जलज के प्रतिरोध का तरीका त्रिलोचन से मिलता-जुलता है : उमाशंकर सिंह परमार
लखनऊ। लिखावट की ओर से 10 जुलाई को वरिष्ठ कवि जवाहर लाल जलज (बांदा) के कविता पाठ और उस पर परिचर्चा का ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित हुआ। शुरू में जाने-माने कवि व गद्यकार तथा लिखावट मंच के संयोजक मिथिलेश श्रीवास्तव का कहना था कि ऐसा समय है जब धर्मांधता फैलाई जा रही है। तर्क, विवेक, ज्ञान व विज्ञान को दरकिनार किया जा रहा है। यूरोप में भी एक समय धार्मिक उन्माद इतना ही उग्र था जब वैज्ञानिक भी बोलने से हिचकते थे। उन्हें भी प्रताड़ना झेलनी पड़ती थी। मुझे गैलीलियो की याद आती है। उन्हें भारी कष्ट उठाना पड़ा। हमारे यहां की हालत बदतर है। हर आदमी आहत होने को तैयार है। इस मानस को बदलना है। इसमें चुप रहने का नहीं बल्कि बोलने की जरूरत है। ऐसे में प्रगतिशील व जनवादी विचारों की भूमिका है। जवाहर लाल जलज की कविताएं यही काम कर रही हैं।
एक दर्जन कविताओं का पाठ किया
इस मौके पर जलज जी ने अपनी करीब एक दर्जन कविताओं का पाठ किया। शुरुआत उन्होंने ‘उस गांव में’ से की जिसमें कवि वैभव, छल-छद्म और शोषण की दुनिया से इतर ऐसे गांव में जाना चाहता है जहां प्रेम व भाईचारा हो। वह कहता है ‘जाने दो मुझे/संवेदना के उस गांव में/जिसके पास से होकर/बहती है करुणा की नदी/जो सींचती है/हर झुलसती कविता को’। ‘सुनते रहिए’ कविता में मौजूदा तंत्र पर करारा तंज है। वे कहते हैं ‘बस, सुनते रहिए/उनके ही/मन की बात/क्योंकि/उनके समय में तो/उनको ही/सुनते रहने की स्वतंत्रता है’।
अपनी कविता ‘वह भाषा’ में ऐसी भाषा की जरूरत को सामने लाते हैं जिसमें संवेदना हो और वह लोगों को परिवर्तन के लिए तैयार करे। जलज जी अपनी कविताओं में जहां बाजारवाद, भूमंडलीकरण, सांप्रदायिकता जैसी मनुष्य विरोधी संस्कृति के दुष्प्रभाव को व्यक्त करते हैं, वहीं उनके यहां युद्ध के विरोध में शांति का स्वर काफी मुखर है। कविता पाठ का समापन उन्होंने ‘रहूंगा तब तक इसी लोक में’ कविता से किया। हाल में इसी शीर्षंक से उनका दूसरा संग्रह आया है। इसमें कवि की इस धरती को सुन्दर, मानवीय और समतामूलक बनाने की सदिच्छा है।
कविताएं उसी परंपरा से जुड़ती हैं
कार्यक्रम का संचालन युवा कवि व आलोचक उमाशंकर सिंह परमार ने किया। जलज जी की कविताओं का परिचय कराते हुए उन्होंने कहा कि बांदा की समृद्ध काव्य परंपरा रही है जिसे केदारनाथ अग्रवाल ने प्रगतिशील विस्तार दिया। केदार जी से इसकी पहचान है। जवाहरलाल जलज की कविताएं उसी परंपरा से जुड़ती हैं। उसी से सीखते हुए वे आगे बढ़ते हैं। इनकी कविताओं में लोक की पीड़ा है। यह संवेदना से भरी है। इसमें प्रतिरोध का स्वर है। इनकी विशेषता है कि जलज जी अपने प्रतिरोध को नारा नहीं बनने देते। इनका प्रतिरोध का तरीका बहुत कुछ त्रिलोचन से मिलता है।
कवि और आलोचक भरत प्रसाद का कहना था कि जलज जी की कविताएं अपनी जड़ों से नाभिनालबद्ध हैं। ये पाठकों के कवि हैं, ऐसे पाठकों के जो साहित्य से बाहर हैं। सहजता और बोधगम्यता काव्य विशेषता है। इनकी निर्मिति पर गौर किया जाय। इन्होंने सीखने की परंपरा कभी नहीं छोड़ी। इनके काव्य में लोक प्रवृतियां और उसके संस्कार हैं। इनकी समय के साथ संलग्नता है। नये विषय-वस्तु के साथ इनकी रचनाशीलता आगे बढ़ी है।
अभिव्यक्ति में सहजता
कार्यक्रम का समापन करते हुए कवि व संस्कृतिकर्मी कौशल किशोर ने कहा कि जलज जी की कविताएं आदमी को और आदमी बनती हैं। इनमें दुख-दर्द, करुणा, संवेदना, आत्मीयता है। इनकी अभिव्यक्ति में सहजता, संप्रेषणीयता और प्रवाह है। ये जमीन के कवि हैं, जनपद के कवि हैं। इनकी कविता का जनवादी पप्रिेक्ष्य यह है कि एक तरफ इनकी कविता अपनी जमीन से जुड़ती है, वहीं इसकी दृष्टि वैश्विक है। आम जीवन पर असर डालने वाले विषय ही इसके केन्द्र में है। अंत में कौशल किशोर ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।इस गोष्ठी में ‘मुक्ति चक्र’ के संपादक गोपाल गोयल व कवि नारायण दासगुप्ता (बांदा), वरिष्ठ कवि-गजलकार डी एम मिश्र (सुल्तानपुर), युवा कवि भास्कर चौधुरी (छत्तीसगढ़), कवि-गजलकार प्रवीण परिमल (रांची), कवि-आलोचक दिनेश प्रियमन (उन्नाव), कवि सूर्यप्रकाश जीनगर (राजस्थान) आदि साहित्यकार शामिल रहे।