पत्रकार रवि कुमार सिंह, पटना। सुप्रीम कोर्ट में देश का नाम बदले जाने को लेकर याचिका दाखिल किए जाने और सुनवाई शुरू होने के साथ ही भारत नाम को लेकर लोगों में कन्फ्यूजन है, तो आइए इसे दूर करने की कोशिश करते हैं। दरअसल, ज्यादातर लोग सोचते हैं कि देश का यह नाम लगभग छह हजार साल पहले हुए भरत नाम के चक्रवर्ती सम्राट के नाम पर पड़ा था, जो कि गलत है। वास्तव में यह वो समय था, जब भारत सांस्कृतिक तौर पर बहुत ही संपन्न हो चुका था। और इसका कारण था कि यहां काफी लोग चेतना के आखिरी छोर पर पहुंच चुके थे।
यह कोई बीस हजार वर्ष पहले की बात है, यानी हिंदू मान्यताओं के अनुसार सतयुग का समय, उस समय आदियोगी और उनके सभी शिष्यों जिसमें सप्त ऋषि भी शामिल थे, लोगों की चेतना को उठाने के लिए बहुत तरीके से उन्होंने काम किया हुआ था।आदियोगी ने इसके लिए सबसे पहले विश्व को दो भागों में बांटा था जिसका नाम उन्होंने योग भूमि और भोग भूमि रखा। ऐसा उन्होंने सिर्फ समन्वय बनाए रखने के लिए किया।
इसके लिए ही उन्होंने सप्तर्षि में से तीन को साउथ अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और उत्तरी अमेरिका में भेज दिया था, ताकि हर हाल में एक समन्वय तो स्थापित रहे ही, खैर इस घटना के सैकड़ों वर्षों बाद जब योग भूमि यानी हिंदुस्तान में हजारों की संख्या में चैतन्य लोग उपस्थित हो गए और उन्होंने ज्ञान का प्रकाश चारों तरफ फैलाना शुरू किया तो उन्हें इस जगह के नाम को लेकर एक खटक पैदा हुई, आर्यावर्त और हिंदुस्थान दोनों ही नाम व्यक्ति सूचक और जगह के सूचक थे।
आर्यावर्त यानी आर्यों के रहने की जगह और हिंदुस्थान यानी हिंद सागर और सिंधु नदी के बीच का स्थान, जैसा कि आज भी विश्व की सभी पुरानी सभ्यताएं और पुराने लोग इस जगह को इसी नाम से जानते हैं. लेकिन, एक संस्कृति संपन्न देश के लिए ये दोनों ही नाम कुरुप जैसे मालूम पड़ते, वास्तव में कोई भी सभ्य समाज अपनी संस्कृति यानी काम की वजह से पहचाना जाना उचित मानता है न कि व्यक्ति या जगह के नाम से। बस, इसी बात को लेकर एक सांस्कृतिक नाम रखने की मांग उठी, राजाओं और ऋषियों के बीच विचार मंथन शुरू हुआ और उस मंथन से जो अमृत निकला वह आखिरकार हमारे सामने है भारत जैसे लोकप्रिय नाम के रूप में।
ऋषियों ने इस जगह का नाम बदलकर भारत कर दिया, जिसका अर्थ है भाव, राग व ताल. यानी वो धरती जहां भावनाओं को संतुलित करने, जिंदगी के राग और जीवन के ताल को साधने की शिक्षा दी जाती है. सद्गुरु समेत तमाम आध्यात्मिक गुरु मानते हैं कि यह कोई बीस हजार वर्ष पूर्व रखा गया नाम है, बाद में यह इतना लोकप्रिय हुआ कि बड़े राजाओं और ज्योतिषियों ने उज्जवल भविष्य वाले बच्चों का नाम भी भारत रखना शुरू कर दिया। इसी के तहत दुष्यंत पुत्र का नाम भी भरत पड़ा, जो चक्रवर्ती सम्राट हुए। दशरथ के एक पुत्र का नाम भी भरत रखा गया और भृतहरि या राजा भरथरी का नाम भी इसी से प्रेरित रहा है, ये सभी महान लोग थे, ऐसे में बाद के लोगों ने मान लिया कि शायद उनके ही नाम पर देश का नाम भारत पड़ा हो, लेकिन यह सही नहीं है।
आज भी देश के पासपोर्ट पर रिपब्लिक आफ भारत ही अंकित होता है, यही नहीं आधार कार्ड व पैन कार्ड जैसे महत्वपूर्ण डाक्यूमेंट्स भी भारत सरकार के नाम से ही जारी किए जाते हैं, यहां तक कि संविधान में भी इंडिया यानी भारत नाम का ही उल्लेख है। और विवाद का मुख्य कारण भी यही है कि कोई एक ही प्रामाणिक नाम संविधान में हो। लोग इंडिया को अंग्रेजों द्वारा दिया गया नाम कहकर भी विरोध जता रहे हैं, लेकिन मेरे देखने से यह उतना बड़ा इश्यू नहीं है, जितना कि संविधान में कंफ्यूजन का दिखना इश्यू होना चाहिए, उमा भारती समेत ज्यादातर लोगों ने इस मुद्दे को लेकर ही अपनी बात रखी भी है व किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की अपील की जैन मुनि आचार्य विद्या सागर महाराज भी 2017 से ही इसको लेकर मुखर हैं, उन्होंने इसे गुलामी की निशानी भी माना है।
बहरहाल, अब यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में है और मुझे लगता है जल्द ही कुछ निष्कर्ष जरूर निकलेगा, इंडिया जो कि सिर्फ संविधान में कहीं कहीं लिखा गया है, निश्चित ही उसे बदलना सरकार के लिए आसान बात होगी न कि भारत नाम से जारी किए गए पूरे भारतियों के डाक्यूमेंट्स को बदलना. खैर, यह पहली बार नहीं है जब अंग्रेजों द्वारा रखे गए नाम को किसी देश ने बदलने की पहल की हो. बल्कि, ज्यादातर देशों ने उन नामों को बदलकर अपने पुराने और गौरवशाली नामों को अपना लिया है, भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका भी इसका एक सबसे करीबी उदाहरण है। श्रीलंका का नाम सीलोन कर दिया गया था, जिसे उन्होंने बदलकर धार्मिक ग्रंथों में वर्णित अपने ऐतिहासिक नाम को अपनाया, कई भारतीय शहरों के नाम भी इस दौरान बदले गए हैं, जो अंग्रेजी शासन में किन्हीं दूसरे नामों से जाने जाते थे।
यह लेखक का निजी विचार है….