लखनऊ: धराधाम का अतुलनीय शक्ति-स्थल इक्यावन शक्तिपीठ तीर्थ, यहाँ यूं होती है दैवीय ऊर्जा की अद्भुत अनुभूति

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इक्यावन शक्तिपीठ तीर्थ

                                      यदुनाथ सिंह मुरारी
लखनऊ। बासंतीय नवरात्र पर 51 शक्तिपीठ तीर्थ की दिव्य और पावन छटा देखते ही बनती है। इस बार यहाँ मनाये जा रहे बासंतीय नवरात्र महोत्सव में श्रद्धालु अपूर्व आस्था और उत्साह से भरपूर है। इस तीर्थ का आकर्षण ऐसा है कि दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने सहज ही खिंचे चले आते हैं। नवरात्र के समय यहाँ माता के विविध रूपों के दिव्य दर्शन पाकर वे अभिभूत हो जाते हैं।

इक्यावन शक्तिपीठ तीर्थ में प्रत्येक नवरात्र की भाँति इस बासंतीय चैत्र नवरात्र में वृहद् महोत्सव मनाया जा रहा है। शक्तिपीठ तीर्थ में 9 अप्रैल से प्रारम्भ यह नवरात्र महोत्सव होकर 17 अप्रैल तक चलेगा। आशीष सेवा यज्ञ न्यास द्वारा संचालित 51 शक्तिपीठ तीर्थ की अध्यक्ष एवं संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की शाक्त लोक साहित्य विषयक वरिष्ठ अध्येता तृप्ति तिवारी ने बताया,

नवरात्र महोत्सव में प्रत्येक दिवस समस्त देवियों का निर्धारित रंगों के अनुसार श्रृंगार किया जाता है। नवरात्र के प्रत्येक दिवस क्रमशः नीलाम्बर श्रंगार, श्वेताम्बर श्रृंगार, नारंगी श्रृंगार, रक्ताम्बर श्रृंगार, हरिताम्बर श्रृंगार, पीताम्बर श्रृंगार, पुष्प श्रृंगार तथा पारम्परिक वर्णाम्बर श्रृंगार होता है। समापन दिवस महानवमी को इच्छा श्रृंगार तथा अपराह्न कन्या पूजन भोज व भंडारे का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक दिन षोडशोपचार विधि द्वारा पिण्डी पूजन, दुर्गासप्तशती पाठ, मिष्ठान व भोग वितरण तथा सायंकाल भजनसंध्या का आयोजन सुनिर्धारित है। नवरात्र में तीर्थ की विद्युत सजावट विशेष रूप से दर्शनीय होती है।

 

इक्यावन शक्तिपीठ तीर्थ : परिचय और दर्शन

शक्ति और शाक्त चिन्तन, अनुशीलन और आराधन का अद्वितीय स्थल है लखनऊ स्थित 51 शक्तिपीठ तीर्थ। इक्यावन शक्तिपीठों की पावन रज से सुशोभित यह तीर्थ शक्ति साधकों और उपासकों की अगाध आस्था का केन्द्र है। यह तीर्थ आदिगंगा गोमती प्रक्षेत्र अवस्थित ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि नैमिषारण्य के विस्तृत अरण्य क्षेत्र के अभिन्न स्थल नंदनवन में विद्यमान है। शक्ति और भक्ति का समन्वय यहाँ के कण-कण में विराजित है।

तीर्थ की संकल्पना से लेकर सृजन तक की सम्पूर्ण विषय-वस्तु, शास्त्रोचित, सिद्धान्तपरक, व्यावहारिक और ज्ञान-विज्ञान सम्मत है। परमश्रद्धेय ब्रह्मलीन पं. रघुराज दीक्षित ‘मंजु’ और उनकी सहधर्मिणी श्रीमती पुष्पा दीक्षित का एक पावन विचार और संकल्प विगत दो दशकों में साकार होकर शक्ति के दिव्य एवं विलक्षण तीर्थ के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुका है।

तीर्थ का प्रवेशद्वार :

