लखनऊ। ‘अब बदलना होगा लिखने को लडाई में’ शमशेर की मशहूर कविता है ‘काल से होड़’। वे कहते हैं ‘काल तुझसे होड़ है मेरी/ तू अपराजित/तुझमें अपराजित मैं वास करुं’। काल से होड़ लेना कविता की प्रकृति रही है। यह समकालीन कविता में प्रतिरोध के रूप में व्यक्त हो रही है। ‘कविता लखनऊ’ के तहत इस शहर के तीन वरिष्ठ कवियों ने ऐसी ही कविताओं का पाठ किया। कवि थे भगवान स्वरूप कटियार, अशोक श्रीवास्तव और उमेश पंकज। इसका आयोजन लिखावट ने ऑनलाइन किया।
जाने माने कवि और गद्यकार मिथिलेश श्रीवास्तव ने इन कवियों का स्वागत करते हुए कहा कि वही कविताएं यथार्थवादी होती हैं, जो अपनी जमीन से जुड़ी होती हैं। ये तीनों कवि लखनऊ के हैं लेकिन इनकी कविता का दायरा लखनऊ तक सीमित नहीं है। इनके पास व्यापक दृष्टि है, सामाजिक सरोकार व समकालीनता इनकी प्रकृति है।
कविता में कुछ यूं चित्रित करते हैं
उमेश पंकज ने काव्य पाठ की शुरुआत की। वे वर्तमान को अपनी कविता में कुछ यूं चित्रित करते हैं- ‘चारों तरफ युद्ध की विभीषिकाएं हैं/क्रूरताएं चरम पर हैं/ न्याय अधोगति में है /बिछी हुई है लाशें /गिद्ध नोच रहे हैं मनुष्यता का मांस’। यह कवि की चिंता है और सिर्फ़ कवि की ही चिंता क्यों, यह तो हर सजग नागरिक की चिंता है जो आगे कविता में व्यक्त होती है – ‘कहीं कोई सुगंध नहीं /ऐसे में कैसे बांसुरी बजाई जाए/ बुद्ध लंबा लेटे हुए हैं कुशीनगर में/कहो किस नगाड़े को बजाकर उठाया जाए’।
उमेश पंकज जानते हैं की यह अंधेरे का समय है और आगे बढ़ना है तो इसे चीर कर ही बढ़ना होगा। स्थितियां चाहे जितनी विकट हो, पर कवि हताश-निराश नहीं होता। वह एक समतामूलक और खूबसूरत समाज का सपना देखता है। यह सपना उमेश पंकज की कविता में भी व्यक्त होता है। वे कहते हैं ‘मेरे अंदर एक धरती है/भेदभाव, दोहन दमन से मुक्त/समतामूलक /एक खूबसूरत धरती/वही मेरा स्थाई पता है /ढूंढिए अगर तो वहीं मिल जाऊंगा।’
‘आरा मशीन’
अगले कवि थे अशोक श्रीवास्तव। उन्होंने गीता का समकालीन पाठ प्रस्तुत किया। ‘आरा मशीन’ कविता में वे पेड़ के माध्यम से आम आदमी की व्यथा को व्यक्त करते हैं। ‘करंट’ कविता में कहते हैं ‘जब चलती है/तो लोहा चुंबक हो जाता है/जुड़ते हैं तार /भूख से भूख के/पीड़ा से पीड़ा के/दीनता से दीनता के/दो ध्रुवों के बीच उसका बहना/जैसे चींटी का पहाड़ पर चढ़ना चुपचाप’।
अशोक श्रीवास्तव अपनी कविता ‘राजाज्ञा’ और ‘स्पष्ट बहुमत’ के द्वारा लोकतंत्र व संविधान के क्षरण की गाथा प्रस्तुत करते हैं। सरकार को ‘स्पष्ट बहुमत’ के मिलने से सत्ता का चरित्र बदल गया है। वह संविधान को निष्प्रभावी और जनतंत्र को सीमित करने में लगी है। सत्ता का यह कदम तानाशाही की ओर जाता है। वे कविता में कहते हैं – “संविधान अस्पताल मे है इन दिनों/उसकी अनुपस्थिति मे/उसका कामकाज सम्हालने के लिए/आदेश जारी हो चुका है/आने वाले दिनों मे यह जिम्मेदारी/’स्पष्ट बहुमत’ निभायेगा”।
विविध रंग का आस्वादन कराया
इस मौके पर वरिष्ठ कवि भगवान स्वरूप कटियार ने अपनी कविताओं के विविध रंग का आस्वादन कराया। उन्होंने शुरुआत ‘मैं और मेरी कविता’ से की जिसमें वे कहते हैं कि”कविता आदमी होने का एहसास है’। उन्होंने किसान आंदोलन पर लिखी कविता का भी पाठ किया। उनकी कविता में ‘किसान होना असली हिंदुस्तान होना है’। अपनी एक कविता में कहते हैं ‘मै आना चाहता हूं तुम्हारे पास आटे में थोड़ा नमक के साथ/और नफ़रत के बीच गहन प्यार की तरह।’ उनके अनुसार यह नाउम्मीदी का दौर है लेकिन वे उम्मीद का दामन नहीं छोड़ते।
संघर्षोंन्मुखता उनकी कविता की विशेषता है। शहीदों, जननायक के अधूरे काम व संघर्ष को बढ़ाने का उनकी कविता में संकल्प है। इन्हीं भाव-विचार की अभिव्यक्ति है जिसमें वे कहते भी हैं ‘सोचो जब सरकार, संसद, न्यायालय और खुद संविधान/ शामिल हो जाय देश के खिलाफ साजिश में/अब बदलना होगा लिखने को लडाई में/ जो ठोक सके ताबूत में आखिरी कील।’ और भी ‘मै चाहता हूं/मेरा बच्चा सीखें जिन्दगी के गणित के कठिन से सवाल हल करना/वह क्रान्ति का एलजबरा और मनुष्य होने की ज्योमेट्री भी पढ़े।’
मनुष्यता के पक्ष की कविताएं हैं
‘कविता लखनऊ’ के अंतर्गत कवियों ने करीब दो दर्जन से अधिक कविताएं सुनाईं। इन पर टिप्पणी करते हुए ‘मुक्तिचक्र’ पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल ने कहा कि ये मनुष्यता के पक्ष की कविताएं हैं। कवियों ने वर्तमान की विसंगतियों को कलात्मक तरीके और खूबसूरत बिंबों के द्वारा प्रस्तुत किया है। आज ‘स्पष्ट बहुमत’ हमलावर की भूमिका में है। जनतंत्र के लिए आवश्यक है कि बहुमत सही लोगों के हाथों में हो।
युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी ने विशेष तौर से भगवान स्वरूप कटियार की कविताओं पर टिप्पणी की। उनका कहना था कि वे एक्टिविस्ट और वैचारिक लेखक हैं। उनका जीवन जैसा है, उनकी कविताएं भी उसी भूमिका में है। इसका स्वर अन्याय के विरुद्ध प्रतिरोध का है।समापन वक्तव्य तथा धन्यवाद ज्ञापन मिथिलेश श्रीवास्तव का था। उनका कहना था कि इन कविताओं में समय का चेहरा बहुत साफ है। संचालन कौशल किशोर ने किया। इस मौके पर जवाहरलाल जलज, डीएम मिश्र, रघुवंश मणि त्रिपाठी, मीना सिंह, विजय विशाल आदि उपस्थित रहे।
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