सुन्नी मुसलमानों से भाजपा का इश्क

693
BJP made a special strategy to defeat PDA in the by-elections with the same formula before 2027, SP lost sleep
भेजे गए तीन-तीन नामों के पैनल में शामिल पिछड़े और दलित के नामों पर गंभीरता से विचार किया हे।
  • दूर भागने वाले की प्यार से धोती पकड़ कर क़रीब लाने की सियासी सोशल इंजीनियरिंग

  •  पिछड़े, दलित-जाटव और अब पसमांदा मुस्लिम समाज से फासले मिटाना भाजपा का सफल फार्मूला

नवेद शिकोह-लखनऊ। नवजीवन अखबार में एक गणेश जी हुआ करते थे पत्रकारिता,साहित्य उनकी रूह थी, धोती-कुर्ता, चंदन का तिलक और मुंह मे पान की गिलौरी उनका हुस्न था। उनको लेख देने जाता तो इंतेज़ार करता था कि वो पान की पीक थूकें तो उनसे बात करने का रास्ता खुले। एक दफा तो उन्होंने पीक थूक दी, फिर भी मुझे उनसे बात करने का मौका आधे घंटे तक नहीं मिला। मरहूम गणेश जी अपने हम उम्र साथी से रूठे हुए थे और साथी उन्हें मनाने में लगे थे। साथी से नाराज़ होकर वो उससे दूर हो जाने के लाए तेजी से भाग रहे थे तो एकाएकी साथी ने हंसते हुए प्यार से उनकी धोती पकड़ ली। अब वो भाग नहीं सकते थे, मोहब्बत की गिरफ्त में आकर वो मुस्कुराए, और जिस साथी से बेहद नाराज़ थे उसको गले लगाकर सारे गिले शिकवे भुला दिए।

राजनीतिक दलों की सोशल इंजीनियरिंग

राजनीतिक दलों की सोशल इंजीनियरिंग भी ऐसी ही होती है। जो पहले से अपने हैं और अपने क़रीब हैं उनको नजर अंदाज भी करोगे तो वो कहीं नहीं जाएंगे। जो आपसे दूर हैं, नाखुश हैं और आपसे दूर भाग रहे हैं उन्हें अपने क़रीब लाने के हुनर को ही सोशल इंजीनियरिंग कहा जाता है।

भजपा से मुसलमानों की दूरी रही है लेकिन यूपी में एजाज रिजवी, शीमा रिज़वी जैसे तमाम सुन्नी मुसलमान भाजपा का मुस्लिम चेहरा बने थे। इसके बाद नई भाजपा में शिया मुसलमानों की सहभागिता बढ़ी। लेकिन पच्चीस-तीस बरस बाद एक बार फिर भाजपा अब पसमांदा मुसलमानों की दूरियां कम करने की रणनीति पर काम कर रही है।
इस बार के योगी मंत्रीमंडल में इकलौता मुस्लिम चेहरा पसमांदा मुस्लिम यानी अंसारी है।

मोदी युग में मजबूत हुई भाजपा

नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन में पिछड़ी जातियों के नेताओं ( कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार.. इत्यादि) को आगे लाकर हिन्दू समाज को एकजुट करके भाजपा ने जनविश्वास का विस्तार किया था। सामाजिक लड़ाई के नाम पर यूपी के क्षेत्रीय दलों ने भाजपा के इस दांव पर पानी फेर दिया और जाति की राजनीति हिन्दुत्व की सियासत पर भारी पड़ने लगी थी। फिर बीस-पच्चीस बरस बाद मोदी युग में भाजपा ने खुद को ताकतवर बनाने के लिए एक बार फिर हिन्दुत्व की एकता कायम करने की कोशिशें शुरू कीं। जिसमें नरेंद्र मोदी जैसी करिश्माई शख्सियत इसलिए भी रामबाण साबित हुई क्योंकि वो भी ओबीसी वर्ग से हैं।

मोदी युग में भी ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य, कायस्थ इत्यादि बुरे वक्त से अच्छे दिनों तक मुसल्लस साथ थे ही, भाजपा ने पिछड़ी जातियों को एहमियत देकर सफलता हासिल करने का सिलसिला शुरू किया। मोदी लहर में दलित और पिछड़ी जातियों की आवाम साथ आती गई और भाजपा का कारवां बनता गया। उधर मुसलमानों का शिया वर्ग अटल से मोदी तक पहले ही कुछ नर्म था।

