16 जनवरी 2023, लखनऊ। जन संस्कृति मंच (जसम) ने घरेलू साहित्यिक गोष्ठियों की शुरुआत की है। इसके तहत पहली गोष्ठी दुनिया के इंकलाबी कवि नाजिम हिकमत के जन्मदिन के मौके पर राजाजीपुरम में आयोजित की गई। गोष्ठी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लखनऊ इकाई के संयोजक कथाकार फरजाना महदी ने कहा कि इवेंट-फेस्ट-फेस्टिवल-पूंजी-बाजार आदि का जोर बढ़ा है। हमारे संबंध औपचारिक होते जा रहे हैं। ऐसे में आपसी अंतरंगता, पारिवारिकता तथा अनौपचारिकता को बढ़ाने की जरूरत है। हम आपस में मिले-जुले, एक दूसरे को सुने-सुनाये और खुलकर वर्तमान और इसकी चुनौतियों के संदर्भ में विचार विमर्श करें, इस सिलसिले को बढ़ाने के लिए ही जसम की यह पहल है।
युवा लेखक अनूप मणि त्रिपाठी की व्यंग्य रचनाओं से गोष्ठी की शुरुआत हुई। इस मौके पर उन्होंने कई छोटी व्यंग रचनाएं सुनाईं जिसे करोना संक्रमण के दौर में लिखा था। इसमें उस दौर की विभीषिका, सरकारी उपेक्षा, जीवन के लिए पैदा हुए संकट आदि की अभिव्यक्ति थी। रचनाओं ने उस दौर के मंजर को सजीव कर दिया जब जिंदा आदमी लाश में बदल रहा था।
भगवान स्वरूप कटियार ने ‘सूनी आंखों में सपना बुनना’ और ‘साजिश’ शीर्षक से अपनी दो नई कविताएं सुनाईं। वे कहते हैं – ‘रात रात भर किसान का जागना /इस बात का सबूत है कि/ जुल्मों के खिलाफ लड़ने की शुरुआत/ अभी हो सकती है/….. आओ जल रहे देश के लोगों की सूनी आंखों में कोई सपना बुने/ और बचाएं जज्बातों को कत्ल होने से’।
अशोक श्रीवास्तव ने ‘संकट में शब्द’ कविता का पाठ किया। अपनी कविता के माध्यम से उन्होंने बताया शब्द अर्थ विहीन किए जा रहे हैं। उनकी गरिमा और भाव नष्ट किया जा रहा है। अपनी कविता में वे कहते हैं – ‘भाषा के बलात्कार का यह मुकदमा /किसी अदालत मे नही चलेगा/न किसी संसद मे चर्चा होगी/न किसी विश्वविद्यालय मे शोधपत्र लिखा जाएगा /पर तुम से तो पूछा ही जायेगा/हे कविगण, हे विद्वज्जन/तब तुम कहां थे/जब घेर कर मारे जा रहे थे शब्द/कुछ तुम ही बताओ/इक्कीसवीं सदी का बोया हुआ/कौन काटेगा ?’
विमल किशोर ने कोरोना काल में भोगे हुए यथार्थ को बयां करती हुई कविता ‘त्रासदी जीवन की’ सुनाई तो स्त्रियों के दुख-दर्द और संघर्ष को ‘एक मुट्ठी रेत’ और ‘यादों का सिलसिला’ के माध्यम से व्यक्त किया। इस मौके पर विमल किशोर ने ‘रोटी’ शीर्षक से भी दो कविताएं सुनाई। वे कहती हैं – ‘औरत के लिए रोटी बनाना /सिर्फ रोटी बनाना नहीं है/… रोटी और पानी का संबंध/ रिश्तों में मिठास लाता है /ऐसे ही आटा और पानी के बीच/ वह घोलती है /स्नेह और ममता का घोल’।
अजय गुप्ता ने अपनी काव्य पुस्तक ‘पल की यात्रा’ के अंतिम अध्याय का पाठ किया जिसमें प्रकृति और पर्यावरण को मनुष्य द्वारा ध्वंस किए जाने की पीड़ा की अभिव्यक्ति है। वहीं, कोरोना संक्रमण के समय में पर्यावरण में आए सुधार पर भी कवि की दृष्टि जाती है। वह कहता है – ‘हर तरफ पसरा सन्नाटा/ न मोटर गाड़ी न सैर सपाटा/ सड़क पर मृग विचर रहे/ सरोवर में हंस दल उतर रहे /पल ने सोचा क्या गजब है/ मानव से ज्यादा प्रकृति प्रकट है/न ऊंची सुरंगे धुआं उगलती /न कोई नदी में विष घोलती’। उनकी कविता ‘पूर्णिमा का चांद’ में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ वक्त होता है – ‘बोला था वह चांद मेरा /यह धरती अंबर मेरा /मानव तू बड़ा लुटेरा/ तेरा यहां कुछ दिन का डेरा/तुमने धरती बांटी /अंबर बाटे /ना जाने कितने झंडे गाड़े/ कर दिए सुराख धरती में’। अजय गुप्ता ने एक और कविता सुनाई ‘अंतिम स्टेशन’। इसके माध्यम से वे धर्म की निस्सारता और कर्म की सार्थकता पर बात करते हैं।
आज युवा लेखिका नगीना निशा का जन्मदिन भी था। इस मौके पर नगीना और सिमोन (सिम्मी व फरजाना महदी की बेटी) का सभी ने स्वागत किया और हार्दिक बधाइयां दीं। कौशल किशोर ने ‘नगीना’ पर लिखी कविता सुनाई। वे कहते हैं – ‘वह आभूषण में जड़ित नगीना नहीं थी/ बस नाम से वह नगीना थी/…. उसके अंदर अपनी छोटी दुनिया को/ बड़ी दुनिया में बदलने की अदम्य चाहत थी/ वह अपनी बगिया में /बेहतर और खुशनुमा दुनिया बसाना चाहती थी /जहां खिले रंग बिरंगे और खुशबू वाले फूल /…वह बहती नदी थी /उसमें तेज धार थी /महानद से मिलकर /वह चमक रही थी नगीना की तरह’। इस मौके पर राकेश कुमार सैनी और सिम्मी अब्बास भी उपस्थित थीं और अपने विचारों से आज की घरेलू गोष्ठी को सार्थक बनाया।