राक्षसों को नापसंद है इंसानों की पसंदीदा अजान और आरती

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Demons dislike humans' favorite azaan and aarti
हमें भूतिया सियासत को समझने के लिए साम्प्रदायिकता की गफलत से बाहर आना होगा।

नवेद शिकोह-लखनऊ। राक्षस और भूत कुछ ज्यादा ही आजादी पसंद होते हैं इसलिए इसको अनुशासन बिल्कुल बर्दाश्त नहीं। रावण के भाई कुंभकरण की तरह इनको निंद्रा बहुत पसंद है। कहा जाता है कि अजान, आरती, कीर्तन और हनुमान चालीसा से भूत चिढ़ते हैं। ये आवाजें इन्हे खटकती हैं। इन पवित्र आवाजों से दूर भागते हैं या इन्हें बंद करने की साजिश रचते हैं। पौराणिक काल गवाह है, राक्षसों का छल उनकी राजनीति थी। शायद आज के भूत भी अब राजनीतिक हो गए हैं। कमजोर लोगों पर सवार होकर अजान और कीर्तन को आपस में टकराकर ऐसी आवाजें सदा के लिए बंद करने की सियासी साजिशें कर रहे हैं। हमें भूतिया सियासत को समझने के लिए साम्प्रदायिकता की गफलत से बाहर आना होगा।

सुबह लोगों को जगाने में अहम है अजान और आरती

राक्षसी प्रवृत्ति की गफलत कई प्रकार की होती है। अक्सर सुबह न उठ पाने से पूरा दिन खराब हो जाता है। ये नुकसान उन खुशनसीबों का नहीं होता है जिसको भोर में कभी अजान जगा देती है तो कभी आरती। शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग और आर्गन दो होते है। एक हाथ में मोच आ जाए तो दूसरे से काम कर लीजिए। हिन्दुस्तानियों को जगाने के लिए मंदिर भी है मस्जिद भी, गुरुद्वारा और गिरिजाघर भी है। भारत का वो हिस्सा भारत नहीं लगता जहां से अजान,आरती, शबद, कीर्तन या गुरुवाणी की आवाज नहीं आती।

अनुशासन सिखाती है अजान

ये धार्मिक, आध्यामिक आवाजे ​जिंदगी के अनुशासन का अलार्म होती हैं। इन सारी मधुर आवाजों का महत्व है। साइंस कहती हैं ये आवाजें दिल ओ दिमाग को सुकून देती हैं। याद दिलाती हैं, सुबह हो गई उठो। दोपहर की जिम्मेदारी निभाओ। अब शाम हो चली है रात की तैयारी कर लो। अनुशासित होने और टाइमिंग शैडयूल के मैनेजमेंट के लिए पहले जमाने में घंटाघर हुआ करते थे जो वक्त और वक्त के हर पहर से वाकिफ करते रहते थे। जितना बजता था उतने घंटे बजते थे।आज भी स्कूलो़ में घंटा बजता है। पहले युद्ध भी सूर्योदय और सूर्यास्त की टाइमिंग मानकों पर आधारित था।

भूतों और राक्षसों का अस्तित्व हर धर्म स्वीकार करता है। कभी नहीं सुना होगा कि भूतों या राक्षसों को संगीत पसंद है। रावण का भाई कुंभकरण विशाल राक्षस था, वो ख़ूब सोता था। हमारे देश की संस्कृति में संगीत का जन्म भक्ति से हुआ है। म्युजिक को आध्यात्मिक ताकत कहा गया है। विज्ञान मानता है कि संगीत मन और मस्तिष्क का विकार मिटाता है।

आरती, शंख, शबद-कीर्तन

भारत का कोई ऐसा धर्म नहीं जिसकी धार्मिक संस्कृति में संगीत और धुन का मिश्रण नहीं हो। बाइबल, कुरआन, शबद, कीर्तन सब में संगीत है। कुरआन-ए-पाक और अजान का सुर और लय बाकायदा मदरसों में सिखाया जाता है। मोहर्रम तो नौहे, मातम, मरसिए की धुन और लय पर केंद्रित है। कव्वाली,नात-मिलाद सबकी एक धुन होती है। अजान के सुर,लय और आरोह-अवरोह तो कमाल का तो क्या कहना। ऐसे ही आरती, शंख, शबद-कीर्तन, गुरुवाणी और बाइबिल पाठ भी पवित्र संगीत के सुर लय की मिठास लिए होता है। मन-मस्तिष्क को ऊर्जावान बनाने वाली अज़ान को आध्यात्मिक संगीत मानकर धर्म के दायरे से बाहर लाकर देखिए तो तो आपको अज़ान भी कभी नहीं खटकेगी। ये भजन आरती और गुरुवाणी की तरह सबकी है, सबके लिए है।धूप, रोशनी, हवाओं, चांद-सितारों, चांदनी, बारिश, फुहावरों की तरह।
नोट यह लेखक के नीजि विचार है।

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