कवि व गद्यकार उद्भ्रांत के साथ एक शाम ‘ओम /दो दिलों का प्यार/स्वाहा….’

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An evening with poet and prose writer Udbhrant 'Om / Love of two hearts / Swaha....'
फिर भी हर विधा में कुछ रचनाएं उसकी सर्वाधिक प्रिय होती हैं। कथाकार महेंद्र भीष्म ने भी इसी तरह की अपनी जिज्ञासा प्रकट की।

लखनऊ। जाने-माने कवि और गद्यकार उद्भ्रांत दो दिनों के प्रवास में लखनऊ आए। उनसे मिलने और बातचीत का कार्यक्रम 12 जून की शाम काफी हाउस में था । लेकिन काफी हाउस के अचानक बंद होने के कारण यह बैठकी जनपथ मार्केट के एक रेस्त्रां में हुई। इसमें इप्टा के राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष राकेश, कवि और लेखक भगवान स्वरूप कटियार, डॉ शैलेश पंडित, महेंद्र भीष्म, तरुण निशांत, राजा सिंह, वीरेंद्र त्रिपाठी और कौशल किशोर शामिल हुए। स्थान परिवर्तन के कारण कई रचनाकार नहीं पहुंच पाए । उनमें तस्वीर नक़वी, डॉ अवंतिका सिंह, अशोक वर्मा, विमल किशोर, राजीव प्रकाश सहिर आदि प्रमुख थे।

कविता की विभिन्न शैलियों में रचनाएं

इस मौके पर जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष तथा उद्भ्रांत के सहयात्री-सहयोद्धा कौशल किशोर ने उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर रोशनी डालते हुए कहा कि ये हिंदी के दुर्लभ रचनाकार हैं जिनकी करीब 125 से अधिक कृतियां प्रकाशित होकर आई हैं। इन्होंने कविता की विभिन्न शैलियों में रचनाएं की हैं, पारंपरिक गीतों से लेकर नवगीतों तक। उद्भ्रांत ने गीत-काव्य तब लिखा जब इसे साहित्य से त्याज्य दिया गया था।

इनकी निर्मिति में कानपुर के श्रमिक और वाम आंदोलन की भूमिका है। लखनऊ के साहित्य समाज से भी गहरा नाता रहा है। एक पैर कानपुर में तो दूसरा लखनऊ में रहता था। शिव वर्मा, शील जी, जनेश्वर वर्मा से लेकर अमृतलाल नागर, ठाकुर प्रसाद सिंह, गोपाल उपाध्याय, राजेश शर्मा, प्रबोध मजूमदार, मुद्राराक्षस आदि अनगिनत लखनऊ-कानपुर के साहित्यकारों से उनका जुड़ाव था। बच्चन तो इनके साहित्यिक गुरु थे। इनकी आत्मकथा तथा संस्मरणों में इन सबका उल्लेख आता है। इस तरह इनकी कृतियां दस्तावेज का काम करती हैं।

अपनी रचनाओं से लगाव

उद्भ्रांत से कई विषयों पर बातें हुई। बातचीत के क्रम में कवि और कथाकार तरुण निशांत ने जानना चाहा कि विविध विधाओं में साहित्य सृजन में उनकी प्रिय विधा और रचनाएं कौन सी हैं? इस संबंध में कविता को ही उद्भ्रांत ने अपनी प्रिय विधा माना, वहीं यह भी कहा कि हरेक रचनाकार का अपनी रचनाओं से लगाव होता है । फिर भी हर विधा में कुछ रचनाएं उसकी सर्वाधिक प्रिय होती हैं। कथाकार महेंद्र भीष्म ने भी इसी तरह की अपनी जिज्ञासा प्रकट की। इप्टा के राकेश ने उद्भ्रांत के काव्य नाटक ‘ब्लैक होल’ की चर्चा की और बताया कि इसका पाठ लखनऊ में किया जा चुका है।

ये ‘किस राह से गुजरा हूं

इस अवसर पर उद्भ्रांत ने अपनी रचना प्रक्रिया पर रोशनी डाली और हाल में आई अपनी 4 कृतियों की विशेष तौर से चर्चा की । ये ‘किस राह से गुजरा हूं’ (आत्मकथा का दूसरा खंड), पत्र लेखन पर दूसरी किताब, चयनित कविताएं तथा गद्य संचिता (संपादक – डॉ महेंद्र प्रसाद कुशवाहा) हैं। इनमें से कुछ अंश पढ़कर भी सुनाया। मित्रों के आग्रह पर कुछ पुरानी और कुछ नई कविताएं सुनाईं। 1970 के दशक में लिखी अपनी चर्चित कविता ‘यह कोई अनहोनी नहीं है’, जो उन दिनों ‘उत्तरार्ध’ (संपादक – सव्यसाची) में छपी थी, का पाठ किया।

‘चयनित कविताएं’ से ‘कर्ज’, ईंट, ‘सूअर’, ‘मां का होना न होना’, ‘उलटबांसी’ सहित आधा दर्जन कविताएं सुनाईं। उद्भ्रांत की कविता ‘स्वाहा’ से ‘बैठक का समापन हुआ जिसमें वे वर्तमान की विडंबनाओं पर चोट करते हैं ‘ओम/ सत्य न्याय धर्म/ स्वाहा /ओम /विवेक ईमानदारी/ स्वाहा /ओम /लज्जा क्षमा दया/ स्वाहा/ ओम /तोता मैना बयां/ स्वाहा /ओम / करुणा प्रीति/ स्वाहा/ ओम /दो दिलों का प्यार/स्वाहा /ओम /सबकुछ स्वाहा/ स्वाहा स्वाहा स्वाहा….।

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