जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान से कवि विजय सिंह सम्मानित

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कवि विजय सिंंह

28 जून 2022, लखनऊ। जनवादी लेखक मंच, बांदा और ‘मुक्ति चक्र’ पत्रिका की ओर से कवि और रंगकर्मी विजय सिंह को लिखावट के ऑन लाइन मंच के माध्यम से जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें मंच के अध्यक्ष जवाहरलाल जलज और ‘मुक्तिचक्र’ पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल ने सम्मान का स्मृति चिन्ह ऑन लाइन माध्यम से प्रदान किया। यह कार्यक्रम जाने माने कवि-लेखक और लिखावट के संयोजक मिथिलेश श्रीवास्तव के संयोजन में सम्पन्न हुआ। इस मौके पर कौशल किशोर, डी एम मिश्र, डॉ पूर्णिमा मौर्य, विमल किशोर, पल्लवी मुखर्जी, अशोक श्रीवास्तव, दिनेश प्रियमन, नारायण दासगुप्ता, प्रद्युम्न कुमार सिंह आदि की ऑन लाइन उपस्थिति रही।

उल्लेखनीय है कि हिन्दी के तीन महत्वपूर्ण रचनाकारों विजय सिंह, कौशल किशोर और कुँवर रवीन्द्र को क्रमशः 2020, 2021 और 2022 के लिए जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान से 22 से 23 जून को बांदा में सम्मानित किया जाना था। लेकिन ट्रेनों की आवाजाही बंद होने के कारण विजय सिंह और कुंवर रवीन्द्र बांदा नहीं पहुंच पाये। वहां सिर्फ कौशल किशोर को ही सम्मानित किया जा सका। इसी क्रम में लिखावट ने ऑन लाइन माध्यम से विजय सिंह के सम्मान के साथ सम्मानित कवियों के कविता पाठ का कार्यक्रम आयोजित किया।

इस मौके पर जनवादी लेखक मंच के अध्यक्ष जवाहरलाल जलज ने कवि केदारनाथ अग्रवाल की प्रगतिशील साहित्य परंपरा तथा उनकी यादों को साझा किया। उन्होंने बताया कि इस सम्मान का आरम्भ उसी परंपरा को आगे बढ़ने के लिए जनवादी लेखक मंच और ‘मुक्ति चक्र’ पत्रिका ने किया है। अब तक इस सम्मान से सुधीर सक्सेना और शंभु बादल को सम्मानित किया जा चुका है। जलज जी ने विजय सिंह का परिचय देते हुए कहा कि विजय सिंह (जगदलपुर, बस्तर) जाने माने कवि और रंगकर्मी हैं। उनका कविता संग्रह है ‘बंद टाकीज’। उन्होंने छत्तीसगढ़ के कवियों का साझा संकलन ‘पूरी रंगत के साथ’ का संपादन भी किया है। ‘सर्वनाम’ पत्रिका ने इन पर केन्द्रित अंक निकाला। इन्होंने दर्जन भर नाटकों और नुक्कड़ नाटकों का निर्देशन और उनमें अभिनय किया। कविता, साहित्य और रंगकर्म के लिए कई सम्मानों से सम्मानित हैं। वर्तमान में ‘सूत्र’ पत्रिका के संपादक हैं।

लिखावट के मंच पर सम्मानित कवियों ने कविताओं का पाठ भी किया। विजय सिंह ने ‘जंगल का समय’, ‘जंगल की हंसी’, जंगल जी उठता है’ आदि करीब आधा दर्जन कविताएं सुनाईं जिनमें जंगल और आदिवासी जीवन की विभिन्न छवियों को उकेरा गया है। इसमें अपने परिवेश का सौंदर्य और माटी की सुगंध है। आदिवासियों के लिए यह मात्र जंगल नहीं है बल्कि उनका जीवन है। दोनों का जीवन एक दूसरे से किस कदर जुड़ा है, कविता में यूं व्यक्त होता है ‘महुंआ पेड़ के नीचे/आदिवासिन लड़कियों/की हंसी में है/जंगल’ और ‘जब भी निकलती हैं/महुंआ टोरा बीनने/जंगल की ओर/तब/जंगल का जंगल/जी उठता है/उनके स्वागत में’। विजय सिंह की कविता में ‘जंगल के सन्नाटे में पत्तियां गुपचुप/बतियाती हैं/पत्तियों को सुनना है/तो आपको वृक्ष होना होगा’। कवि जंगल में जीवन की धड़कन को सुनता और बुनता है – ‘जंगल के स्वभाव से मैं परिचित हूं/इसकी चुप्पी से मैं नहीं डरता/मैं जंगल में सांस लेता हूं/इसके सन्नाटे में बुनता हूं अपना समय’। विकास के नाम पर उनका काटा जाना जीवन और पर्यावरण को खत्म करना है। यह कवि और कविता की चिंता में है।

कौशल किशोर ने भी अपनी कई कविताएं सुनाईं। किसान आंदोलन को केंद्र कर लिखी कविता में कृषि कानूनों की वापसी के बाद उनके लौटने को इस प्रकार व्यक्त किया ‘उनका लौटना महज लौटना नहीं है/यह भारत की ललाट पर खेतों की मिट्टी का चमकना है।’ उन्होंने ‘वह हामिद था’ शीर्षक से कविता का पाठ किया जिसमें प्रेमचंद की मशहूर कहानी ‘ईदगाह’ के केंद्रीय पात्र ‘हामिद’ का पुनर्पाठ है। वर्तमान समय में उसे मॉब लिंचिंग जैसी भयावह स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। इसी सच्चाई को कविता व्यक्त करती है। उन्होंने ‘सुख-चिर सुख’ और ‘मैं और मेरी परछाईं’ शीर्षक से कविताएं सुनाई जिसमें स्त्री जीवन की विडम्बना और उनका संघर्ष सामने आता है। अपने कविता पाठ का समापन ‘मेरा सत्तर पार करना’ कविता से किया जिसमें वे कवि शमशेर बहादुर सिंह को उद्धृत करते हुए कहते है कि ‘अब जितने दिन भी जीना होना है/उनकी चोटें होनी हैं और अपना सीना होना है।’

‘मुक्तिचक्र’ पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल ने लिखावट की इस पहल के लिए उन्हें आभार प्रकट किया तथा कार्यक्रम में शामिल सभी रचनाकारों को धन्यवाद दिया। उन्होंने बताया कि बांदा में आयोजित इस साल के सम्मान कार्यक्रम में जवाहरलाल जलज व रामौतार साहू के कविता संग्रह, प्रद्युम्न कुमार सिंह के कथा संग्रह तथा प्रमोद दीक्षित मलय द्वारा संपादित साझा संकलन का लोकार्पण हुआ। इसके साथ ही ‘कृति ओर’ के नये अंक का भी लोकार्पण हुआ जो लोकधर्मी कवि विजेंद्र पर केंद्रित है। इसका संपादन युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार ने किया है।

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