विवेकानंद का राष्ट्रवाद न सिर्फ अंतर्राष्ट्रीयवाद बल्कि मानववाद की भी प्रेरणा देता है : विजय श्रीवास्तव

Vivekananda's nationalism not only

 लखनऊ।  समतावादी सामाजिक समरसता अभियान के तत्वावधान में स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर हजरतगंज स्थित सी. बी. सिंह स्मृति सभागार में विवेकानंद के जीवन चरित्र पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ ट्रेड यूनियन नेता के. के. शुक्ला ने किया व संचालन एडवोकेट वीरेन्द्र त्रिपाठी ने किया।कार्यक्रम में बोलते हुए समतावादी सामाजिक समरसता अभियान के संयोजक विजय श्रीवास्तव ने कहा कि स्वामी विवेकानंद का जन्म 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुआ लेकिन उनके विचार और जीवन दर्शन आज के दौर में अत्यधिक प्रासंगिक हैं।

विवेकानंद जैसे महापुरुष मृत्यु के बाद भी जीवित रहते हैं और अमर हो जाते हैं तथा सदियों तक अपने विचारों और शिक्षा से लोगों को प्रेरित करते रहते हैं। मौजूदा समय में विश्व संरक्षणवाद एवं कट्टरवाद की ओर बढ़ रहा है जिससे भारत भी अछूता नहीं है, विवेकानंद का राष्ट्रवाद न सिर्फ अंतर्राष्ट्रीयवाद बल्कि मानववाद की भी प्रेरणा देता है।

भारतीय संस्कृति के प्राण तत्त्व

वरिष्ठ चिंतक योगेन्द्र उपाध्याय ने कहा कि विवेकानंद की धर्म की अवधारणा लोगों को जोड़ने के लिये अत्यंत उपयोगी है, क्योंकि यह अवधारणा भारतीय संस्कृति के प्राण तत्त्व सर्वधर्म समभाव पर ज़ोर देती है। यदि विश्व सर्वधर्म समभाव का अनुकरण करे तो विश्व की दो-तिहाई समस्याओं और हिंसा को रोका जा सकता है।सामाजिक कार्यकर्ता अशोक मिश्रा ने कहा कि विवेकानंद ने आंतरिक शुद्धता एवं आत्मा की एकता के सिद्धांत पर आधारित नैतिकता की नवीन अवधारणा प्रस्तुत की।अध्यक्षीय सम्बोधन मे के. के. शुक्ला ने कहा कि स्वामी विवेकानंद का मानना है कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरूक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।कार्यक्रम में उदय सिंह, ओ. पी. तिवारी, ए. के श्रीवास्तव, वीरेंद्र, अशोक मिश्रा सहित अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे।

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