लखनऊ सीतापुर राजमार्ग-24 पर बख्शी का तालाब कसबे से 2 किमी.पूर्व बाएँ हाथ पर 51 शक्तिपीठ का भव्य मुख्य बाह्य द्वार है। इस प्रवेशद्वार के शीर्ष पर सतीदेह धारी भगवान शिव उग्र रूप में विराजमान हैं। इस द्वार से प्रवेश कर लगभग 200 मीटर पथगमन उपरांत भव्य तीर्थ के दर्शन होते हैं। शक्तिपीठ तीर्थ में प्रवेश करते ही दाहिने तरफ नर्मदेश्वर महादेव विद्यमान हैं। तदुपरान्त गर्भगृह का प्रवेश द्वार है। प्रवेश द्वार पर विघ्नहर्ता गणेश स्थापित हैं। द्वार पर आमने-सामने स्थापित गजराज के मस्तकयुक्त सूँड़ आकर्षित करते हैं। द्वार की पाँच सीढ़ियाँ चढ़कर गर्भगृह में प्रवेश करते ही सम्मुख तपस्विनी माता पार्वती की भव्य मूर्ति के दर्शन होते हैं।

गर्भगृह :

छह स्तम्भों पर टिके गर्भगृह के अयनों के निकट 51 शक्तिपीठों के चिह्न व विवरण दिए गए हैं। ऊपरी भाग में दस महाविद्याओं के ध्यान चित्र और यंत्र बने हैं। मुख्य द्वार के पीछे भीतर ऊपर की ओर साधना लीन राम कृष्ण देव और माँ शारदा के चित्र लगे हैं। गर्भ गृह में मूल शक्ति त्रिकोण के साथ सर्व सिद्धेश्वरी तपस्विनी माँ पार्वती विद्यमान हैं। दाहिने ओर रक्षारोही भैरव और बायीं ओर ध्वजारोही हनुमान स्थापित हैं। गर्भ गृह के विग्रह स्थल के दाहिनी ओर 51 शक्तिपीठों से लाई गई रज के दर्शन होते हैं। जबकि बायीं ओर राम और अर्जुन की शक्ति उपासना के चित्र लगे हैं।

प्रथम तल: प्रथम तल पर जाने के लिए बाहर से 35 सीढ़ियाँ चढ़कर मुख्य प्रतिमा माँ महालक्ष्मी की है। दाहिनी ओर माँ सरस्वती तथा बायीं ओर माँ महाकाली विद्यमान हैं। यहाँ मूर्ति, रज और भैरव के साथ दाहिनी ओर इन्द्राक्षी देवी, भूतधात्री, अम्बिका, कालिका (कोलकाता), अपर्णा, भ्रामरी (पश्चिम बंगाल), त्रिपुर सुन्दरी, कपालिनी, सावित्री तथा महामाया विद्यमान हैं। जबकि बायीं ओर महिषमर्दिनी, देवगर्भा, कालिका (वर्धमान), चन्द्रभागा, विमला, कामाख्या, नर्मदा, काली, सर्वानंदकरी और जयंती स्थापित हैं। इस तल पर 20 शक्ति पीठों के दर्शन होते हैं।

द्वितीय तल : द्वितीय तल पर यंत्र शक्ति त्रिकोण विंध्याचल अवस्थित है। यहाँ मुख्य प्रतिमा माँ विंध्यवासिनी की है। उनके सम्मुख महालक्ष्मी यंत्र, दाहिनी ओर महासरस्वती यंत्र तथा बायीं ओर महाकाली यंत्र है। इस तल पर मूर्ति, रज और भैरव के साथ दाहिनी ओर यशोरेश्वरी, दाक्षायिणी, ललिता, महालक्ष्मी, नन्दनी, महामाया, भ्रामरी (महाराष्ट्र), फुल्लरा, अवन्ती, सिद्धिदा तथा बायीं ओर गायत्री, मांगल्य चंडिका, भवानी, बहुला, कुमारी, महादेवी, शर्वाणी, शिवानी, त्रिपुरमालिनी और देवी जयदुर्गा (वैद्यनाथ धाम) अवस्थित हैं।

तृतीय तल :तृतीय तल पर शैव त्रिकोण काशी अवस्थित है। यहाँ मुख्य प्रतिमा माँ अन्नपूर्णा काशी उनके सम्मुख महालक्ष्मी दिव्यास्त्र, दाहिनी ओर महासरस्वती दिव्यास्त्र तथा बाईं ओर महाकाली दिव्यास्त्र विद्यमान हैं। इस तल पर दाहिनी ओर सुनन्दा, महिषमर्दिनी, उमा, विमला, कोटवीसा,

पूर्णागिरी के साथ काशी के भरण-पोषण हेतु अन्नपूर्णा से याचना करते हुए श्री विश्वनाथ अवस्थित हैं। जबकि बायीं ओर विशालाक्षी, जयदुर्गा (कर्नाटक), गंडकी, विश्वेशी, वाराही, नारायणी के अलावा दिव्य श्रीयंत्र स्थापित है। इस प्रकार प्रथम, द्वितीय और तृतीय तल पर क्रमशः 20, 20 और 11 शक्तिपीठों के दर्शन होते हैं।

