अवनीश पाण्डेय, लखनऊ। यूपी विधानसभा चुनाव से पहले ही चुनाव आयोग ने शिवपाल सिंह यादव के चुनाव चिन्ह चाबी को ज़ब्त कर दिया है। आयोग ने उन्हें अब चाबी को चुनाव चिन्ह के रूप में निर्वाचन के दौरान इस्तेमाल पर बैन लगाया है। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में अब महज थोड़ा ही वक्त बचा है।
ऐसे में आयोग द्वारा उठाए गया यह कदम प्रसपा प्रमुख शिवपाल तथा उनके भावी प्रत्याशियों को मुश्किल में डाल सकता हैं। बताते चलें कि 2022 विधानसभा चुनाव शिवपाल सिंह यादव चाबी चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतरने वाले थे। उन्होंने इसके साथ पार्टी को जोड़कर पूरा प्रचार प्रसार किया था।
मगर चुनाव आयोग की ओर से चिन्ह आवंटित नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि अब इस कारण उन्हें कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। बता दें कि प्रदेश में चुनाव के ऐलान में अब चंद रोज ही बचे हैं, ऐसे में पार्टी को अब नया चिन्ह आवंटित कराना बड़ी चुनौती माना जा रहा है।
सपा में वर्चस्व को लेकर यूं शुरू हुआ था संघर्ष
गौरतलब है कि 2017 में सपा में वर्चस्व को लेकर संघर्ष की लड़ाई शुरू हुई थी, जिसके बाद से पार्टी पर पूरा अधिकार अखिलेश यादव का हो गया। अखिलेश ने शिवपाल से पार्टी का पदभार छीन लिया। इससे नाराज होकर अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव ने अपनी नई पार्टी बनाई।
2019 के लोकसभा चुनाव में आयोग ने शिवपाल को चाभी चुनाव चिन्ह आवंटित की थी। उस समय इन्हें मात्र .31 फीसद ही मत हासिल हुए थे।
यूं छिन गया चुनाव चिन्ह
लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुआ। इसमे जननाय़क जनता पार्टी को चाबी चुनाव चिन्ह आवंटित हुआ। जननायक जनता पार्टी हरियाणा के राज्यस्तरीय पार्टी के तौर पर पंजीकृत है। रजिस्ट्रीकृत पार्टियों में शामिल प्रसपा को अब 197 मुक्त चुनाव चिन्हों में से नया चिन्ह आवंटित कराना होगा।
बताया कि पार्टी ने बीते 2 सालों से इसी चिन्ह पर अपना प्रचार प्रसार किया है, ऐसे में पार्टी के चुनाव चिन्ह बदलने से प्रचार प्रसार में कठिनाई हो सकती है।
साइकिल पर चढ़ेगें तो लगेगा ह्विप
बताते चलें कि शिवपाल ने बीते दिन सपा के साथ गठबंधन का ऐलान किया है। अब यह साफ हो गया है कि 2022 का चुनाव चाचा—भतीजे एक साथ लड़ेंगे। लेकिन इन सब के बीच शिवपाल अपनी पार्टी के लोगों को और खुद भी अपने पार्टी तथा अपने पार्टी के बदौलत चुनाव लड़ाना चाहते हैं।
यदि वे फिर से साइकिल चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ते है तो उन पर ह्विप लगेगा। जिसके कारण वे अन्य गठबंधन किए दलों के तरह अलग होने से छूट नहीं होगी, जो प्रसपा प्रमुख और उनके प्रत्याशियों के लिए मुश्किल भरा हो सकता है।
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