अधिवक्ता मंच इलाहाबाद ने धर्म की आज़ादी और संविधान विषय पर आयोजित की परिचर्चा

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धर्म की आज़ादी और संविधान” विषय पर मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए इरफान इजीनियर

24 जून 2023, प्रयागराज। अधिवक्ता मंच इलाहाबाद की ओर से  “धर्म की आज़ादी और संविधान” विषय पर गवर्नमेंट प्रेस के श्रम हितकारी केंद्र पर एक परिचर्चा हुई। परिचर्चा को बतौर मुख्य वक्ता एडवोकेट इरफ़ान इंजीनियर, निदेशक, CSSS मुम्बई ने संबोधित किया। अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी श्री कमल कृष्ण राय ने की। परिचर्चा की शुरुआत अधिवक्ता अवधेश राय ने किया, संचालन अधिवक्ता मंच के संयोजक राजवेन्द्र सिंह ने किया और मंच के सह-संयोजक मो0 सईद सिद्दीकी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

मुख्य वक्ता इरफ़ान इंजीनियर ने धर्म की स्वन्त्रता की अवधारणा के विकास क्रम को रेखांकित करते हुए बताया कि दुनिया मे धर्म की आज़ादी की अवधारणा सभ्यता के विकास के क्रम ही विकसित हुई। हमारे देश मे भी हमारे संविधान में धर्म की आज़ादी को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गयी जो सभी व्यक्तियों को हासिल है। उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24, 25 को स्पष्ट करते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट के एक मामले में दिए गये निर्णय का हवाला देते हुए बताया कि धर्म की आज़ादी हमारे संविधान के द्वारा सिर्फ़ भारत के नागरिक को ही नही बल्कि किसी भी व्यक्ति को प्राप्त है और इसीलिए कोई विदेशी नागरिक भी भारत मे अपने प्रवास के दौरान अपने धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र है। उन्होंने महात्मा गांधी, बाबा साहेब अंबेडकर और स्वामी विवेकानंद के दृष्टांतो से धर्म की आज़ादी के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि विवेकानंद ने कहा था कि ‘जितने लोग उतने धर्म हैं’ हर व्यक्ति को अपने तरीके से अपने धर्म को मानने की छूट है।उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी किसी धर्म को दूसरे से बेहतर बताकर धर्म परिवर्तन कराने के खिलाफ थे और उनका मानना था कि सभी धर्म व्यक्ति की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं किंतु किसी व्यक्ति को किसी धर्म मे अपने जीवन को बेहतर करने की समझ के आधार पर धर्म परिवर्तन करने की छूट है। उन्होंने स्पष्ट किया कि धर्म की आज़ादी में व्यक्ति की निजी आज़ादी निहित है इसे समूह की आज़ादी के तौर पर नही बल्कि व्यक्ति की निजी आज़ादी के तौर पर भारतीय संविधान में महत्व दिया गया है और धर्म की आज़ादी में धर्म को न मानने या नास्तिक होने की आज़ादी भी शामिल है। उन्होंने बताया कि धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए बनाए गए विभिन्न राज्यों के कानून वस्तुत संविधान में प्रदत्त धर्म की आज़ादी के विपरीत हैं। धर्म परिवर्तन करने के लिए व्यक्ति स्वतंत्र है और उसे किसी मजिस्ट्रेट से अनुमोदन प्राप्त करने का प्राविधान करना व्यक्ति को प्रदत्त धर्म की आज़ादी में बेजा हस्तक्षेप है। उन्होंने इन कानूनों की आलोचना करते हुए कहा कि ये कानून व्यक्ति को प्राप्त धर्म की आज़ादी को संकुचित करते हैं। इन्होंने कहा व्यक्ति को प्राप्त धर्म की आज़ादी का खतरा केवल अल्पसंख्यकों के लिए ही नही है बल्कि बहुसंख्यकों की धर्म की आज़ादी भी उतने ही खतरे में है। उन्होंने धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान के नागरिकों को भी धर्म की आज़ादी न मिलने का जिक्र किया और धर्म परिवर्तन को रोकने या रेगुलेट करने के नाम पर बने कानूनों के प्रावधानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ये कानून वस्तुत एक भय के वसीभूत होकर लाये जा रहे है जो भय क्षद्म रूप में जनता के बीच पैदा किया जा रहा है जबकि इन कानूनों के आने के बाद भी जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं न के बराबर हैं उन्होंने स्पष्ट कहा कि इस तरह के कानून केवल हिन्दू धर्म से परिवर्तन को रोकने को लक्षित