चतुर्थ तल : चतुर्थ तल पर सर्वोच्च दैवीय शक्ति-संपन्न दस महाविद्याएँ स्थापित हैं। इस तल पर सामने बगलामुखी, उनके सम्मुख शिवजी, दाहिनी ओर तारा, मातंगी, छिन्नमस्ता, कमला और यज्ञकुण्ड तथा बायीं ओर त्रिपुर भैरवी, षोडषी, भुनेवश्वरी, धूमावती और काली विद्यमान हैं। यहाँ दसमहाविद्याओं के दर्शन से विशिष्ट दैवीय अनुभूति होती है।

शीर्ष पंचम तल: शीर्ष पंचम तल पर स्फटिक शिवलिंग रूप में महादेव विराजमान हैं। यहाँ जालीदार गवाक्षों से सूर्य-रश्मियाँ शिवलिंग का श्रृंगार कर अभिषेक करती हैं। स्फटिक शिवलिंग के चतुर्दिक शिवालय के अष्टकोट गुरुकुल-संस्थापक ऋषि शौनक, योग-संस्थापक ऋषि वसिष्ठ, मन्त्र-संस्थापक ऋषि विश्वामित्र, यज्ञ-संस्थापक ऋषि कण्व, विज्ञान-संस्थापक ऋषि भारद्वाज,

अग्निपूजक कर्म-संस्थापक ऋषि अत्रि, संगीत-संस्थापक ऋषि वामदेव सहित आदि ऋषि भगवान् ब्रह्मा के ध्यान मुद्रा में दिव्य विग्रह विभूषित हैं। शिखर-प्रक्षेत्र में आदिदेव के लिंगविग्रह की स्थापना से जहाँ सम्पूर्ण विश्व को सृजन का सन्देश दिया गया है, वहीं सृष्टि-रचयिता ब्रह्मा और सप्तर्षि की प्रतिष्ठा के साथ विश्व-मानव की गोत्रावली के उद्गम का शिवसंकल्प भी चरितार्थ हुआ है। इस तल पर स्फटिक शिवलिंग समीपस्थ रजत त्रिशूल और द्वार सम्मुख स्वर्णिम आभा युक्त विशालकाय नंदी विशेष आस्था और आकर्षण का केंद्र हैं। यह शीर्षतल किसी पर्वत के उन्नत शिखर के भाँति मनोहारी है। यहाँ से आसपास के दृश्य अपूर्व आध्यात्मिकता युक्त सुख और शांति का अनुभव कराते हैं।

विशेष फलदायी पिण्डी-पूजन : पिण्डी स्वरूप में आदिशक्ति के पूजन की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है। इस परम्परा के निर्वाह के लिए नवरात्र के पावन अवसर पर 51 शक्तिपीठ तीर्थ में पिण्डी-पूजन शास्त्रीय विधि-विधानपूर्वक किया जाता है। नवरात्र के दिनों में की गई पिण्डी-पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है।

देवी-उपासना में पिण्डी पूजा के माहात्म्य को दृष्टिगत रखते हुए मंदिर के गर्भगृह में सुयोग्य आचार्यों के माध्यम से पिण्डी-पूजन सम्पन्न कराया जाता है। यह पूजन आत्मकल्याण व लोकमंगल के लिए अत्यंत सहायक है। तीर्थ के समस्त यज्ञानुष्ठान, पूजन आदि में प्रधान पुरोहित धनञ्जय पाण्डेय के नेतृत्त्व में पौरोहित्य मण्डल महती भूमिका निभाता है।

अन्य प्रकल्प : इस तीर्थ को पूर्णता प्रदान करने के निमित्त गोशाला, यज्ञशाला, पुस्तकालय, तीर्थयात्री अतिथि गृह, शक्ति-साहित्य प्रकाशन केन्द्र तथा निःशुल्क चिकित्सा शिविर आदि का संचालन किया जा रहा है। एक बहुउद्देशीय मंच व सभागार भी परिसर में अवस्थित है। यहाँ स्थापित शक्ति-वाटिका भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। विभिन्न पर्व-प्रयोजनों, प्रत्येक रविवार व अन्यान्य अवसरों पर तीर्थ का अद्भुत साज-सज्जायुक्त अलंकरण विशेष रूप से दर्शनीय होता है।

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