नई दिल्ली। शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन राज्यसभा के 12 सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित करने की कार्रवाई की गई। इनकी वजह इनके द्वारा सदन में नियमों को तार—तार करना बताया गया है। दरअसल सोमवार को संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत हुई।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पहले ही दिन सदन के पिछले सत्र में अनुशासनहीनता करने वाले राज्यसभा के 12 सांसदों को बाकी बचे पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। बताया गया कि निलंबित किए गए सांसदों में कांग्रेस के छह, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के दो, सीपीआई का एक और शिवसेना के दो सांसद शामिल हैं।
वहीं राज्यसभा के 12 सांसदों के निलंबन को लेकर विपक्षी दलों ने कल राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे के कार्यालय में एलओपी पर बैठक बुलाई है। बताया गया कि विपक्ष ने संयुक्त बयान जारी कर बताया कि विपक्षी दलों के नेता एकजुट होकर 12 सांसदों के अनुचित और अलोकतांत्रिक निलंबन की निंदा करते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राज्यसभा के विपक्षी दलों के नेताओं की कल बैठक होगी। इसमे सरकार के सत्तावादी निर्णय का विरोध करने और संसदीय लोकतंत्र की रक्षा के लिए भविष्य की कार्रवाई पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
इन सांसदों का हुआ निलंबन
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सीपीएम के एलामारम करीम और कांग्रेस की फूलो देवी नेतम, छाया वर्मा, आर बोरा, राजामणि पटेल, सैयद नासिर हुसैन और अखिलेश प्रसाद सिंह, टीएमसी की शांता छेत्री व डोला सेन, सीपीआई के विनय विश्वम और शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी और अनिल देसाई निलंबित कर दिए गए।
11 अगस्त को हुए हंगामे को लेकर ये कार्रवाई हुई है। वहीं इन सांसदों के निलंबन को लेकर सदन की ओर से जारी आधिकारिक नोटिस के मुताबिक इन सांसदों ने राज्यसभा के 254वें सत्र के आखिरी दिन यानी 11 अगस्त को हिंसक व्यवहार किया, सुरक्षा कर्मियों पर जानबूझकर हमले किए, चेयर का अपमान किया।
इन्होंने सदन के नियमों को तार-तार कर दिया और कार्यवाही में बाधा पहुंचाई। वहीं शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी के मुताबिक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक एक आरोपी को वहां भी सुना जाता है। उनके लिए वकील भी उपलब्ध कराए जाते हैं, कभी-कभी सरकारी अधिकारियों को उनका पक्ष लेने के लिए भेजा जाता है।
बताया गया कि यहां हमारा पक्ष नहीं लिया गया। निलंबित एक प्रियंका ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज देखें तो यह साफ पता चलता है कि कैसे पुरुष मार्शल महिला सांसदों से अभ्रदता कर रहे थे। बताया गया कि एक तरफ ये सब और दूसरी तरफ आपका फैसला? यह कैसा असंसदीय व्यवहार है?
वहीं इसको लेकर कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा ने कहा कि यह निलंबन केवल अनुचित और अन्यायपूर्ण है। बताया गया कि अन्य दलों के अन्य सदस्य भी थे, जिन्होंने हंगामा किया लेकिन अध्यक्ष ने मुझे निलंबित कर दिया। पीएम मोदी जैसा चाहते हैं वैसा ही कर रहे हैं क्योंकि उनके पास भारी बहुमत है।
वहीं कांग्रेस के ही निलंबित सांसद रिपुन बोरा ने कहा कि यह पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है; लोकतंत्र और संविधान की हत्या। हमें सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया है। यह एकतरफा, पक्षपाती, प्रतिशोधी निर्णय है। विपक्षी दलों से सलाह नहीं ली गई। हमने पिछले सत्र में विरोध किया था।
हमने किसानों, गरीब लोगों के लिए विरोध किया था और सांसदों के रूप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम उत्पीड़ित, वंचितों की आवाज उठाएं। संसद में आवाज नहीं उठाएंगे तो कहां करेंगे?
ये है पूरा मामला
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संसद का मानसून सत्र विपक्ष के हंगामे के साथ शुरू हुआ था और इसी के चलते समापन की तय तिथि से दो दिन पहले की समाप्त हो गया था। पेगासस जासूसी विवाद और तीन कृषि कानूनों को लेकर विपक्ष की ओर से सदन में लगातार हंगामा और विरोध प्रदर्शन किए गए थे।
इसके चलते कई बार सदन की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा था। बताया गया कि सत्र के आखिरी दिन जब कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन पर चर्चा शुरू हुई थी तब विपक्ष के नेता कथित तौर पर अधिकारियों की मेज पर चढ़ गए थे। काले कपड़े लहराए थे और फाइलें फेंकी थीं।
उन्होंने कथित तौर पर सुरक्षा कर्मियों के साथ भी दुर्व्यवहार किया था। वहीं, विपक्षी नेताओं ने यही आरोप उल्टा सुरक्षा कर्मियों पर लगाया था। इस बीच आज शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन यह कार्रवाई की गई।
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