लखनऊ। विश्व स्ट्रोक डे के अवसर पर नि:शुल्क परामर्श शिविर का आयोजन एक्ट्रा केयर फिजियोथेरेपी के प्रांगण में किया गया। सेन्टर की निदेशक डॉ. आकांक्षा उपाध्याय ने बताया कि आजकल के तनावपूर्ण जीवन के कारण लोगे में डायबिटीज, हाइपरटेशन एवं स्ट्रोक जैसी समस्याएं बहुत आम हो रही है। स्ट्रोक की समस्या पहले केवल बुजुर्गों में ही देखने को मिलती थी। पिछले कुछ सालों में युवा पीढ़ी में भी स्ट्रोक के कई मामले सामने आये
पोस्ट स्ट्रोक मरीजों में फिजियोथेरेपी का बहुत अच्छा रोल देखा गया है। फिजियोथेरेपी से इन मरीजों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है, किन्तु ठीक समय पर फिजियोथेरेपी करवाना बहुत ही आवश्यक है। पोस्ट स्ट्रोक मरीजों में 3 माह से 6 माह के अंदर रिकवरी की बहुत अधिक सम्भावनाएं होती है। स्ट्रोक के बाद के शुरू के तीन महीने रिकवरी के लिए गोल्डेन टाइम में आते हैं। इसलिए मरीज को हास्पिटल से डिस्चार्ज होते ही अच्छे न्यूरोफिजियोथेरेपिस्ट से सलाह लेकर नियमित फिजियोथेरेपी कराना शुरू कर देना चाहिए। चीफ कंसलटेन्ट न्यूरो फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. संतोष कुमार उपाध्याय ने बताया कि उन्होंने स्ट्रोक रिहबिलिटेशन हेतु नवीनतम तकनीक, मशीनों एवं मैनुअल तकनीक के द्वारा मरीजों के घरेलू एवं व्यवासायिक जीवन में काफी सुधार लाया जा सकता है। पी.एन.एफ. और एन.डी.टी. बन्नास्ट्राम, रूड्स एप्रोच इत्यादि तकनीकों का स्ट्रोक में बहुत ही अच्छा प्रभाव देखा गया है।
माडर्न रिहमिलिटेशन में हम व्यक्ति के फंक्शनल टास्क, गोल ओरीयन्टेड टास्क पर ध्यान देते है। बी.आर. रिहबिलिटेशन पेब्लो सिस्टम जैसे इंटरएक्टिव डिवाइसेज, सेंसरी बेस्ड सिस्टम के उपयोग से हम मरीजों को ऐसा वातावरण देते हैं, जिसमें वे रिअल टाइम फीडबैक के साथ हैण्ड आर्म फक्शन, ट्रक कंट्रोल एवं फक्शनल टास्क को एक्यूरेसी एवं मोटिवेशन के साथ परफार्म कर सकें।
इन मरीजों में आधा शरीर पैरालाइज होने की वजह से मस्कुलर इंबैलेन्स हो जाता है। जिसके फलस्वरूप बहुत से पोस्चुरल परिवर्तन आते है जैसे कि Pushers सिड्रोम इत्यादि। पोरब्योरल अनालिसिस लैब की सहायता से हम उनके पोस्वर को अच्छी तरह से Assess करके उनके लिए खास एक्सरसाइजेज प्रोग्राम प्लान कर सकते हैं। स्टैटिक एवं डायनमिक बैलेंस कार्डिनेशन की ट्रेनिंग के लिए सेन्चसामूब जैसे आधुनिक उपकरणों का उपयोग किया जाता है। शिविर में संतोष कुमार उपाध्याय जी न्यूरो पर कार्यरत टीम में डॉ. पूनम वर्मा, डॉ. सना ने एफ. ई. एस. ई.टी.एस. एवं ई.एम. जी जैसी इलेक्ट्रिकल करेंटस का उपयोग करके मांसपेशियों को एक्टीवेट करना एवं उन्हें फक्सनल बनाना आसान हो गया है के बारे में जानकारी दी तथा शिविर में आये स्ट्रोक मरीजों को एक्सरसाइजेज और पोरवर सही कैसे रखें के बारे में बताया। जिन मरीजों को फीडिंग, स्पीच एवं स्वालोइंग में कठिनाई होती है। उनमें vital Stim डिवाइस का उपयोग करके oropharyngeal मांसपेशियों को एक्टिवेट किया जाता है की भी जानकारी प्रदान की।
टिल्ट टेबल, पारशियल बाडी बेट हारनेस सिस्टम एवं रूफ टॉप पेशन्ट लिफ्ट का उपयोग करके हम स्ट्रोक के मरीजों को बाल्किंग/स्टैंडिंग के लिए ट्रेन करते हैं। सस्पेशन थेरेपी एवं मल्टी टास्किंग टेबल का उपयोग करके हम हैंण्ड एक्टिविटीज़। शोल्डर मोवमेंट आदि पर फार्म करवाते है। स्पास्टिसिटी को कम करने के लिस हम शाकवेब थेरेपी का उपयोग करते हैं, साथ ही बेट बेयरिंग एक्सरसाइज एवं सेंसरी फैसिलिटेशन का उपयोग करके हम स्पास्टिक माँसपेशियों की टोन कम करते हैं। शिविर में फिजियो टीम के गोविन्द, बीरेन्द्र, आशीष, अजय कुमार, रचित, विपिन, सुजीता, रेहित सिंह, मंदीप, सिमरन, अनामिका आदि ने भी मरीजों को एक्सरसाइज सिखाई। शिविर की समाप्ति पर डा० आकांक्षा उपाध्याय ने सभी फिजियो तथा मीडिया कर्मियों को शिविर को सफल बनाने के लिए आभार व्यक्त किया।