11 अगस्त 2023, लखनऊ। 30 अप्रैल 1908 को बिहार के मुजफ्फरपुर में बम फटा जिसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी। सारा देश गहरी निद्रा व अकर्मण्यता से जाग उठा। इस बम को फेंका था आजादी आंदोलन के दो किशोर क्रांतिकारी खुदीराम बोस व प्रफुल्ल चाकी ने । इस अभियान में क्रूर अंग्रेज अफसर किंग्सफोर्ड जो भारतीयों पर जुल्म व क्रूरता के लिए कुख्यात था, जिसे असली निशाना बनाया गया था वह बिना किसी खरोच के बच गया। किंतु खुदीराम बोस व प्रफुल्ल चाकी अपनी रक्षा करने में असफल रहे। खुदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को फांसी पर लटका दिया गया और प्रफुल्ल चाकी गिरफ्तारी से बचने के लिए स्वयं को ही गोली मार ली। तो क्या उनका अभियान असफल रहा….? ऊपरी तौर पर उनका अभियान असफल ही नजर आता है! किंतु वास्तव में उनकी सफलता कहीं और निहित है। यह धमाका हमारे देश के उदीयमान निर्भीक युवा वर्ग का रणघोष था। दो प्राणों के बदले हजारों प्राण जाग उठे। देश की ये दो अनमोल संतानों की कुर्बानी आने वाले अग्नियुग की धधकती हुई मशाल बन गई । देश के छात्रों, नौजवानों ने खुदीराम की चिता से जीवन के नए मायने ग्रहण किया। उनकी चिता ने लाखों करोड़ों भारतवासियों के दिलों में जो क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित की वो कभी बुझने वाली नहीं है। उपरोक्त बातें एआईडीएसओ छात्र संगठन, लखनऊ विश्वविद्यालय के इंचार्ज पुष्पेंद्र ने कहीं।
इंडस्ट्रियल इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य श्री बृजेश बरनवाल ने बताया कि देश को पराधीनता से मुक्त कर आजादी हासिल करने के महान उद्देश्य को लेकर महज अठारह वर्ष के नौजवान खुदीराम बोस ने 11 अगस्त 1908 को हँसते हुए फांसी के फंदे को गले लगाया था। उनकी इस शहादत से प्रेरित होकर आजादी आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए क्रांतिकारी नौजवानों का ज्वार सा आ गया था। ये कारवां इतना बढ़ता गया कि अंततः 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले में हुआ। इनके पिता त्रयलोक नाथ बोस व इनकी माता का नाम लक्ष्मी प्रिया देवी था। महज 6 वर्ष की उम्र में ही इनकी माता का देहांत हो गया। इनका पालन-पोषण इनकी बड़ी बहन के यहाँ हुआ। देश को विदेशी दासता से मुक्त कराने का कर्तव्यबोध खुदीराम बोस में बहुत ही कम उम्र में पैदा हो गया था। कॉलेज के शिक्षक संजय श्रीवास्तव ने बताया समाज के अंदर जड़ जमा चुकी क्रूरता ने खुदीराम को बाल्यावस्था में ही इतना विद्रोही बना दिया था कि किसी भी तरह की प्रचलित अन्यायपूर्ण परंपरा और धारणा के खिलाफ तुरंत सीना तानकर खड़े हो जाना ही उन्हें सहज व स्वाभाविक जान पड़ता था। एक ऐसा कोमल हृदय युवक जो कि गरीबों, मजलूमों की दुख-तकलीफें देखकर गहरी सहानुभूति से भर उठता था। मिदनापुर में जब हैजा फैला, हजारों लोग रोज मरने लगे तब खुदीराम बोस उनकी सेवा के लिए आगे आए, पूरी की पूरी रात पीड़ितों के बीच गुजार देते थे। उनके गाँव से 5 किलोमीटर दूर जनारदनपुर में जब बाढ़ से भारी तबाही हुई तो खुदीराम बोस वहाँ जा पहुंचे। जाने से पहले उन्होने मिदनापुर के निवासियों से खुद जाकर चन्दा इकट्ठा किया। चंदे में कपड़ा, खाद्य-सामग्री आदि मिले। ये सारी सामाग्री अपनी पीठ पर लादकर अपने दो मित्रों के साथ तुरंत वहाँ पैदल ही चल दिये। वहाँ पहुँचकर उन्होने स्वयं ही कितने बच्चों, वृद्धों और अपाहिंजों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया। उन्होने वहाँ रहकर बाढ़ पीड़ितों के लिए अस्थायी झोपड़ियाँ भी बनाईं। कार्यक्रम में वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता श्री के.के. शुक्ला ने भी बात रखी। कार्यक्रम की शुरुआत शहीद खुदीराम बोस के चित्र पर पुष्पांजलि से हुआ। कॉलेज के शिक्षकगण आर. एल. चौधरी, जगदीश प्रसाद, एस. के. शुक्ला, किरण जी, तारा जी समेत भारी संख्या में छात्रों ने पुष्प अर्पित कर अपनी श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम का संचालन एआईडीएसओ छात्र संगठन के लखनऊ जिला इंचार्ज यादवेन्द्र ने किया और कहा ऐसे में शहीद खुदीराम बोस का जीवन संघर्ष और बलिदान आज भी प्रासंगिक बना हुआ है। आज़ादी आंदोलन के गैर समझौतावादी क्रांतिकारियों, मनीषियों,के जीवन संघर्ष और शहादत से प्रेरणा लेकर अन्याय-अत्याचार, शोषण-जुल्म के खिलाफ प्रतिरोध खड़ा करना आज वक्त की मांग है। शहीदों के सपनों को साकार करने के लिए, शोषण विहीन समाज निर्मित करने के लिए अपनी भूमिका तय करें, क्रांतिकारी संघर्षों को संचालित करें।