उजड़े रवीन्द्रालय को आबाद करने का प्रयास

217
Efforts to rehabilitate the ruined Rabindralay
जज्बा मुश्किलों से लड़ने का वक्त निकलवा लेता है। हिम्मत नामुमकिन को मुमकिन बना कर मजबूरियों को हराने की कोशिश करती है।

नवेद शिकोह,लखनऊ । रंग बेशर्म नहीं होता। शर्म आती है उस रंग मंच से जुड़े लखनऊ के रंगकर्मियों को जिनकी मजबूरियो ने उनकी यादों की विरासत को सिसकने पर मजबूर कर दिया। वो अपनी प्रतिभा, शौक़ और जुनून को पेशा नहीं बना सके और रोज़ी रोटी के संघर्ष में बंध गए।रंगमंच और लोककलाओं की विरासत को अपने ख़ून-पसीने और जूनून से सींचने वाले अपनी इस सरमाया पर ताले लटके देखकर उदास हो जाते हैं। कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि रोजी-रोटी की जद्दोजहद की व्यस्तता से वक्त निकालना आसान नहीं है।लेकिन जज्बा मुश्किलों से लड़ने का वक्त निकलवा लेता है। हिम्मत नामुमकिन को मुमकिन बना कर मजबूरियों को हराने की कोशिश करती है।

बरसों से यहां के कपाट बंद पड़े हैं

ऐसी तमाम मजबूरियों की बेड़ियां काटकर रंग संस्था ‘प्रयास’ ने एक प्रयास किया है। रंगमंच के रंगों का अतीतमहल “रवीन्द्रालय” 23 दिसंबर को ज़िन्दा होने का सुबूत देगा।लखनऊ के रंगमंच का मरकज जो कभी अपनी कलात्मक गतिविधियों से गुलज़ार रहता था, बरसों से यहां के कपाट बंद पड़े हैं, अब ये खुल जाएंगे। जिसका मंच देश के हर बड़े कलाकार से गुलज़ार हुआ, जिसकी कुर्सियां देश के कई प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों से सुशोभित हुईं। आज रवीन्दालय के मंच को बुनियादी जरूरते़ लाइट-साउंड और ढंग का पर्दा भी नसीब नहीं है। धन के अभाव में यहां स्थित रवीन्द्रनाथ टैगोर की ख़ूबसूरत बेशकीमती प्रतिमा का भी सही रखरखाव नहीं हो पाता।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों का गढ़

कुर्सियां/फर्नीचर फटेहाल है। संस्कृति विभाग का सहयोग न मिलने से यहां का किराया भी अधिक है। इसलिए यहां कार्यक्रम होने लगभग बंद हो गए हैं। रंगकर्मी और सांस्कृतिक कर्मी ही इसे आबाद रखते थे। लाइट और साउंड भी दुरुस्त नहीं और मंहगा किराया, तो भला क्यों कोई इसमें कार्यक्रम करेगा !कला और संस्कृति के एतिहासिक और मशहूर इस प्रेक्षागृह रवीन्द्रालय के विकल्प के रूप में लखनऊ का दूसरा सबसे ज्यादाआबाद राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह रंगमंच और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का गढ़ बन गया था। लेकिनरेनोवेशन के नाम पर बरसों से बंद क़ैसरबाग स्थित राय उमानाथ बली भी सांस्कृतिक कर्मियों का सहारा नहीं बन पा रहा। रंगमंच और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए सांस्कृतिक कार्य विभाग द्वारा कम किराए (सब्सिडी) पर मिलने वाले राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह को चालू करने के लिए कुछ रंगकर्मियों ने शासन पर दबाव बनाने का संघर्ष तेज़ कर दिया है।

यादों का गुलदस्ता साबित होगा

प्रयास रंगमंडल ने बाधाओं के कांटों को रौंदकर 23 दिसंबर को चारबाग के एतिहासिक रवीन्द्रालय को आबाद करने का सिलसिला शुरू किया है। खराब हालत, टूटे-फूटे लाइट-साउंड सिस्टम और मंहगे किराए के बाद भी इसे बुक किया गया है। मक़सद है यहां की बदहाली की बंजर ज़मीन पर रंगमंच के फूल खिलाने का सिससिला पुनः शुरू करना। 23 दिसंबर को यहां शाम 6:30 पर शाम ए अवध गुलज़ार होगी। “दैवी आगमन” नामक अवधी नाट्य प्रस्तुति रवीन्द्रालय के अंधेरों में रौशनी देगी, सन्नाटे को तोड़ेगी। कामतानाथ की मूल कहानी पर आधारित नौटंकी शैली की इस नाट्य प्रस्तुति का निर्देशन अश्वनी मक्खन ने किया है।

ये महज नाट्य आयोजन ही नहीं बल्कि यादों का गुलदस्ता साबित होगा। दुर्भाग्य कि उर्मिल कुमार थपलियाल के शहर में नौटंकी नाट्य शैली सहयोग के आभाव में सिसक रही है। रंगमंच की नर्सरी कहा जाने वाला रवीन्द्रालय पुरानी यादों का खंडर बन गया है।प्रयास का ये प्रयास अपनी अवधि के रस,नौटंकी शैली और रवीन्द्रालय की यादों को हक़ीक़त के रंग देगा। सख्त हालात में मुस्कुराना भूल चुके लखनऊ के रंगकर्मी इस मौक़े पर रंगकर्म को हंसी-ठिठोली और क़हकहों की नेमतें देने वाले ज़िन्दादिली की मिसाल हरदिल अज़ीज़ रंगकर्मी मित्र स्वर्गीय विजय तिवारी को भी याद करेंगे।

इसे भी पढ़ें…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here