लखनऊ, वीरेंद्र त्रिपाठी। शहीद शिरोमणि चन्द्रशेखर आजाद के बिना देश की आजादी आन्दोलन की हर कहानी अधूरी है। अंग्रेजों द्वारा जब शोषण उत्पीड़न चरम पर था और लोग अपने-अपने तरीके से ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। उन्हीं में एक क्रांतिकारी धारा थी जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद का शासन खत्म कर एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहती थी जहां किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति का शोषण न हो और किसी को अपनी बुनियादी जरुरतों के लिए तरसना न पड़े।उसी क्रांतिकारी धारा के कमांडर इन चीफ अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद थे।
आजादी आन्दोलन के इतिहास में चन्द्र शेखर आजाद 11 वर्ष तक लगातार सक्रिय रह कर ब्रितानी हुकूमत के लिए आजीवन चुनौती बने रहे। उनके क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत 14 वर्ष की अल्पायु में असहयोग आंदोलन के दौरान हुआ था। सन 1920 में गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन पूरे देश में चल रहा था। देश का हर तबका विशेष रूप से छात्र एवं नौजवान इस आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी कर रहे है। उन दिनों देश में आन्दोलन का उत्सव था और उस उत्सव में एक चौदह बरस का बच्चा भी शामिल हुआ था और उस बच्चे को जब गिरफ्तार करके मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया तो मजिस्ट्रेट द्वारा उस बच्चे से उसका नाम पूछने पर उसने अपना नाम “आजाद”, पिता का नाम ‘ स्वतंत्रता’ और ‘जेल’ को अपना घर बताया था और इसके बाद चन्द्रशेखर, चन्द्रशेखर आजाद बन गए।
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश राज्य के भाबरा गांव में हुआ था। इनके पिता श्री सीताराम तिवारी अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते थे और अपने पैतृक गांव से आकर भाबरा गांव में बस गए थे। इनकी माता का नाम जगरानी देवी था। भाबरा गांव एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र था और यही पर चन्द्रशेखर आजाद का बचपन बीता। उन्होंने आदिवासी बच्चों के साथ धनुष-बाण चलाने की कला सीखी थी और वे निशाना लगाने में प्रवीण हो गये थे। स्कूली पढाई में मन न लगने के कारण वे अल्पायु में बम्बई आ गए जहां पर उन्होंने मजदूर का जीवन बिताया और उनके साथ काम किया तथा बाद में वे आगे की पढ़ाई के लिए बनारस पहुंच कर एक संस्कृत विद्यालय में प्रवेश लिया था।
चौरी चौरा कांड
चौरी- चौरा की घटना के बाद 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद देश के युवाओं का आंदोलन नहीं रुका और राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेशचन्द्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ (एचआरए) का गठन किया। चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गये। इसी दल ने 9 अगस्त 1925 को ऐतिहासिक काकोरी कांड को अंजाम देकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ कड़ी चुनौती पेश किया था। काकोरी कांड के बाद बडे पैमाने पर क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियां हुई, दल के प्रमुख संगठन कर्ता राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी सहित अन्य क्रांतिकारी गिरफ्तार हो गए थे तथा जिन पर मुकदमा चलाकर 4 क्रांतिकारियों को फांसी व 16 अन्य को कड़ी सजा दी गई परन्तु आजाद फरार रहे इस दौरान उन्होंने अपने साथियों को छुडाने के लिए व अपने संगठन को पुर्नजीवित करने के लिए निरन्तर कोशिशें जारी रखी।
भगत सिंह से संपर्क
भगत सिंह के सम्पर्क में आने के बाद आजाद ने अपने दल का पुर्नगठन करने के लिये 8 सितम्बर 1928 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में अपने साथियों को इकटठा कर एक गुप्त सभा का आयोजन किया जिसमें दल के उद्देश्यों पर गंभीर विचार- विमर्श हुआ तथा दल का नाम हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन” को बदलकर “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन” रखा गया तथा। दल के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि हमारी लड़ाई का असली मकसद अन्याय व शोषण पर आधारित व्यवस्था को खत्म कर समाजवादी समाज की स्थापना करना है आजाद स्कूली पढ़ाई ज्यादा नही कर पाये थे परन्तु उनके पास जीवन का बहुमूल्य अनुभव था इसलिए जब कभी मजदूरों के दुःख- दर्द पर चर्चा होती तो वे अपने अनुभवों को बड़े बेबाकी से रखते थे।
आजाद को हमेशा यह फिक्र रहती थी किस साथी को क्या जरूरत है दरअसल आजाद श्रेष्ठ संगठनकर्ता थे। वे बाहर से जितने कठोर दिखते थे दरअसल वे अंदर से उतने ही नम्र थे। एक बार जब बिस्मिल के नेतृत्व में धन जुटाने के लिए एक गांव डकैती डाली गई थी तथा उस एक्शन में जब एक औरत ने आज़ाद का पिस्तौल छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बावजूद आज़ाद ने अपने उसूलों के कारण उस पर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के आठ सदस्यों पर, जिसमें आजाद और बिस्मिल भी शामिल थे, पूरे गांव ने हमला कर दिया। बिस्मिल ने मकान के अन्दर घुसकर उस औरत को कसकर चांटा मारा, पिस्तौल वापस छीनी और आजाद को डांटते हुए खींचकर बाहर लाये थे। एक दूसरी घटना में जब वे फरारी की हालत में थे और एक व्यक्ति किसी महिला से दुर्व्यवहार कर रहा था तो उस समय भी वे चुप नही रहे बल्कि उसका विरोध किया। उनके जीवन की एक और विशेषता थी कि वे अपनी वेषभूषा व आवाज आसानी से बदल लेते थे और यही कारण था कि उन्हें अंग्रेजी शासन के लिए आजीवन चुनौती बन रहे। ये घटनाएं चन्द्रशेखर आजाद के जीवन दर्शन की बानगी है। आज चन्द्रशेखर आजाद का 115 वीं जयन्ती है इस अवसर हम उनके जीवन संघर्ष को याद करते है तथा उन्हें नमन करते है।