काव्य गोष्ठी:अब न चायना से न पाकिस्तान से डर लगता है..हमे तो नये वेरिएंट ओमिक्रॉन से डर लगता है..

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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के 45वें स्थापना दिवस के अवसर पर गुरूवार को ‘डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की भाषा एवं साहित्य दृष्टि' विषय पर केन्द्रित संगोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन संस्थान के यशपाल सभागार किया गया।

लखनऊ। ‘अब न चायना से न पाकिस्तान से डर लगता है, न तो हिन्दू से न मुसलमान से डर लगता है, न जाने कब कहाँ किस को चपेट में ले ले, हमे तो नये वेरिएंट ओमिक्रॉन से डर लगता है।’यह रचना पढ़ते ही उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का यशपाल सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

मौका था गुरूवार को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के 45वें स्थापना दिवस का। कार्यक्रम में एक के बाद एक कवियों ने अपनी रचनाओं से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। दरअसल उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के 45वें स्थापना दिवस के अवसर पर गुरूवार को ‘डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की भाषा एवं साहित्य दृष्टि’ विषय पर केन्द्रित संगोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन,

संस्थान के यशपाल सभागार किया गया। यहां संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ. सदानन्द प्रसाद गुप्त की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी में व्याख्यान देने के लिए डाॅ. भगवान सिंह, शिवदयाल आमंत्रित रहे। संगाष्ठी एवं काव्य गोष्ठी का प्रारम्भिक संचालन डाॅ. अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक,

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान तथा कवि सम्मेलन का संचालन दीपक गुप्त ने किया। ‘डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की भाषा एवं साहित्य दृष्टि‘ विषय पर केन्द्रित इस संगोष्ठी में स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर महत्वपूर्ण जानकारी दी गई।

हिन्दी का ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार होना चाहिए

गोष्ठी में डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की भाषा एवं साहित्य दृष्टि पर विचार रखते हुए डाॅ. भगवान सिंह ने कहा कि डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद यदि राष्ट्रपति न भी बने होते तो भी वे देशरत्न ही होते। राजेन्द्र बाबू का हिन्दी के प्रति प्रेम प्रारम्भ से ही था। राजेन्द्र बाबू का चिन्तन प्रतिबद्धत्ता, समर्पण देश के प्रति बिल्कुल अलग था।

हिन्दी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से उनकी भाषा दृष्टि, साहित्य दृष्टि स्पष्ट परिलक्षित होती है। भाषा के जातीय स्वरूप की चिन्ता वे सदा करते थे। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना के साथ डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की निष्ठा और समर्पण स्पष्ट हो जाता है, जिससे उनकी सम्बद्धता महत्वपूर्ण थी।

वहीं अपने सम्बोधन में शिवदयाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद का समय चुनौती पूर्ण समय था। अपनी मेधा के बल पर वे अल्प समय में ख्यातिप्राप्त करने वाले राजनेता होने के साथ-साथ वे उस समय के शिखर पुरुष महात्मा गांधी और गोखले ने उनसे स्वयं सम्पर्क किया था।

उनके जीवन में निष्ठा, समर्पण और तेजस्विता निरन्तर दिखायी देती है। कहा गया कि डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद का हिन्दी और अन्य भाषाओं से जुड़ी संस्थाओं से गहरा सम्बन्ध रहा। हिन्दी का ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार होना चाहिए।

काव्य गोष्ठी में कवियों ने यूं बांधा समां

शिवओम अम्बर, फर्रुखाबाद
‘जीने की ख़्वाहिश है तो, करने की तैयारी रख, श्रीमद् भगवद्गीता पढ़, युद्ध निरन्तर जारी रख, फ़ाकों को भी मस्ती में जीते हैं, बस्ती-बस्ती फ़रियाद नहीं करते, सच कहते हैं अथवा चुप रहते हैं, हम लफ़्ज़ों को बर्बाद नहीं करते।’

कमलेश मौर्य ‘मुदु‘, सीतापुर
‘अब न चायना से न पाकिस्तान से डर लगता है, न तो हिन्दू से न मुसलमान से डर लगता है, न जाने कब कहाँ किस को चपेट में ले ले, हम तो नये वेरिएंट ओमिक्रॉन से डर लगता है।’

वशिष्ठ अनूप, वाराणसी
‘ परख इंसान की होती है अक्सर दो ही मौकों पर, कहाँ छोड़ी न पुछारी, कहाँ झुकना नहीं छोड़ा, थके थे पाँव, मंजिल दूर थी, राहे थी पथरीली, वचन ख़ुद को दिया था इसलिए चलना नहीं छोड़ा।’

कमलेश राय, मऊ
‘बाद मुद्दत के मिली रोशनी है आजादी, हरेक होंठ पे ठहरी हंसी है आजादी, सीख लो इसकी तहे दिल से हिफाज़त करना बहुत मंहगी है, बहुत कीमती है आजादी।’

इसी क्रम में डाॅ0 प्रकाशचन्द्र गिरि (बलरामपुर) सतीश आर्य, (गोण्डा) बलराम श्रीवास्तव (मैनपुरी) आदि कवियों ने अपनी रचनाओं से सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने किया।

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