मैनपुरी। मंदिर का नाम सुनते ही इंसान के नाम पर भगवान के प्रति श्रद्धाभाव से सिर झुका जाता है, देश के 99 फीसदी मंदिर भगवान के होते है। लेकिन मैनपुरी के बेवर में एक अनोखा मंदिर है, यहां भगवान की नहीं बल्कि कांतिकारियों की रोज पूजा होती है। इस अनोखे मंदिर में उन शहीदों की यादों को सजाकर रखा गया है जिन्होंने हंसते-हंसते देश की खातिर अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया था। 26 शहीदों की याद में बना बेवर का शहीद मंदिर उनकी शहादत की याद दिलाता है। इस मंदिर का नाम शहीद मंदिर है। यह मंदिर उन युवा क्रांतिकारियों की याद में बनवाया गया, जो आजादी के लिए लड़ते.लड़ते शहीद हो गए। शहीद मंदिर आज भी उनकी शहादत की गवाही दे रहा है। बेवर निवासी पंडित जमुना प्रसाद त्रिपाठी, कृष्ण कुमार और सीताराम गुप्ता ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था।
इतिहास के पन्नों में दर्ज रिकाॅर्ड के अनुसार अंग्रेजों के विरुद्ध निकाले गए एक जुलूस पर थाने के सामने अंग्रेजी हुकुमत के एक थानेदार ने गोली चलाने का आदेश दे दिया था। इसमें जमुना प्रसाद त्रिपाठी, सीताराम गुप्ता और कृष्ण कुमार शहीद हो गए थे। कई क्रांतिक्रारी घायल भी हुए थे। इस जुलूस में पंडित जमुना प्रसाद त्रिपाठी के पुत्र जगदीश नरायन त्रिपाठी भी थे। उस समय वह किशोरावस्था में थे। गोली लगने से वह भी घायल हो गए थे।
1971 में बनवाया था मंदिर
जगदीश नरायन त्रिपाठी ने ही आजादी के बाद शहीदों की याद में शहीद मंदिर बनाने के लिए पहल की थी। 1971 में बनकर तैयार हुए शहीद मंदिर में तीनों शहीदों के साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों की कुल 26 प्रतिमाएं लगाई गईं हैं। ये प्रतिमाएं आजादी के परवानों की वीर गाथाएं बयां कर रही हैं।शहीद मंदिर में शहीदों के परिवारों के साथ ही कई राजनेता और हस्तियां शहीदों को नमन करने आ चुकी हैं। इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सांसद राजबब्बर और शहीद भागत सिंह के भांजे जगमहोन सिंह भी शहीद मंदिर में शहीदों को नमन करने वालों में शामिल हैं।
जनवरी में लगता है शहीद मेला
शहीद मंदिर के साथ ही बेवर में शहीद मेले का भी आयोजन हर साल किया जाता है। जनवरी में आयोजित होने वाले इस मेले की अलग पहचान है। इसमें शहीदों के परिवारों को सम्मानित करने के साथ ही उनकी याद में कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। इस पूरे आयोजन की कमान शहीद जमुना प्रसाद त्रिपाठी के पौत्र राज त्रिपाठी संभालते हैं। वे बताते हैं कि उनके पिता जगदीश नरायन त्रिपाठी ने शहीद मंदिर बनवाया था, वे उन्हीं के कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं।
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