पटना। कभी बिहार की राजनीति का पर्याय नीतीश कुमार हुआ करते थे, लेकिन उनका कुर्सी मोह आज उनकी लोकप्रियता को खत्म कर रहा है। अब बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार पर यह आरोप लगने लगा है कि वो सबसे अनप्रेडिक्टेबल और अविश्वसनीय नेता बनते जा रहे हैं। वे अपने बयान से पलट जा रहे हैं। वो अपने वादे से मुकर जा रहे हैं। भाजपा और राजद से दो-दो बार संबंध तोड़े। रही नेताओं की बात तो वे भी नीतीश कुमार की बेरुखी झेलते रहे हैं। एक-एक कर उनसे नेता दूरी बनाने लगे हैं। आरसीपी कभी इनके दाहिने हाथ हुआ करते थे। आज पार्टी से ही हटा दिए गए। ललन सिंह को भी एक समय पार्टी से निकाला गया। अब उपेंद्र कुशवाहा को अलग थलग करने का गेम खेला खेला जा है।
भाजपा और राजद ने भी सहा
नीतीश कुमार कितने अनप्रिडेक्टेबल हैं, इसे भाजपा ने भी सहा है। 2013 से ले कर 2015 तक भाजपा इनकी नाराजगी का शिकार रही। 2015 में तो विधान सभा का चुनाव राजद के साथ मिल कर लड़ा और सरकार बनाई। लेकिन बीच में ही राजद से बिदक गए और भाजपा के साथ जा कर सरकार बनाई। ऐसा उन्होंने तब किया जब उन्होंने 2015 में न जाने कितनी बार कहा कि मिट्टी में मिल जाएंगे, भाजपा में नहीं जाएंगे।
पर राजद को छोड़ते वक्त जरा भी नहीं सोचा की जनता के मैंडेट का अपमान है। ठीक उसी तरह से 2020 का चुनाव नीतीश ने भाजपा को साथ ले कर लड़ा। मगर 2022 में भाजपा से नाता तोड़कर राजद के साथ एक बार फिर सरकार बना ली जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि यह एक असहज गठबंधन है। इन दोनो स्थितियों में लोकतंत्र की मर्यादा बचाने के लिए चुनाव में नहीं गए पर अपनी कुर्सी पर विराजमान जरूर रहे।
उपेंद्र कुशवाहा भी होने जा रहे हैं शिकार
वैसे तो नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा के बीच तनाव का आलम कई बार आया और उपेंद्र कुशवाहा पार्टी छोड़ते रहे। हालिया स्थिति यह है कि मार्च 2021 में उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार के संपर्क में आए और नीतीश कुमार से फिर एक बार हाथ मिलाया। वह भी निराले अंदाज में रालोसपा का जदयू में विलय ही करा डाला। इस विलय पर नीतीश कुमार काफी खुश थे। कुशवाहा का हाथ पकड़कर सीएम नीतीश ने तब कहा भी था कि अब एक साथ मिलकर प्रदेश और देश की सेवा करेंगे। लेकिन नीतीश कुमार का वादा एक बार फिर टूटता नजर आ रहा है।
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