किया। ब्राह्रमणों के लिए आयोजित हुए सम्मेलन “प्रबुद्ध वर्ग विशाल गोष्ठी” की फेसबुक पर लाइव स्ट्रीमिंग शुरू की गई। सोशल मीडिया के जरिए बसपा की नजर उन युवाओं पर है जो भीमराव अंबेदकर की नीतियों का समर्थन करते हैं। मिली जानकारी के मुताबिक बड़ी संख्या में ऐसे छात्रों ने बसपा से जुड़ना शुरु कर दिया है। छात्रों और युवाओं को सोशल मीडिया की ट्रेनिंग दी जा रही है।

आकाश आनंद पार्टी नेताओं और युवाओं से सोशल मीडिया पर लगातार संपर्क बनाए रखते हैं। बसपा प्रवक्ता फैजान खान के बयान के मुताबिक ‘बसपा सोशल मीडिया के जरिए युवाओं समेत समाज के हर वर्ग से जुड़ रही है, लेकिन पार्टी भी जमीन पर काम कर रही है।

सत्ता में वापसी को बेताबी

2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के बसपा के लिए करो या मरो की स्थिति का है। यदि इस चुनाव में बसपा फेल होती है तो यह उसके राजनीतिक पतन का आखिरी चुनाव होगा, क्योंकि एक तरफ जहां पश्चिमी यूपी से चंद्रशेखर उर्फ रावण अपने काम के सहारे दलितों के वोटोें के ध्रुवीकरण में जुटे है। वहीं मुस्लिमों के वोटों के लिए सभी राजनीतिक दल चाल चल रहे है। ऐसे में बसपा चुनाव में बाजी मारने के लिए हर चाल चलने को बेताब है। क्योंकि पिछले सालों में हुए चुनाव में बसपा लगातार कमजोर होती गई है। इस वजह से उसके यह चुनाव करो या मरो की स्थिति है।

सभी समाज को तवज्जो

इस बार मायावती की पार्टी ने राज्य में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है, लेकिन पार्टी दलित-ब्राह्मण सामाजिक इंजीनियरिंग से आगे जाकर खुद को ‘सर्व धर्म सम भाव’ की पार्टी के रूप में पेश कर रही है। भाजपा से नाराज माने जाने वाले ब्राह्रमणों के लिए नरम हिंदुत्व का रुख अपनाते हुए ब्राह्मणवाद की राह पर चल रही है। पार्टी राज्य भर में प्रबुद्ध सम्मेलनों का आयोजन कर रही है तो वहीं अपने कोर वोट बैंक दलितो को भी साधने में लगी है। सूत्रों के मुताबिक बसपा ओबीसी और ब्राह्मणों को टिकट बंटवारे में तवज्जो देने पर विचार कर रही है। इसलिए बसपा ब्राह्मणों को उम्मीदवार बनाकर 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी करना चाह रही है। इसके बाद वह अपने आधार वोटबैंक दलित और मुस्लिम को टिकट देने की रणनीति अपना रही है।

पार्टी प्रवक्ता नियुक्त किया

अभी तक बसपा को बिना प्रवक्ता वाली पार्टी कहा जाता था, लेकिन बसपा ने जनता और मीडिया तक अपनी बात पहुंचाने के लिए तीन प्रवक्ताओं को नियुक्त किया है। मायावती ने धर्मवीर चौधरी, एमएच खान और फैजान खान को प्रवक्ता बनाया है। जबकि पहले बसपा नेताओं को मीडिया से बात करने की मनाही होती थी। हालांकि, बसपा की ओर से अभी तक कुछ चुनिंदा नेता टीवी पर बहस करते नजर आते थे, लेकिन वे पार्टी के घोषित प्रवक्ता नहीं थे। बल्कि उन्हें बसपा समर्थक कहा जाता था। बसपा नेता सुधींद्र भदौरिया टीवी पर पार्टी समर्थक के तौर पर चर्चा में हिस्सा लेते देखा गया, लेकिन पार्टी ने उन्हें प्रवक्ता नहीं बनाया है।
                                                                           ….यह लेखक के अपने विचार है।

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