अस्पतालों में संक्रमण रोकने के लिए सभी को मिलकर करना होगा काम: डॉ.बिपिन पुरी

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केजीएमयू में बायोमेडिकल वेस्ट और संक्रमण नियंत्रण के लिए सतत अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी पर कार्यशाला का आयोजन।

लखनऊ। सूबे के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में शुमार राजधानी स्थित किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय(केजीएमयू) में शनिवार को माइक्रोबायोलॉजी विभाग और अस्पताल संक्रमण नियंत्रण समिति (HICC), द्वारा “Sustainable Cutting Edge Technology for Bio-Medical Waste & Infection Control” (बायोमेडिकल वेस्ट और संक्रमण नियंत्रण के लिए सतत अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी) पर सह कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केजीएमयू के कुलपति ले.ज.डॉ. बिपिन पुरी ने कहा कि अस्पतालों में संक्रमण को रोकने के लिए अस्पताल में सभी को टीम के रूप में काम करना चाहिए। अस्पतालों में गुणवत्तापूर्ण रोगी देखभाल के लिए अस्पताल संक्रमण नियंत्रण समिति (हॉस्पिटल इन्‍फेक्‍शन कंट्रोल कमेटी HICC) बहुत महत्वपूर्ण समिति है।

उन्‍होंने अद्यतन दिशानिर्देश बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि रोगी की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। डॉ. बिपिन पुरी ने अस्पतालों और समुदाय के महत्वपूर्ण मुद्दों के समाधान के लिए आयोजन समिति को बधाई दी।

भारत में प्रति दिन लगभग 656 टन बायोमेडिकल वेस्ट होता है

सीएमई कार्यक्रम की आयोजन अध्यक्ष माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता जैन और आयोजन सचिव डॉ. शीतल वर्मा ने कहा कि विकासशील देशों के अस्पताल औसतन प्रति बिस्तर प्रति दिन 2.5 से 3 किलो कचरा पैदा करते हैं लेकिन COVID-19 ने इसमें इजाफा किया है और पूरे भारत में प्रति दिन लगभग 656 टन बायोमेडिकल वेस्ट होता है। यह अनुमान लगाया गया है कि दुनिया भर में चिकित्सा कचरे के कारण होने वाली बीमारियों के परिणाम स्वरूप 4 मिलियन बच्चों सहित 5.2 मिलियन से अधिक लोग काल के गाल में समा जाते हैं।

इससे पहले प्रो. अमिता जैन ने अपने उद्घाटन भाषण में Sterilisation & disinfection (कीटाणुनाशकों) के उपयोग के जरिए कीटाणुशोधन की सर्वोत्तम प्रथाओं की आवश्यकता पर बल दिया और संक्रमण के संचरण को रोकने के लिए बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्‍होंने कहा कि बेहतर प्रबंधन विशेष रूप से अस्पताल में संक्रमण को रोकने के लिए बहुत जरूरी है।  ऑटोक्लेविंग की तुलना में माइक्रोवेविंग बेहतर कार्यक्रम में प्रोफेसर (डॉ) अशोक के अग्रवाल, Adjunct प्रोफेसर, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर),

दिल्ली और अध्यक्ष इंडियन सोसाइटी ऑफ हॉस्पिटल वेस्ट मैनेजमेंट, पूर्व प्रत्यायन समिति के सदस्य और निर्धारक एनएबीएच (क्यूसीआई) मुख्य वक्ता रहे। उन्होंने हेल्थकेयर वेस्ट मैनेजमेंट में इमर्जिंग ट्रेंड्स एंड टेक्नोलॉजी पर बात की। अपने संबोधन में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अस्पतालों में प्रयोगशाला कचरे के लिए ऑटोक्लेविंग की तुलना में माइक्रोवेविंग बेहतर है। संबोधन के दौरान उन्होंने गहरे दफन के मानकों पर चर्चा की और ध्यान दिया कि प्लास्टिक कचरा एक खतरा है और पुन: उपयोग, सड़क बनाने और डीजल तेल के निर्माण के लिए उचित निपटान और रणनीतियों की आवश्यकता है।

