भगवा के आगे जाति जनगणना मुद्दा फेल

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Caste census issue fails in front of saffron

नवेद शिकोह,लखनऊ। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों में भाजपा-कांग्रेस के बीच मुकाबले में भाजपा जीत गई, और चौथे राज्य तेलंगाना के क्षेत्रीय दल वीआरएस को कांग्रेसने हरा कर विजय प्राप्त की। इससे साबित होता है कि कांग्रेस अगर किसी हद तक कुछ मजबूत हुई भी है तो उसकी बढ़ी हुई ताकत क्षेत्रीय दलों के लिए ख़तरनाक है, लेकिन भाजपा को हराने की स्थिति में नहीं है।

काम नहीं आई कमलनाथ की रणनीति

इन चुनावी नतीजों ने विपक्ष के सबसे बड़े जाति जनगणना के मु्द्दे की हवा निकाल दी। सनातनी एकता, हिंदुत्व और राममंदिर उपलब्धि की भाजपाई ताकत के आगे जाति की राजनीति का मुद्दा फिलहाल तो बेअसर दिखा। ये माना जा रहा है कि जहां कांग्रेस ने तेलंगाना में वीआरएस जैसे क्षेत्रीय दल को सत्ता से बेदखल किया वहीं राजस्थान में गहलोत सरकार छीनने में भाजपा के लिए बसपा जैसा क्षेत्रीय दल किसी हद तक मददगार रहा। मध्यप्रदेश में कमलनाथ के सपने तोड़ कर प्रचंड बहुमत से जीतने वाली भाजपा के लिए कांग्रेस के खिलाफ सपा का आक्रोश काम आया।सवाल ये भी उठ रहा है कि एक धारणा बनी थी कि कांग्रेस पहले की अपेक्षा मजबूत हुई है। लेकिन पांच वर्ष पहले कांग्रेस कमजोर स्थिति में भी छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश जीती थी तो अब मजबूत होकर ये तीनों राज्य कैसे हार गई ?

भष्ट्राचार के खिलाफ भाजपा की लड़ाई

चलिए मध्यप्रदेश और राजस्थान में ये मान ले कि इन राज्यों में समान विचारधारा के वोट क्षेत्रीय दलों ने कतर लिए, लेकिन छत्तीसगढ़ में तो ऐसा कुछ नहीं था। यहां भाजपा की भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई और हिन्दुत्व का रंग भूपेश बघेल को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रहा।राजनीति पंडितों का कहना है कि भाजपा तेलंगाना में कांग्रेस की जीत का भी फायदा उठाने की कोशिश कर इसे लोकसभा चुनाव में ध्रुवीकरण का एक हथियार बनाने की कोशिश करेगी। मुस्लिम समाज कांग्रेस का विश्वास कांग्रेस में केंद्रित हो गया है। इसका प्रमाण है कि मुसलमानों को रिझाने की कोशिश करने वाली वीआरएस और मुस्लिम परस्ती के लिए जाने जाने वाले असद्दुदीन औवेसी के एआईएमआईएम को भी नकार कर मुस्लिम समाज कांग्रेस के समर्थन में एकजुट हो गया।

भाजपा अपने मुदृदे पर अटल

भाजपा चाहती भी यहीं है कि मुसलमान कांग्रेस के समर्थन में एकजुट दिखें और भाजपा विकास, सुशासन, राम मंदिर सफलता, सनातनी एकता और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आक्रामकता की सूरत में पेश हो। चार राज्यों के चुनावी नतीजों से यही साबित करने की कोशिश की है। मसलन तेलंगाना में कांग्रेस की जीत को मुस्लिम एकता की जीत बताया जाएगा और राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जीत को हिन्दुत्व की विजय और सनातनी एकता की ताकत साबित किया जाएगा।
ये बात सच भी है कि ओबीसी की बड़ी आबादी वाले राजस्थान में जाति जनगणना मुद्दा बेअसर रहा। मध्यप्रदेश में यही हुआ। यहां कई बार की शिवराज सरकार के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी का रत्तीभर भी असर नहीं रहा।

मोदी के चेहरे पर मिली सफलता

भाजपा की कामयाबी से ना सिर्फ विपक्षियों के हौसले पस्त हुए बल्कि भाजपा के राज्य प्रमुखों को भी संदेश मिला है कि केंद्रीय नेतृत्व के आगे राज्यों के चेहरे बौने हैं। राजस्थान में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा वसुंधरा राजे और मध्यप्रदेश में कई बार के मुख्यमंत्री शिवराज का चेहरा ना प्रोजेक्ट करके पार्टी केंद्रीय नेतृत्व के जादू से बड़ी सफलता हासिल करने में कामयाब हुई।

फिलहाल ये नतीजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और हिन्दुत्व के चहरे और इन राज्यों में सार्वाधिक प्रचार करने वाले योगी आदित्यनाथ को सफलता का बड़ा श्रेय दे रहे हैं। बताते चलें कि चुनावी स्टार प्रचारकों में योगी आदित्यनाथ सुपर स्टार प्रचारक साबित हुए थे। माफिया के खिलाफ बुल्डोजर मॉडल से प्रभावित अपार जनसमूह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की जनसभाओं में योगी-योगी के नारे लगाए थे। मुख्यमंत्री योगी ने इन राज्यों की उत्साही जनता को राममंदिर निर्माण संपूर्ण होने की बधाई दी थी और अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद यहां दर्शन करने के लिए आमंत्रित किया था।

सरकार को नहीं घेर पाई विपक्ष

विकास, सुशासन, बेहतर कानून व्यवस्था के लिए बुल्डोजर मॉडल, राम मंदिर,हिन्दुत्व और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के मुद्दे पर जीत हासिल करने वाली भाजपा के सामने कांग्रेस के पास जाति जनगणना, रिजर्वेशन, धर्मनिरपेक्षता की रक्षा जैसे मुद्दे थे। बेरोजगारी और महंगाई को लेकर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की गई थी। लेकिन इन चुनावों में कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी ताकत विपक्षी एकता का इस्तेमाल नहीं किया था। अब देखना ये कि क्या अपनी गलती को सुधार के कांग्रेस विपक्षी एकता मजबूत करने के लिए आपसी मतभेदों को मिटाने का प्रयास करके लोकसभा चुनाव में भाजपा से लड़ने की तैयारी करेगी। या फिर कांग्रेस को कमजोर देखकर विपक्षी क्षत्रप तीसरा मोर्चा बनाने पर विचार करेंगे।

ये भी हो सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की ताकत से लड़ने के लिए विपक्षी मतभेद भुलाकर अपना अस्तित्व बचाने के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार हो जाएं और एक और एक ग्यारह बनकर इंडिया गठबंधन को मजबूत करें। और ये भी हो सकता है कि कांग्रेस मध्यप्रदेश की हार का जिम्मेदार सपा को बताए और सपा कहे कि क्षेत्रीय दलों की अनदेखी का नतीजा भुगतने वाली कांग्रेस के साथ चलना मुनासिब नहीं।

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