अखिलेश के गले की फांस बने आजम

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Azam became the neck of Akhilesh
यह चित्र अखिलेश यादव और आजम खान का एक कार्यक्रम के दौरान का है। फाइल फोटो

नवेद शिकोह-लखनऊ। समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के गले की हड्डी बनते जा रहे हैं। वो जेल में हैं तो भी मुसीबत और रिहा हुए तो सपा अध्यक्ष के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बनकर उनके सर्वोच्च पार्टी पद के सामने चुनौती खड़ी कर सकते हैं। कहा जा रहा है कि ऐसे जिस दबाव की अंगीठी में अखिलेश तप रहे हैं उस अंगीठी में कोयले डालने वाला उनके चाचा शिवपाल यादव ही नहीं कांग्रेस भी है, जबकि भाजपा बड़ी खामोशी से इस अंगीठी को हवा दे रही है। क्योंकि अखिलेश के कमजोर होने से सबका फायदा है, शिवपाल का भी आजम का भी कांग्रेस और भाजपा का भी।

भविष्य में आजम खान जमानत पर रिहा हुए तो उनका क्या रुख होगा, ये रुख यूपी की सियासत की बड़ी सुर्खियों को जन्म देगा। वो प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव को ज्यादा तवज्जो देंगे या सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ दिखेंगे? भविष्य के गर्भ की कोख में क्या है, किसी को नहीं पता पर जिज्ञासाओं ने तमाम संभावनाओं को जन्म दे दिया है। आजम खान समाजवादी पार्टी में वैसे ही रहेंगे जैसे थे, या उनको सपा-ए-आजम बनाने का दबाव अखिलेश यादव को झेलना पड़ेगा ! या फिर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद देने का प्रस्ताव रखकर शिवपाल यादव एक नया सियासी दांव खेलेंगे ! कयास, संभावनाएं, अटकलें और अनुमान बहुत सारे हैं।

अखिलेश को घेरने की तैयारी

ये सच है कि यदि जल्द ही आजम खान जेल से रिहा हो गए तो सपा के अंदर और बाहर की सियासी ताकते, सपा के कुछ विधायक, सांसद, पदाधिकारी, कार्यकर्ता और अधिकांश वोटर अखिलेश यादव को दबाव के बड़े चक्रव्यू में घेर सकते हैं। भले ही आज़म का मुसलमानों में बड़ा जनाधार न हो पर वो पार्टी का सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा हैं इस बात को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है। लम्बे समय तक जेल की सख्तियां झेलने के बाद उनसे मुसलमानों की हमदर्दी बेतहाशा बढ़ गई है। सपा को यूपी के हालिया विधानसभा चुनाव 2022 में कुल जितने वोट मिले उसमें सार्वाधिक करीब 60 से 70 फीसद वोट मुस्लिम समाज के थे। इसलिए सपा के वोटरों, समर्थकों, कार्यकर्ताओं का ये दबाव लाज़मी हो जाता है कि कि सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे आज़म ख़ान को सपा-ए-आज़म बनाया जाया।

जितनी जिसकी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी मिले, यानी सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट हासिल करने वाली पार्टी में सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे को सबसे बड़ा पद मिले। यदि ये कयास सच के धरातल पर उतरे तो अखिलेश यादव ऐसी किसी मांग को स्वीकार करें ये बात मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगी। इसी बीच अपने भतीजे से नाराज चाचा शिवपाल अपनी प्रसपा की कमान आजम को देने का प्रस्ताव रख दें तो समाजवादियों में चल रही रही खेमाबाजी के रंग और ही गहरे हो सकते हैं।

शिवपाल चलेंगे यह दाव

ऐसे में एम वाई के फार्मूले के साथ प्रसपा आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने का इशारा भी कर दें तो एक झटके में मुस्लिम और यादव वोटों के बंटवारे और सपा के कमजोर होने के आसार प्रबल हो सकते हैं। और ये भाजपा के लिए बेहद मुफीद (फायदेमंद) होगा। सपा के कुछ मुस्लिम विधायकों, सांसदों, पदाधिकारियों,आजम के रवैयों, शिवपाल-अखिलेश की खींचातानी और कांग्रेस के इरादों को देखकर लगाए जा रहे ये सारे कयास किस करवट बैठेंगे ये आज़म खान का फैसला तय करेगा। और ऐसा कोई फैसला वो तब ही लेंगे जब वो जेल से रिहा हो सकेंगे। लेकिन अभी तो आज़म की उपेक्षा का आरोप झेल रहे अखिलेश के लिए आने वाला वक्त और भी मुश्किल मालुम पड़ रहा है।

अल्पसंख्यक वर्ग का एकतरफा वोट पाने वाली सपा यदि आजम मसले पर अपना सबसे बड़ा वोट बैंक नहीं संभाल सकी तो लोकसभा चुनाव तक ये पार्टी 32 से 15-20 फीसद वोट में सिमट सकती है। आजम मामले में मुसलमानों की नाराजगी को खत्म करना समाजवादी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है।

कांग्रेस भी लगाए हुई है नजर

कभी किंग मेकर कहे जाने वाला मुसलमान पिछले आठ-दस वर्षों से राजनीतिक हिस्सेदारी में हाशिए पर आता जा रहा है। इस बीच अब ये समाज असफलता की आग में तप कर एकजुटता के शऊर का कुंदन बनता दिख रहा है‌। पश्चिम बंगाल और यूपी के विधानसभा चुनावों में बिना बंटे या बिखरे मुस्लिम समाज ने एकजुट होगा भाजपा से मुकाबला करने वाले दल को एकतरफा वोट देकर अपनी राजनीतिक परिपक्वता का सुबूत दिया।

यदि ऐसा ही रहा तो अल्पसंख्यक वर्ग या तो कोई मजबूत विकल्प न होने के कारण नाराज रहकर भी सपा का दामन थामे रहेगा या फिर आगामी लोकसभा चुनाव तक बल्क में (पूरे तरीके से) सपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लेगा। संभावना ये भी है कि अखिलेश, शिवपाल, आज़म की गुत्थमगुत्था और कमजोर कांग्रेस-बसपा व एआईएमआईएम के बीच खड़े मुसलमानों की एकजुटता और एकतरफा वोटिंग का तिलिस्म टूट जाए। और मुस्लिम वोट बैंक का बिखराव आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए बेहद मुफीद (लाभकारी)साबित हो।

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