कार्यक्रम में केजीएमयू के सीएमएस प्रो. एस.एन.संखवार को सम्मानित किया गया।

सामान्य कचरे और संक्रा​मक कचरे को अलग-अलग रखना चाहिए

वहीं प्रो. राजेश हर्षवर्धन, अस्पताल प्रशासन विभाग, एसजीपीजीआईएमएस, लखनऊ ने बंध्याकरण और कीटाणुशोधन तकनीक पर व्याख्यान दिया: पोस्ट कोविड परिदृश्य में एक अद्यतन। उन्होंने सुझाव दिया कि अस्पताल में बायोमेडिकल कचरे को सामान्य कचरे और संक्रा​मक कचरे को अलग-अलग स्थानों पर रखना चाहिए ताकि 85 फीसदी गैर-संक्रामक कचरे को दूषित होने से बचाया जा सके।

अपने संबोधन में प्रो. विमला वेंकटेश, माइक्रोबायोलॉजी विभाग, केजीएमयू ने “कोविड के बाद के परिदृश्य में बीएमडब्ल्यू की हैंडलिंग और उपचार रणनीतियां” पर बात की। उन्‍होंने कोविड अपशिष्ट के लिए अलग वाहन की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि जनता द्वारा घर पर उपयोग किए जाने वाले रैपिड एंटीजन स्व-परीक्षण किट को घर पर पीले बिन में ठीक से निपटाया जाना चाहिए या फिर कीटाणुनाशक से इलाज किया जाना चाहिए]

और फिर फेंक दिया जाना चाहिए अथवा पास की स्वास्थ्य सुविधा को दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोविड संदिग्ध बच्चों के डायपर को घर पर पीले डिब्बे में फेंक दिया जाना चाहिए और घर में सार्वजनिक उपयोग के मास्क / दस्ताने को 72 घंटे के लिए पेपर बैग में रखा जाना चाहिए। इसके बाद काट दिया जाना चाहिए और उसके बाद ही निपटान किया जाना चाहिए।

स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है बायोमेडिकल कचरा

वहीं कार्यक्रम में प्रो. मनोदीप सेन, प्रोफेसर, माइक्रोबायोलॉजी विभाग, आरएमएलआईएमएस, लखनऊ ने “लिक्विड बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट: एन इमर्जिंग कंसर्न्स फॉर हॉस्पिटल्स” पर व्याख्यान दिया। बायोमेडिकल कचरे की सभी श्रेणियों में, तरल अपशिष्ट मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करते हैं क्योंकि उनकी वाटरशेड में प्रवेश करने की क्षमता, भूजल और पीने के पानी को प्रदूषित करने और गलत तरीके से निपटाने के कारण अस्पतालों को आवश्यक उपाय सुनिश्चित करने चाहिए कि ईटीपी नियमित रूप से संचालित हो।

400 से अधिक चिकित्सा संस्थानों के प्रतिनिधियों ने किया प्रतिभाग

वहीं कार्याक्रम के तहत Hand on Workshop संक्रमण नियंत्रण के लिए मोबाइल मेडिकल माइक्रोवेव प्रौद्योगिकी और संक्रमण को रोकने के लिए सतह और वायु कीटाणुशोधन के लिए माइक्रोवेव आधारित तकनीकों और विशेष रूप से प्रयोगशालाओं में उचित बीएमडब्ल्यू प्रबंधन के लिए व्यावहारिक कार्यशाला का भी आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के विभिन्न प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों के 400 से अधिक प्रतिनिधियों और छात्रों ने भाग लिया। इस अवसर पर प्रो. विनीत शर्मा, प्रो-वाइस चांसलर, केजीएमयू, प्रो. ए.के. त्रिपाठी, डीन, चिकित्सा विज्ञान संकाय, प्रो. एस.एन.संखवार, सीएमएस, केजीएमयू, प्रो. गोपा बनर्जी, प्रो. विनीता मित्तल, प्रो. रीमा कुमारी, प्रो. आर.के.कल्याण, प्रो. प्रशांत गुप्ता, डॉ. पारुल, डॉ. सुरुचि, डॉ. श्रुति समेत अन्य फैकल्टी सदस्य एवं भारी संख्या में मेडिकल छात्र—छात्राएं मौजूद रहे।

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