सनोफी और रिसर्च सोसाइटी फॉर स्‍टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया के टाइप-1 डायबिटीज सामाजिक प्रभाव कार्यक्रम के सकारात्मक परिणाम

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Positive results from Sanofi and the Research Society for the Study of Diabetes in India's Type 1 diabetes social impact program
टी1 डायबिटीज का उपचार एवं प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित डॉक्‍टरों एवं एजुकेटर्स की संख्‍या बहुत कम है।

बिजनेस डेस्क। रिसर्च सोसाईटी फॉर द स्टडी ऑफ़ डायबिटीज इन इंडिया (आरएसएसडीआई) ने सनोफी इंडिया लिमिटेड (एसआईएल ) के साथ मिलकर जानकारी दी है कि टाइप-1 डायबिटीज (टी1डी) के लिए एसआईएल के सामाजिक प्रभाव प्रोग्राम में उनके सहयोग के सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। इस प्रोग्राम ने आमतौर पर शिशुओं और कम उम्र के वयस्क लोगों को प्रभावित करने वाली इस ऑटो-इम्यून क्रॉनिक स्थिति की पहचान और प्रबंधन के लिए देखभाल के एक सर्वव्यापी मानदंड का निर्माण किया है।

ऑटो-इम्यून क्रॉनिक स्थिति की पहचान

इस प्रोग्राम ने इस स्थिति से पीड़ित 1,300 सुविधाहीन बच्चों को मुफ्त इन्सुलिन, सिरिंज, लैन्सेट्स और ग्लूकोज स्ट्रिप्स के लिए फंडिंग भी प्रदान की है। ये 1300 बच्चे टी1डी प्रबंधन पर बेहतर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और इन्हें इन्सुलिन भी मिली है, और इस तरह ये हाइपोग्लाईसीमिया और हाइपरग्लाईसीमिया को नियंत्रित करने की अपनी क्षमता में काफी सुधार प्रदर्शित कर रहे हैं। पिछले 9 महीनों में (सितम्बर 2022 से लेकर जून 2023 तक) इस प्रोग्राम के हस्‍तक्षेप से हाइपोग्लाईसीमिया का अनुभव (प्रति सप्ताह 1 से 4 बार) करने वाले बच्चों की संख्या में 46 प्रतिशत तक (70 प्रतिशत के मुकाबले) और हाइपरग्लाईसीमिया का अनुभव (प्रति सप्ताह 1 से 4 बार) करने वाले बच्चों की संख्या में 25 प्रतिशत तक (52 प्रतिशत के मुकाबले) की कमी आई है।

डायबिटीज मरीजों की देखभाल

टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित और सम्पूर्ण भारत में आरएसएसडीआई एवं सनोफी इंडिया के टी1डी सामाजिक प्रभाव कार्यक्रम में नामांकित 1300 बच्चों में से 112 बच्चे उत्तर प्रदेश के हैं। जुवेनाइल (बचपन से सम्बंधित) या इन्सुलिन पर निर्भर डायबिटीज के रूप में संदर्भित, भारत में टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित लोग और उनकी देखभाल करने वालों को डायबिटीज प्रबंधन में लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि टी1 डायबिटीज का उपचार एवं प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित डॉक्‍टरों एवं एजुकेटर्स की संख्‍या बहुत कम है।

इन्सुलिन, टेस्ट स्ट्रिप्स

दूसरी चुनौतियाँ टी1डी के बारे में सार्वजनिक जागरूकता की कमी, सामाजिक-आर्थिक बोझ, और विशेषकर अर्द्ध-शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में उचित हेल्थकेयर सुविधाओं की सुलभता का अभाव है। इसके अलावा अन्य जटिलताओं में विलंबित डायग्नोसिस, इन्सुलिन के कोल्ड-चेन प्रबंधन की खराब स्थिति, और पेरेंट्स एवं देखभाल करने वालों के लिए अपर्याप्त शिक्षा शामिल हैं।

यह भी देखा गया है कि टाइप-1 डायबिटीज का नतीजा सामाजिक अलगाव, विशेषकर लड़कियों के लिए, के रूप में सामने आता है। भारत में टाइप-1 डायबिटीज से प्रभावित हर एक व्यक्ति का अगर समय पर निदान हो जाए, तो प्रति व्यक्ति स्वस्थ जीवन के 3 वर्ष लौटाए जा सकते हैं। इसी प्रकार, अगर भारत में हर किसी को इन्सुलिन, टेस्ट स्ट्रिप्स और उत्तम आत्म-प्रबंधन सुलभ हो को प्रति व्यक्ति स्वस्थ जीवन के 21.2 वर्ष लौटाए जा सकते हैं।

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