चित्रकूट। यूपी के चित्रकूट जिला वैसा तो भगवान राम के वनवास के दौरान यहां रहने के कारण प्रसिद्ध हैं, लेकिन यहां लगने वाला गधों का मेला काफी प्रसिद्ध हैं, यहां देश के कोने—कोने से गधे बिकने आते है। गधों के खरीदार भी बड़ी संख्या में आते हैं। यह मेला दीपावली के दूसरे दिनलगता है। मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष मुन्नालाल त्रिपाठी ने बताया कि हर साल मंदाकिनी किनारे लगने वाले इस खास मेले में 5 हजार गधे इकट्ठा होते हैं।
बड़ी संख्या में गधे देखने आते है लोग
यहां जितने लोग गधों को खरीदने आते है उससे ज्यादा लोग उन्हें देखने आते हैं। मेले की व्यवस्था का जिम्मा नगर पंचायत उठाती है। मेला एमपी-यूपी बॉर्डर पर लगता है। इसका फायदा दोनों राज्यों को मिलता है। मंदाकिनी पुल से बाईं तरफ मैदान पर मेला लगता है।गधों की बिक्री के लिए चार राज्यों से व्यापारी आते हैं। बोलियां लगाकर बेचे जाते हैं खच्चर। 30 रुपये प्रति खूंटा जानवर के बांधने के लिए लिया जाता है। दिवाली के दूसरे दिन चित्रकूट में एक अलग रौनक है। मंदाकिनी नदी के किनारे गधा मेले में सलमान, शाहरुख, रणबीर और ऋतिक फिल्मी स्टार के नाम वाले गधे बिकने आए हैं।
औरंगजेब के समय से चली आ रही परंपरा
छत्तीसगढ़ के पशु व्यापारी गुलिस्ता खां बताते हैं वह कि 12 साल से मेले में जानवरों को बेचते रहे हैं। औरंगजेब ने इसी मेले से अपनी सेना के बेड़े में गधों और खच्चरों को शामिल किया था। मुश्ताक मेले में आठ पशुओं को लेकर आए हैं। इनमें सबसे महंगा गधा सलमान है, जिसकी कीमत 1.5 लाख है।
मंदाकिनी तट पर हर साल लगने वाले इस मेले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार के पशु व्यापारी शामिल होते हैं। वहीं, इन जानवरों के खरीदार देशभर से आते हैं। यहां पहुंचे व्यापारियों ने बताया कि यहां गधों की पहचान फिल्मी कलाकारों के नाम से होती है। मेले में आने वाले व्यापारियों का मानना है कि बॉलीवुड कलाकारों का नाम देने से गधों की बिक्री बढ़ जाती है।
मेले में पहुंचे एक व्यापारी ने बताया कि अच्छी नस्ल और बढ़िया कद-काठी वाले खच्चर का नाम सलमान रखा गया है। ज्यादा भार ढोने वाले गधों को ऋतिक और रणबीर का नाम दिया जाता है। फुर्तिलें खच्चरों को शाहरुख के नाम से बुलाया जाता है। इस बार तीन दिन में दो करोड़ के गधे बिकने की संभावना है।
ये है गधों का रेट
घट रही गधों की संख्या
मेला आयोजक ने बताया कि पहले बड़ी संख्या में गधे आते थे, लेकिन अब संख्या कम हो गई है, क्योंकि गधों के काम कम होने से इनके पालक भी कम हो गए है। इसके अलावा बड़ी संख्या में गधों की तस्करी करके चीन ले जाया जाता है, जिस कारण गधों की संख्या घट रही है।
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