महाराष्ट्र: एनडीए को हराने जाल बुनने वाले पवार अपने ही घर में खा गए गच्चा,जानिए इस टूट का मतलब

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Maharashtra: Sharad Pawar's party will now contest from this election symbol.
आगामी चुनावों के लिए तुतारी (तुरहा बजाता हुआ व्यक्ति) को पार्टी चिह्न के रूप में प्राप्त करना हमारे लिए बड़े ही गर्व की बात है।

मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार एक बार फिर संकट में घिर गए हैं, जहां एक तरफ देश की राजनीति में एनडीए को हराने के लिए जाल बुन रहे थे, वहीं दूसरी तरफ अपनी पार्टी में क्या चल रहा हैं को भी भांप नहीं पाए। इस बार अजित पवार ने ऐसा झटका दिया कि इससे उबरने में उन्हें कई साल लग जाएंगें। छोटे पवार इस बार अकेले नहीं बल्कि पूरी पार्टी को साथ लेकर एनडीए में शामिल हो गए। एनसीपी में अजित पवार की निष्ठा तो लम्बे समय से संदिग्ध रही है। लेकिन जो प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल और दिलीप वसले पाटील रविवार सुबह तक शरद पवार के सबसे ख़ास समझे जाते थे वे भी पार्टी छोड़कर और शरद पवार को धता बताते हुए भाजपा से जा मिले।

यह सब कितने गुप्त रूप से हुआ होगा इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि राजनीति के चाणक्य समझे जाने वाले शरद पवार को कानोकान खबर नहीं पड़ी। कुछ लोग राजभवन पहुंच रहे हैं, इस बारे में असलियत का पता लगाने के लिए शरद पवार ने जिन दिलीप वसले पाटील को फ़ोन किया, कुछ देर बाद पता चला कि खुद पाटील ने भी मंत्री पद की शपथ ले ली है।

खास लोगों ने छोड़ा साथ

आपकों बता दें कि महाराष्ट्र कैबिनेट में मंत्रीपद की शपथ लेने के बाद अजित पवार ने शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें उनके साथ एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और पार्टी नेता छगन भुजबल भी मौजूद रहे। दरअसल, महाराष्ट्र में जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, वह शिवसेना की तोड़फोड़ से काफ़ी मिलता जुलता है। हालाँकि शिवसेना के टूटते वक्त विधायकों को लम्बे समय तक यहां-वहां छिपाया गया था, लेकिन एनसीपी के मामले में ऐसा नहीं हुआ।

शिवसेना जैसा हुआ हश्र

एकनाथ शिंदे ने जब अलग शिवसेना की योजना बनाई तब पार्टी में एक तरह से बाप-बेटे यानी उद्धव ठाकरे और उनके बेटे ही रह गए थे।वैसे ही एनसीपी में भी अब बाप-बेटी यानी शरद पवार और सुप्रिया सुले ही रह गई हैं। जिस तरह उद्धव के साथ संजय राउत खड़े रहे वैसे ही शरद पवार के साथ जयंत पाटील खड़े हैं। जिस तरह उद्धव गुट से शिवसेना और उसका निशान तक छिन गया वही हालात एनसीपी में भी दिखाई दे रहे हैं। चालीस विधायक साथ होने का दावा कर रहे अजित पवार भी एनसीपी पर वैसे ही क़ब्ज़ा करने को उतारू हैं जैसे शिंदे ने शिवसेना पर किया था। क़ानूनी दांव पेंच शायद पहले ही पूरे कर लिए गए हैं।

2019 का बदला बीजेपी ने लिया

एनसीपी को तोड़कर अजित पवार को क्यों सरकार का हिस्सा बनाया गया, इसके पीछे 2019 वाली घटना अहम है, दरअसल उस बार बीजेपी शरद पवार के दांव से चित्त हो गई थी उसका बदला लेने के लिए यह चाल चली गई। इसके साथ ही एकनाथ शिंदे के विधायकों के अयोग्य होने की दशा में सरकार पर कोई आंच नहीं आए इसलिए बैकअप बनाना जरूरी था। दूसरी वजह है भ्रष्टाचार। अजित दादा सहित एनसीपी के कई बड़े नेताओं पर भाजपा की ओर से भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे थे।

दरअसल, परोक्ष रूप से ये आरोप इन नेताओं के घर- दफ़्तरों में ईडी या सीबीआई भेजे जाने की धमकी के रूप में लिए जा रहे थे। संभवतया सभी बड़े नेताओं का भाजपा की शरण में जाने की सबसे बड़ी वजह यही है। जैसा कि विपक्ष कह रहा है कि भाजपा की वाशिंग मशीन में जाते ही हर नेता पाक- साफ़ हो जाता है, अब इन एनसीपी नेताओं पर लगता है कोई कार्रवाई नहीं होने वाली है।

सुप्रिया को आगे करने से दिग्गज थे नाराज

तीसरी वजह है एक होते विपक्ष के मनोबल को तोड़ना। चूँकि विपक्षी एकता की रणनीति में सबसे ज़्यादा अनुभवी शरद पवार ही हैं, इसलिए सबसे पहले उन्हें ही झटका दिया गया है। हालांकि शरद पवार ने इस घटनाक्रम के बाद कहा है कि पार्टी उन्हीं ने बनाई थी, और उसे फिर से खड़ा करने की ताक़त वे आज भी रखते हैं।पार्टी के अंदरूनी हालात की बात करें तो बेटी सुप्रिया को ज़रूरत से ज़्यादा तवज्जो देने के कारण बड़े नेता अंदर ही अंदर नाराज़ चल रहे थे। अजित दादा पवार तो पहले से ही नाराज़ थे। बड़े नेताओं की नाराज़गी को अजित दादा ने हवा दी और सबको इकट्ठा करके बड़ा दांव खेल लिया।

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