वाराणसी। काशी हिन्दुओं की सबसे पवित्र धार्मिक नगरी मानी जाती हैं, ऐसी कहावत है कि काशी भगवान भोले के डमरू पर बसी है। यह शहर कभी सोता नहीं हैं। काशी में मरने वालों को मुक्ति मिलती हैं आदि न जाने कितनी कहावत है जो काशी को दुनिया से अलग करती है। यहां एक ऐसी ही परंपरा है जो शायद दुनिया में कहीं है वह है, नगर वधुओं की श्मशान घाट में महफिल जमाना। एक तरफ चिताओं जलती है, दूसरी तरफ नगर वधुओं के पैरों के घुंघरू की झंकार गूंजती हैं राग- विराग का ऐसा जश्न हर साल मणिकर्णिका घाट पर होता हैं, इसी क्रम में मंगलवार रात को नगर वधुओं ने बाबा महाश्मशाननाथ को नृत्यांजलि अर्पित कीं। नवरात्र की सप्तमी पर महाश्मशाननाथ के वार्षिक शृंगार महोत्सव की अंतिम निशा में बाबा का शृंगार हुआ।
नगर वधुओं ने नृत्य पेश किया
भगवान भोलेनाथ की संध्या पूजन के बाद मंदिर में लोगों ने दर्शन किए। वहीं नगर वधुओं ने नृत्य पेश कर बाबा से अगले जन्म में इस जीवन से मुक्ति की गुहार लगाई। घाट के चारों तरफ चिताएं धधक रही थीं। शवयात्रा में आए लोग राग-विराग में डूबे थे। इस उत्सवी रंग में हजारों रंगे दिखे। यहां साढ़े तीन सौ साल से अधिक समय से चली आ रही नगर वधुओं की नृत्य की परंपरा का निर्वहन हुआ। सुध-बुध खोकर नृत्यांजलि प्रस्तुत करतीं नगर वधुओं से महाश्मशान पूरी रात जीवंत रहा। नगर बंधुओं ने बॉलीवुड व भोजपुरी गीतों पर नृत्य पेश किया। इस मौके पर बड़ी संख्या ने लोगों ने पहुंचकर इसका आनंद उठाया।
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