लखनऊ मेट्रो तीन साल से चल रही घाटे में, कर्ज भी नहीं चुका पा रही है,जानिए अब क्या होगा

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Lucknow Metro running in losses for three years, is unable to repay the loan, know what will happen now
2019-20 में 251.51 करोड़ और 2018-19 में 72.11 करोड़ रुपये का घाटा मेट्रो को हुआ।

लखनऊ। Lucknow Metro प्रदेश की राजनधानी में यातायात व्यवस्था को आसान बनाने के लिए मेट्रो का संचालन किया जा रहा है, लेकिन लखनऊ मेट्रो अपने खर्च के बराबर आमदनी नहीं कर पा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तीन वित्तीय वर्ष से ट्रेनों का संचालन घाटे में चल रहा है। वित्तीय वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ मेट्रो के संचालन से यूपीएमआरसी को 329 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। इससे पहले 2019-20 में 251.51 करोड़ और 2018-19 में 72.11 करोड़ रुपये का घाटा मेट्रो को हुआ। सूत्रों के अनुसार मेट्रो यात्री किराया से अपना खर्च नहीं निकाल पा रही है।

सीजी सिटी में एलडीए से जमीन नहीं मिलने और दूसरी लाइन शुरू न हो पाने से लखनऊ मेट्रो का रेवेन्यू मॉडल फेल हो गया है। ऐसे में घाटे में चल रही मेट्रो अब यूरोपियन इनवेस्टमेंट बैंक (ईआईबी) की किस्तें तक नहीं चुका पा रही है। इससे जहां किस्तें लंबित हो गई हैं तो किराया भी बढ़ाने का दबाव यूपीएमआरसी पर है। उधर, मेट्रो को यात्री संख्या (राइडरशिप) लक्ष्य से एक तिहाई ही मिल पा रही है।

लखनऊ मेट्रो के वित्तीय रिकॉर्ड पर अगर नजर डाले तो बीते तीन वित्तीय वर्ष से ट्रेनों का संचालन घाटे में हो रहा है। वित्तीय वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट के मुताबिक लखनऊ मेट्रो के संचालन से यूपीएमआरसी को 329 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। इससे पहले 2019-20 में 251.51 करोड़ और 2018-19 में 72.11 करोड़ रुपये का घाटा मेट्रो को हुआ।

कर्ज नहीं चुका पा रही मेट्रो

मेट्रो के अधिकारियों के अनुसार यात्री किराया से होने वाली आय से ट्रेन संचालन का भी खर्च नहीं निकल पा रहा है। वहीं, मेट्रो को कर्ज की अदायगी से लेकर कर्मचारियों की सैलरी, कार्यालय आदि के खर्च भी निकालने होते हैं। इसके लिए यात्री किराया से अलग आय के संसाधन विकसित किए जाते हैं। इसमें संपत्तियों का विकास कर उनके किराये से नियमित आय करनी होती है।

पांच साल में नहीं मिल सकी जमीन

मेट्रो के रेवेन्यू मॉडल को बनाए रखने के लिए एलडीए से शासन के आदेश पर सीजी सिटी में करीब 150 एकड़ जमीन मिलनी थी। पांच साल में भी ऐसा नहीं हो सका है। वहीं, विकास शुल्क के नाम पर जमीन के क्षेत्रफल में कटौती जरूर हो गई। अब केवल 86 एकड़ जमीन ही यहां मेट्रो को देने पर सहमति बनी है। यह भी संपत्तियां विकसित करने के लिए मेट्रो को नहीं मिली है। यहां आवासीय व व्यावसायिक संपत्तियां विकसित कर किराये से आय होनी थी।

मेट्रो का काम अटका

वहीं आपकों बता दें कि घाटे की वजह से पुराने लखनऊ में चारबाग से बसंतकुंज के बीच मेट्रो शुरू करने के लिए 11 किमी लंबी ब्ल्यू लाइन बननी है। यह एयरपोर्ट से मुंशीपुलिया के बीच रेडलाइन पर राइडरशिप बढ़ाने में सहयोग करती, जिससे मेट्रो की आय भी बढ़ती। हालांकि, इस लाइन पर काम शुरू नहीं हो सका है। अब नए मुख्य सचिव ने पुरानी डीपीआर को संशोधित करने के लिए कहा है, जिससे आगे जरूरी अनुमति लेकर काम शुरू कराया जा सके। यूपीएमआरसी को ईआइबी को किस्तें देने से कोरोना की वजह से राहत मिली हुई है। 2021 से छिमाही किश्तों में कर्ज की अदायगी अगले 16 साल में होनी है। अब प्रदेश सरकार को प्रस्ताव भेजकर मेट्रो ने अतिरिक्त समय और आर्थिक सहयोग मांगा है।

आय व खर्च के आंकड़े करोड़ में

जनवरी 2021 से मेट्रो को ईआईबी के कर्ज की अदायगी शुरू करनी थी। अभी तक मेट्रो पर करीब 45 करोड़ रुपये की किस्तों की अदायगी लंबित है। आने वाले महीनों में रकम कई गुना बढ़ेगी। कर्ज चार किस्तों में मिला है। 2023 से कर्ज अदायगी शुरू हो जाएगी। लखनऊ मेट्रो के लिए ईआईबी से 3502 करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया है।

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