अखिलेश यादव राजनीति का कच्चा खिलाड़ी, जो अपनी बेवकूफी से खा रहे मात

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Mangesh encounter: Yogi's minister showed mirror to Akhilesh Yadav, said he should always be with criminals
अब अखिलेश यादव बताएं मंगेश अपराधी था कि नहीं। वह किसी अपराधी को लेकर भला कैसे प्रेस कांफ्रेंस कर सकते हैं।

नवेद शिकोह, लखनऊ। अखिलेश यादव बेवक़ूफी कर रहे हैं। चंद चाटूकारों से घिरे हैं। चार-पांच सलाहकारों की सलाह उन्हें बार-बार पराजय दिला रही है। ऐसे गलत लोगों को वो किनारे करें। सिर्फ ट्वीट की राजनीति करना बंद करें।‌ वो हमेशा टिकट का ग़लत वितरण करते हैं। अपने पिता मुलायम सिंह की तरह जमीनी संघर्ष नहीं करते।अ पनों को साथ लेकर नहीं चलते। पिछड़ों को जोड़ने का माद्दा नहीं है। स्वामी प्रसाद मौर्य सपा की नैया डुबो देंगे। स्वामी और अन्य पिछड़ी जातियों के नेताओं को पूरा मौका दें ताकि मंडल की राजनीति सपा को बुरे वक्त से अच्छे वक्त की ओर ला दे।

अखिलेश वन मैन शो

अखिलेश परिवार के साथ भी सामंजस्य नहीं बना सके। चाचा को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया। शिवपाल को पूरा मौका देते तो इसका बहुत फायदा मिलता। अखिलेश वन मैन शो चला रहे हैं। पार्टी में दूसरी मजबूत लेयर तैयार कर उसे बड़ी जिम्मेदारियां देना चाहिए हैं और उनपर भरोसा करना चाहिए है। अखिलेश यादव ने सपा के सबसे बड़े पारंपरिक वोट बैंक मुस्लिम समाज का नाम लेना छोड़ दिया है। अपने मंच पर दाढ़ी-टोपी वालों को वो जगह नहीं देते। सपा इसी तरह कांग्रेस के साथ दूरी बनाए रही और मजबूत गठबंधन नहीं किया तो लोकसभा चुनाव में सपा तीन-चार सीटें भी नहीं जीत सकेंगी!

उपरोक्त नसीहतें, सलाहें, मशवरे और आलोचनाओं से घिरे रहने वाले सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शायद दुनिया के पहले ऐसे नेता हैं जिनको उनके अपने ही सबसे ज्यादा सलाह देते हैं। आलोचनाएं करते हैं और कहते हैं कि ये ना किया होता वो किया होता तो वो चुनाव हारते नहीं जीत जाते।ऐसा जबानी खर्च ऐसी सलाहें, मशवरे और परामर्श ऐसे लोग भी देते हैं जो राजनीति की एबीसीडी भी नहीं जानते। जिन्हें उनके पड़ोस के बीस लोग भी नहीं पहचानते।

राजनीति के नादान खिलाड़ी

जो पार्षद के चुनाव में भी पचास वोट हासिल नहीं कर सकते ऐसे लोग गली-मोहल्ले, चौराहों, चौपालों, चबूतरों और सोशल मीडिया पर अखिलेश यादव में राजनीतिक गुणा-भाग की समझ पैदा करने की कोशिश करते हैं। हांलांकि लोकतंत्र में जनता का हक़ भी है कि वो किसी नेता या किसी भी पार्टी पर या उनकी राजनीतिक रणनीति की कमियों या खूबियों पर अपने विचार रखे। अखिलेश यादव पर उनके अपने लोग, कार्यकर्ता, समर्थक और वोटर खूब जबानी जमा खर्च करते हैं।आलोचनाएं और सलाह भी एक नेमत होती है इस मामले में वो ऐसी नेमतों से मालामाल हैं।लेकिन इस सच को भी कोई झुठला नहीं सकता कि आबादी और लोकसभा सीटो के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में वो सबसे बडे विपक्षी नेता की हैसियत बरकरार रखे हैं।

बसपा की राह पर अखिलेश

मोदी-योगी की लोकप्रियता की आंधी का केंद्र उत्तर प्रदेश है, और इस सूबे में भाजपा का इतना जबरदस्त प्रभाव है कि कभी यूपी में स्थापित बसपा और कांग्रेस का जनाधार यहां से तिनकों की तरह उड़ गया। इन दलों के वटवृक्ष भाजपा की आंधी में ऐसे ढहे कि ये कहना मुश्किल है कि यूपी की जमीन में बसपा और कांग्रेस की जड़ें कितनी बची हैं!ऐसे में अखिलेश यादव ने सपा का वोट फीसद पैंतीस के आसपास बनाए रखा है। भाजपा के सामने सिर्फ सपा ही लड़ने की कूबत रखती है।

पिछले कई चुनावों में बसपा सबसे सबसे अधिक टिकट मुसलमानों को देती है लेकिन मुस्लिम समाज का पूरा भरोसा और वोट सपा को ही हासिल होता जा रहा है। अखिलेश यादव ने चुनावी मौसम में जितनी जनसभाएं और यात्राएं की इतना संघर्ष किसी भी विपक्षी नेता ने नहीं किया।पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से सीधी लड़ाई में सपा ने जितना वोट और वोट प्रतिशत हासिल किया मुलायम सिंह यादव जैसे दिग्गज अपने राजनीतिक कैरियर में कभी भी इतना वोट हासिल नहीं कर सके।

ये श्रेय किसको जाता है ? अखिलेश यादव को ही ना।
आज अखिलेश जी का जन्मदिन है, उन्हें बधाई-मंगलकामनाएं।

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