हैं जबकि किसी और धर्म से परिवर्तन को धर्म परिवर्तन न मानकर घर वापसी कहा जा रहा है। उन्होंने जबरन धर्म परिवर्तन की दो घटनाओं का जिक्र किया एक कंधमाल में हुए दंगे के बाद धर्म परिवर्तन और दूसरे आगरा में हुई कथित घर वापसी की घटनाएं जिसमे लोग मजबूर किये गए अपने विश्वास को बदलने के लिए और दोनों घटनाएं गैर हिंदुओ के धर्म परिवर्तन की हैं। अतः ये कानून हिन्दू धर्म से परिवर्तन को रोकते हैं और दूसरे धर्मों से परिवर्तन को अनदेखा करते हैं। सदन से आये सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि संविधान में कॉमन सिविल कोड की बात नही बल्कि यूनिफार्म सिविल कोड की बात कही गयी है जिसमे सबको समान कर देने की बात नही है बल्कि यूनिफार्म सिंद्धान्त और अवधारणा को बनाये जाने की बात है, उनीफॉर्म सिविल कोड को लैंगिक न्याय और समानता की अवधारणा पर तैयार किया जाना चाहिए। पूर्व के लॉ कॉमिशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि लॉ कमीशन ने यूनिफार्म सिविल कोड को असंभव और अनावश्यक बताया था। धर्म निरपेक्षता पर पूंछे गए सवाल का उत्तर देते हुए मुख्य वक्ता इऱफान इंजीनियर ने कहा कि धर्म निरपेक्षता की कोई एक सामान्य अवधारणा नही है यह अलग अलग समय मे विभिन्न देशों में विकसित हुई है उन्होंने कहा कि यूरोप की धर्म निरपेक्षता चर्च के ख़िलाफ़ विकसित हुई तो ऑटोहन साम्राज्य तुर्की में धर्मनिरपेक्षता इस्लाम के खिलाफ विकसित हुई जबकि फ्रांस की धर्म निरपेक्षता ईश्वर के आस्तित्व के खिलाफ विकसित हुई है। हमारे देश की धर्म निरपेक्षता सर्व धर्म समभाव के रूप में है और इसमें से कोई भी पूर्ण और अंतिम बात नही है। समाज की जरूरतों के हिसाब से इनका विकास हुआ है और आगे भी जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि डेमोक्रेसी नागरिक बनाती है जबकि साम्राज्य भक्त बनाते हैं। उन्होंने देश और समाज की बेहतरी के लिए जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनने की अपील की और नागरिक के तौर पर सतत सक्रिय, सजग और जिम्मेदार बनने की जरूरत बताई। उन्होंने नागरिक के तौर पर नागरिकों की नई नई संस्थाओं के निर्माण पर जोर दिया। अपने अध्यक्षीय संबोधन में वरिष्ठ अधिवक्ता के0के0 राय ने इरफान इंजीनियर के पिता असगर अली इंजीनियर को याद करते हुए उनके साथ इलाहाबाद के लोगों के जुड़ाव का जिक्र करते हुए कहा कि हुकूमत जो जनता को क्षद्म मुद्दों में भटकना चाहती है और बांटना चाहती है नागरिक के तौर पर हमारी सजगता और सक्रियता हुकूमत के पेशानी से पसीना सूखने नही देगी । जानेमाने कवि और सामाजिक कार्यकर्ता अंशु मालवीय ने मुख्य वक्ता इरफान इंजीनियर के प्रयासों का जिक्र करते हुए उनका संक्षिप्त परिचय दिया और अंत मे अधिवक्ता मंच के सह संयोजक मो सईद सिद्दीकी ने मुख्य वक्ता इरफान इंजीनियर का आभार व्यक्त करते हुए परिचर्चा में शामिल सभी लोगों को तहे दिल से धन्यवाद ज्ञापित किया और आगे भी अधिवक्ता मंच को हर तरह से सहयोग प्रदान करके मजबूती प्रदान करने की अपील की। परिचर्चा में हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व उपाध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह यादव, जुबेर अहमद,विमल चौधरी, सैयद मो0शहाब, घनश्याम मौर्य, रमाकांत शर्मा, शमीम, नदीम खान, प्रवीण कुमार, अजय यादव, विकास स्वरूप, सतपाल सिंह, विनोद तिवारी, अल्प नारायण सिंह, मनीष सिन्हा, राजेश कुमार, विश्वविजय, अनिल कुमार, टी.एन. मिश्र, अरलान, चिराग, सुनीलमौर्य, अविनाश वर्मा, उस्मान जावेद, राजीव कुमार, विनोद कुमार, फ़राज, आनंद मालवीय, सुहैल अहमद, सुरेंद्र रही, अनवर आज़म, विजय कुमार, अभय सिंह, मो0 हनीफ, राज कुमार, माणिक चंद्र, एस के सिंह, सतेंद्र सिंह, मनीष, अमिता, दिनेश कुमार यादव, विन्दा, एम.जेड. हुदा, हिमांशु रंजन, शमशुल इस्लाम, शाह आलम, परवेज करारी, राजेश पटेल, असरार नियाजी, गायत्री गांगुली, काशान सिद्दीक़ी, कुंवर नौशाद, नंदलाल गुप्त, वहाज अहमद सिद्दिकी, प्रकर्ष, शमीम, विकास मौर्य, प्रशांत सिंह, सीमा आज़ाद आदि अनेक लोग शामिल रहे।

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