सुन्नी समाज से रिश्ता मजबूत करने की कोशिश

अब जब यूपी में योगी सरकार रिपीट होकर पौने चार दशक का रिकॉर्ड बनाकर इतिहास रचने में कामयाब हो गई है तो अभी भी जनाधार बढ़ाने के प्रयास थमे नहीं हैं।अब पार्टी ने 2024 में मोदी सरकार रिपीट करने का लक्ष्य पूरा करने के लिए जाटव समाज की रही-सही दूरियों को नजदीकियों में बदलने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं। योगी मंत्रीमंडल टू में खूब सारे पिछड़ों के साथ दलितों-जाटवों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बिरादरी को दिल खोल कर शामिल किया गया है।

मुसलमानों के सुन्नी समाज ख़ासकर पिछड़े (पसमांदा) सुन्नियों से फासला कम करने के लिए इस बार योगी मंत्रीमंडल में शिया मोहसिन रज़ा को हटा कर मुस्लिम समाज की पिछड़ी जाति (पसमांदा) से ताल्लुक रखने वाले नौजवान दानिश अंसारी को मंत्री बनाया है। जबकि यूपी के विधानसभा चुनाव से पहले शिया समाज के सबसे बड़े धर्म गुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने एक वीडियो संदेश के जरिए भाजपा और योगी आदित्यनाथ सरकार पर भरोसा जताया था। शिया मौलाना जव्वाद के परिवार के सदस्य भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ से जुड़े हैं, बावजूद इसके पार्टी की कुशल रणनीति ने पार्टी अल्पसंख्यक विभाग से ही जुड़े सुन्नी समुदाय के दानिश अंसारी को मंत्री बनाना मुनासिब समझा।

भाजपा की इन ख़ूबियों से सीख लेना चाहिए !

भाजपा की सफलताओं के कई राज़ हैं। यहां नेताओं से ज्यादा एहमियत कार्यकर्ताओं की समझी जाती है। और कार्यकर्ताओं में कर्मठता, सादगी, अनुशासन और जमीनी संघर्ष वालों को अवसर मिलते हैं। याद होगा आपको 2012 में सपा की जीत के बाद अखिलेश यादव ने जब शपथ ली थी तो मंच पर कूद रहे कुछ अनुशासनहीन सपाइयों ने मंच तोड़ दिया था, जिसके बाद अब तक लाख कोशिशों और प्रयोगों के बाद भी सपा शपथग्रहण समारोह का मंच सजा नहीं सकी।

वैसे तो भाजपा अपने हर कार्यकर्ता को हर जीत का नायक मानती हैं, लेकिन कुछ महानायक पर्दे के पीछे से संगठन को ताकत देने का काम करने के लिए रात-दिन पसीना बहाते हैं। संगठन की बात की जाए तो भाजपा के प्रदेश महामंत्री ( संगठन) सुनील बंसल 24×7 संगठन के लिए काम करते हैं। मीडिया से परहेज करते हैं, शोहरत की कदापि भूख नहीं है।

बीजेपी का मजबूत संगठन

शपथग्रहण समारोह में एक व्यक्ति कभी माइक ठीक करते तो कभी कुर्सियां व्यवस्थित करते नजर आए। ये यूपी भाजपा संगठन प्रभारी सुनील बंसल थे। मीडिया से दूरी, अनुशासन,सादगी, कर्मठता और सरकार में आने की मोहमाया न होना.. जैसी ख़ूबियों वाले संघ के सिपाही ही शायद भाजपा की सफलता के मील के पत्थर हैं। ऐसी कार्यसंस्कृति वाली राजनीतिक पार्टी में ये अनुमान भी लगाना बेइमानी था कि चार दिन पहले भाजपा की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण करने वाली अपर्णा यादव जैसी अनुभवहीन लोगों को मंत्रीमंडल में शामिल होंगी।

मुस्लिम नुमाइंदगी को लेकर सवाल उठते इसलिए तकनीकी कारणों से पिछली योगी सरकार के मंत्रीमंडल में जनाब मोहसिन रज़ा को शामिल कर लिया गया था, किन्तु वो टीवी कैमरों के मोह से जमीनी संघर्ष करते नजर नहीं आए, अपने बूथ से भी सौ-दो सौ वोट भी नहीं दिलवा सके। मुस्लिम समाज में भी गरीब इंसान के किसी बुरे वक्त पर कभी नहीं दिखे। टीवी और कैमरे के दायरे में बंधे रहे। किसी भी भाजपा के बड़े मंच पर बड़े नेताओं के इर्द-गिर्द प्रोटोकॉल तोड़ कर मंडराते रहे। इसलिए उन्हें हटाकर दूसरे को मौका दिया गया।

इसे भी पढ़ें..

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here